खगड़िया के शहरबन्नी गांव में 8 अक्तूबर को लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक और दिवंगत रामविलास पासवान की तीसरी पुण्यतिथि पर उनका परिवार जुटा. उनके पुत्र चिराग पासवान ने गांव में उनकी मूर्ति का अनावरण किया. उनके कुनबे के लोगों ने एकजुट होकर तस्वीर खिंचवाई. मगर उसमें न तो रामविलास के छोटे भाई केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस का परिवार था और न ही उनके एक अन्य दिवंगत छोटे भाई रामचंद्र पासवान का परिवार. इन दोनों परिवारों के लोग दिल्ली में पशुपति के आवास पर जुटे थे. वहीं उन लोगों ने रामविलास को याद किया. अगले दिन पारस हाजीपुर पहुंचे और उन्होंने एक चौराहे पर लगी रामविलास की प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित की.
इसके महज तीन दिन बाद ही इस विशाल पासवान कुनबे की आपसी तकरार सतह पर आ गई. 11 अक्तूबर को अपने संसदीय क्षेत्र जमुई से चिराग ने ऐलान कर दिया कि वे अपने पिता की संसदीय सीट हाजीपुर से अपनी मां रीना पासवान को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं. इस सीट से वर्तमान सांसद और उनके चाचा पारस उनकी बात से तिलमिला गए और महज दो दिन बाद उन्होंने भी कह दिया, "अगर वे अपनी मां को यहां से लड़वा सकते हैं, तो हम भी जमुई से उसी की मां या बहन को लड़ा सकते हैं." पारस का इशारा चिराग की पहली मां राजकुमारी देवी और सौतेली बहन आशा की ओर था.
पारस इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने कह दिया, "हम तो एनडीए के परमानेंट मेंबर हैं, वह तो आता-जाता रहता है. उसका क्या?" इस तरह दोनों पासवान धड़ों में हाजीपुर सीट के बहाने फिर से जोर आजमाइश शुरू हो गई. दिलचस्प कि यह सब तब हो रहा था जब महज एक हफ्ते पहले एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा राजधानी पटना में यह कह कर गए कि देश में क्षेत्रीय पार्टियों का खात्मा तय है क्योंकि वे परिवारवादी पार्टियां बन कर रह जाती हैं.
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