आरती दास अपने कमरे में पैर बहुत संभलकर रखती हैं. उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं उनके पांव दरवाजे के पास मिट्टी के बर्तन में रखे चावल पर न लग जाएं. वे बमुश्किल एक वक्त के भोजन का इंतजाम कर पाती हैं. ऐसे में यह थोड़ा सा चावल उनके लिए लिए बड़ी दौलत से कम नहीं है. इस 42 वर्षीया महिला को सिलाई का काम खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि स्थानीय पंचायत ने उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा या नरेगा) के तहत रोजगार देना बंद कर दिया. उनके 50 वर्षीय पति दिलीप कपड़ा फैक्ट्री में काम करते हैं. आरती कहती हैं, "पहले, मैं हर महीने 3,000 रुपए अतिरिक्त कमा लेती थी. अब, मेरी आय 500 रुपए से 1,000 रुपए के बीच रह गई है." उत्तर 24 परगना जिले की बिलकंडा ग्राम पंचायत का यह परिवार दिलीप की 6,000 रुपए से 7,000 रुपए की मामूली कमाई पर किसी तरह गुजारा करने को मजबूर है.
नरेगा या 100 दिनों की नौकरी की गारंटी योजना पश्चिम बंगाल की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए आय का साधन है. राज्य में लगभग 1.36 करोड़ लोगों के पास वैध नरेगा जॉब कार्ड हैं लेकिन उनमें से केवल 92 लाख कार्ड ही सक्रिय हैं. इसका मतलब है कि कम से कम इतने लोग तो अपनी आजीविका के लिए इस योजना पर ही निर्भर हैं.
लेकिन, केंद्र सरकार ने नरेगा के तहत दिसंबर, 2021 तक अर्जित वेतन पर रोक लगा दी है. केंद्र ने 9 मार्च, 2022 को जब से राज्य पर नरेगा अधिनियम की दंडात्मक धारा 27-जो अनियमितताओं की स्थिति में धन को रोकने की व्यवस्था देता है-को लागू किया है तब से काम के लिए एक भी नया दिन निर्धारित नहीं हुआ है. आरती उन 21 लाख लोगों में एक हैं जिन्हें दिसंबर, 2021 तक किए गए काम के अंतिम चरण का भुगतान अभी तक नहीं मिला है. बंगाल में नरेगा मजदूरी के रूप में शुद्ध देय राशि 3,732 करोड़ रुपए है. अगर इसमें गैर-वेतन भुगतान को जोड़ लें तो यह राशि दोगुनी होकर 6,907 करोड़ रुपए हो जाती है. रोजगार के लिए केंद्र की इस योजना के लिए मजदूरी का भुगतान न होने से बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गए, हजारों लोग गरीबी में फंस गए और नतीजतन, बड़े पैमाने पर राज्य से पलायन भी हुआ है.
Denne historien er fra October 18, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra October 18, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"