साई अभिषेक पिछले करीब एक दशक से डिस्कवरी के लिए नॉन-फिक्शन प्रोग्रामिंग डिजाइन कर रहे हैं. लेकिन उनकी नजर में सही मायने में 2023 इस तरह की स्ट्रीमिंग शैली के लिए निर्णायक साल साबित हुआ. वे वार्नर ब्रदर्स, डिस्कवरी के लिए फैक्चुअल ऐंड लाइफस्टाइल क्लस्टर, साउथ एशिया के प्रमुख के तौर पर काम करते हैं, जिसमें नॉन-फिक्शन प्रोग्रामिंग को समर्पित एक ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस भी शामिल है. अभिषेक याद दिलाते हैं कि ऑस्कर जीतने वाला पहला भारतीय प्रोडक्शन (द एलिफैंट व्हिस्परर्स) एक डॉक्युमेंट्री ही थी. यह भी कि अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स के इस मैदान में कूदने से सच पर आधारित कार्यक्रम दिखाने का समय बढ़ रहा है. नेटफ्लिक्स इस लिहाज से प्रतिद्वंद्वियों से आगे नजर आया, जब उसने अपनी फिल्मों से अनूठा समां बांधने वाले फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा के जीवन की झलक द रोमांटिक्स के जरिए दिखाई. उसके बाद आई द हंट फॉर वीरप्पन. वहीं, अमेजन प्राइम ने शाकिरा खलीली की सनसनीखेज हत्या पर केंद्रित डांसिंग ऑन द ग्रेव के साथ बाजी मारी और सिनेमा मरते दम तक के जरिए भी सुर्खियां बटोरीं. यह कार्यक्रम 1990 के दशक में चलताऊ फिल्मों के सुनहरे दौर पर केंद्रित था. डिस्कवरी प्लस के हंट फॉर द इंडियन मुजाहिदीन और हिस्ट्री हंटर को लोगों ने काफी पसंद किया. अभिषेक के शब्दों में, "देखकर अच्छा लग रहा है कि इस उद्योग को एक नया मुकाम हासिल करते देखने को बेताब एक तबका आखिरकार इस बदलाव का साक्षी बन रहा है."
Denne historien er fra February 14, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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शब्द हैं तो सब है
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
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अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"