करो या मरो की जंग
India Today Hindi|May 15, 2024
महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार के इलाकाई क्षत्रप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासत इतिहास गढ़ने के रास्ते में खड़े हुए हैं. अगर क्षत्रप उन्हें हराने में नाकाम हुए तो वे अपना राजनैतिक महत्व गंवा देंगे
राज चेंगप्पा
करो या मरो की जंग

एक और महाभारत 2024 के चुनाव में लड़ा जा रहा है. लोकसभा की 543 सीटों में से आधी पर 7 मई तक मतदान हो चुका होगा. यह महाभारत खासकर तीन अंचलों में लड़ा जा रहा है - महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार. इन राज्यों में कुल मिलाकर भले लोकसभा की एक-चौथाई सीटें हों पर इनके नतीजे देश के भविष्य पर दूरगामी असर डालेंगे. मसलन, यह तय करेंगे कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार तीसरी बार बहुमत हासिल करेगी या हांफते-कांपते किसी तरह बहुमत की सीमारेखा छू पाएगी. यह उन इलाकाई क्षत्रपों के लिए भी जीवन-मरण का युद्ध है जो भाजपा के दबदबा कायम करने के रास्ते में दमदार चुनौती पेश कर रहे हैं. ये ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इतिहास में उनके अपना नाम दर्ज करने के बीच खड़े हैं. अगर ये क्षत्रप हारे तो बड़े आराम से इतिहास के कूड़ेदान में फेंके जा सकते हैं.

महाभारत की ही तरह इस करो या मरो की लड़ाई के सभी सेनापतियों का समूह राजनैतिक परिवारों और पार्टियों की पंचमेल खिचड़ी है. कुल 130 सीटों वाले इन तीन राज्यों में राजनैतिक वर्चस्व की जद्दोजहद में ये इधर से उधर पाला बदलते रहे हैं. उन्हें नेस्तोनाबूद करने के लिए उनकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भाजपा ने चाणक्य नीति की कथित हर चाल साम, दाम, दंड, भेद को अपनाया है. उसी का नतीजा है कि 48 सीटों वाले महाराष्ट्र (80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा राज्य) में दिग्गज शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार से उलझे हुए हैं. लड़ाई में तय होगा कि आखिर किसकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) असली है. उनके परिजन भी आमने-सामने हैं. अजित की पत्नी सुनेत्रा शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ बारामती सीट पर मोर्चे पर हैं, जिसे पिता-पुत्री का गढ़ माना जाता रहा है. मोर्चे पर एक टुकड़ी की अगुआई उद्धव ठाकरे कर रहे हैं. दांव पर है उनके पिता बाल ठाकरे की विरासत, जिस पर कभी उन्हीं के सिपहसालार रहे एकनाथ शिंदे ने दावा ठोंक रखा है. बेशक भाजपा इसमें उनके पीछे रही है. दोनों शिवसेनाएं अब यह फैसला करने को आमने-सामने हैं कि असली शिवसेना कौन है.

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