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अभिवादन पद्धति
चरित्र निर्माण की कुंजी : ६
हम भी चाहें ऐसा वर
12 जनुअरी, स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष
लहू से भरे यादों का काला रंग
२६/११ का संस्मरण
सेना को २१वीं सदी में ले जानेवाले नायक जनरल बिपिन रावत
जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि
शौर्य के प्रतीक हमारे अनाम शहीद
भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण ने अपने गीतोपदेश में अधर्म का नाश व धर्म की विजय के लिए कायरता त्याग, आतताइयों से शीर्यपूर्वक युद्ध करने का आह्वान किया। आज भी सशरीर अमर, भगवान परशुराम ने रावण से भी बलवान सहस्त्रार्जुन का नाश कर जिस ब्रह्म शौर्य का प्रदर्शन किया वह सदैव प्रेरणादायक रहेगा।
राजमाता जीजाबाई
१२ जनवा जयन्ती पर विशेष
मैं माता भुवनेश्वरी देवी का बेटा विवेकानन्द
सम्पूर्ण विश्व में मैं 'युगनायक' कहलाता हूँ।
माता भुवनेश्वरी और बालक नरेन्द्र
माता भुवनेश्वरी के आदर्श संस्कार
ताकि खुशहाल रहे बचपन
'कुछ काम हमें कभी नहीं करना चाहिए, जैसे बच्चों को खिलौना बन्दूक देना...' यह विचार अचानक ही मेरे मन में कौंध गया था।
गिद्ध सम्पाति से मिली जानकारी
श्री हनुमत कथा
विवेकानन्द केन्द्र- प्राकृतिक संसाधन विकास परियोजना
नीति आयोग ने विवेकानन्द केन्द्र नारडेप को १७ विषयगत क्षेत्रों में से एक में हस्तांतरण- के सदस्य के रूप में नामित किया।
युध्यस्व विगतज्वर:
१६ महीनों से अधिक समय बीत चुका है पर अभी भी हम कोविड-१६ का सतर्कता से सामना कर रहे हैं। 'सतर्कता से सामना' हम बोल रहे हैं परन्तु वास्तव में इसने हम में से अनेकों को अपने घरों में ही रखा है। यद्यपि दूसरी लहर की उग्रता कम हुई है परन्तु कोविड-१ का अन्त अभी भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। उसके कारण उभरी हुई परिस्थिति के साथ अपनी लड़ाई तथा शारीरिक, मानसिक, भावनिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर उसका सामना करना भी जारी है। परन्तु यह लड़ाई हमें लड़नी ही है। यह ऐसी लड़ाई है कि जिसमें हमें पराजित नहीं होना है। हमें इसमें जीतना ही है। अन्तिम परिणाम निश्चित हो चुका है और वह है सम्पूर्ण विजय। परन्तु यह लड़ाई मृत्यु, बीमारी अथवा असुरक्षा के भय से या वर्तमान परिस्थिति का लाभ उठाने की लालच से या फिर इस परिस्थिति को पुराने विरोधियों से प्रतिशोध लेने का अवसर समझना इस प्रकार की क्षुद्र मानसिकता से नहीं लड़ी जा सकती।
योग शास्त्र संगमम्
योग पर एक सम्मेलन
महामारी के दौरान विवेकानन्द केन्द्र द्वारा राहत कार्य की झलक
"अपने तन, मन एवं वाणी को "जगदिहताय" अर्पित करो। तुमने पढ़ा है - मातृदेवो भव, पितृदेवो भव- अपनी माता को ईश्वर समझो, अपने पिता को ईश्वर रामझो। परन्तु मैं कहता हूँ दरिद्रदेवो भव मूर्खदेवो भव गरीब, निरक्षर, गूर्ख और दुःखी - इन्हीं को अपना ईश्वर गानो। इनकी सेवा करना ही परम धर्म समझो।" -स्वागी विवेकानन्द
स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. श्री मोहनजी भागवत का विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि. १५ अक्टूबर, २०२१) के अवसर पर दिया गया उद्बोधन।
परस्पर अनुशासन
प्रभाव कारण या ११. किसी ऐसे स्थान में जाएं जहां हमारा सत्कार हो, तो हमारे साथ आये हुए अतिथि या मित्र को न भूलें । उन्हें भी हमारे साथ आदर-रात्कार में सम्मिलित करें...
धर्मान्तरण अर्थात हिंसा
१६८१ में मीनाक्षीपुरम् में जब रातोंरात धर्मान्तरण किया गया तब पूरे देश में वह एक बड़ा समाचार बन गया और चिन्ता का विषय भी। यदि विवेकानन्द केन्द्र सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर सेवा कार्य शुरू करे तो अनेक समाज हितैषी सहायता करने तैयार थे। केन्द्र ने यह कार्य करना निश्चित किया। जिनका जन्म इस महान संस्कृति में हुआ है ऐसे कोई भी इस ज्ञान से वंचित नहीं रहने चाहिए। यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है कि वे अपनी संस्कृति को जाने और उसके प्रति गर्व करे । और यह बहुत दुःखदायी होता है जब इस महान संस्कृति में जन्मे कुछ ईसाई और मुस्लिम दूसरों की देवी-देवताओं का सम्मान करनेवाले धर्मान्तरण करने लगते हैं। विवेकानन्द केन्द्र के ग्राम विकास प्रकल्प की शुरुवात वंचितों की सेवा करने तथा उनको स्वयं के प्रति एवं अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति आत्मविश्वासपूर्ण बनाने के लिए हुई।
संपादकीय- आइए, हम उन मौन आहानों पर प्रतिक्रिया दें
इस वर्ष १६ नवम्बर, साधना दिवस, विवेकानन्द शिला स्मारक और विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक माननीय एकनाथजी की जयन्ती; 'स्वाधीनता के ७५ वर्ष' के सन्दर्भ में है। 'स्वाधीनता का ७५ वर्ष' केवल एक उत्सव नहीं है। यदि कोई हमारे भारत की रक्षा और पोषण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवाले कई बलिदानियों, संतों, सामान्य लोगों की उन मूक पुकारों को सुन सकता है, तो यह भारत के समग्र विकास के लिए निःस्वार्थ रूप से योगदान देने की साधना है।
कथा शिवभक्त मूर्ति नयनार की
एक शिव भक्त के बारे में एक आकर्षक कहानी
एकनाथजी का ध्येयगामी जीवन
मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया विक्रम सम्बत् १६७१ दिनांक १६ नवम्बर, १८१४ गुरुवार के दिन महाराष्ट्र के अमरावती जिले में टिमटाला गांव में रानडे परिवार की आठवीं और सबसे छोटी संतान का जन्म हुआ। उसका नाम एकनाथ रखा गया और सब उसे नाथ कहकर बुलाते थे। पिता श्री रामकृष्णराव विनायक रानडे विदर्भ की ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे में कार्यरत थे तथा माता श्रीमती रमाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की साधारण महिला थीं।
पुण्यभूमि भारतम्
जब मैं विवेकानन्द केन्द्र विद्यालय की प्रधानाचार्य थी तब सप्ताह में सारी कक्षाओं में कम से कम एक बार मैं जाती ही थी। मैं विषय लेती थी मूल्य शिक्षा। बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए, उनके विचार योग्य हों, प्रवृत्ति अच्छी बने इस दृष्टि से जो जो बताना होता था वो मैं कथाओं के माध्यम से बताती थी। अनेक प्रस्तावित पाठ्यक्रमों को चलाने के अनुभव के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच गई कि कथा सबसे परिणामकारक माध्यम है। । अतः, अपनी संस्कृति के महान तत्व प्रत्येक कक्षा में सुयोग्य कथा के माध्यम से बताऊँगी, ऐसी मैंने योजना बनाई।
आधुनिक भारत के शिल्पी सरदार पटेल
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन एवं आजादी के बाद आधुनिक भारत को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण, ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे।
आइए नशामुक्त भारत बनाएं
नशे के विरुद्ध जागरूकता पैदा करें संचार माध्यम
साइकिल प्रशिक्षण तीन चरणों में
उस दिन सोशल मीडिया में साइकिल चलाने के तीन चरणों के सम्बन्ध में पढ़ने को मिला। उस पोस्ट के अनुसार, हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी,
मोहनलाल मास्साब
औसत से कुछ ऊँचा कद, गेहुंआ रंग, गोल चेहरे पर सोहसे भरी चमकीली आँखें और रिबलाड़िचों जैसा स्वस्थ्य शरीर..., यह थे मोहनलाल पाटक! हमारे प्राथमिक विद्यालय के सबसे युवा मास्टर साहब ।
स्वर्णिम भारत
भारत के लिए ऐतिहासिक रहा टोक्यो ओलम्पिक'
आध्यात्मिक-सांस्कृतिक विरासत का केन्द्र बनेगा काशी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धर्मिक पर्यटन का जो स्वरूप बदला है, उससे अयोध्या के बाद बनारस में भी पर्यटन बढ़ेगा। वैसे भी काशी विश्वनाथ के मन्दिर की गिनती बारह ज्योतिलिंगों में शामिल है।
नारी शक्ति और उसका जागरण
नारी शक्ति और उसके जागरण के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द की विचारवृष्टि बड़ी उदात्त और प्रासंगिक है। स्वामी विवेकानन्द ने नारी जाति, विशेषतः भारतीय नारी की महिमा को विश्वपटल पर प्रतिष्ठित किया है। उनके अनुसार 'ईश्वर की प्रथम अभिव्यक्ति वह हाथ है जो पालना झुलाता है।' नारी का परमोत्कर्ष मातृत्व में है और माँ परमात्मा का स्वरूप है।
महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा और उपाय
कानून कड़े बना दिए, पुलिस तन्त्र कार्यक्षम हो गया तब भी अपराधों में कमी आती दिखाई नहीं देती। किशोरी या खी विषयक अपराधी भाव कैसे तैयार होता है? इस पर व्यापक चिन्तन व सुरक्षा के सर्वसमावेशक प्रयत्न होना आवश्यक है।
मैं अपने मन की स्वामिनी
'श्रेयस' और 'प्रेयस' का विवेक रखनेवाली 'मन की स्वामिनी' मुझे बनना ही चाहिए। अन्यथा मैं मन की गुलाम बन जाऊँगी। उदाहरणार्थ, एक किशोरी एक बड़े से कुत्ते को घुमाने ले जाती है। वह कुत्ता जहाँ तहाँ दौड़ता रहता है; किशोरी उसके पीछे-पीछे दौड़ती है। अब इसे क्या कहा जाए कि, किशोरी कुत्ते को घूमा रही है या कुत्ता किशोरी को घूमा रहा है? यदि मैं अपने 'मन की स्वामिनी' न बनी तो मन मुझे गुलाम बना ही लेगा।