28 मई, 2023 को 'सेंगोल' 28 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ने लोकसभा के नए भवन में अध्यक्ष के पीठासन के समीप स्थापित किया गया। पूर्व में यह सेंगोल 14 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता की प्राप्ति से कुछ समय पूर्व तिरुवदुथुराई मठ के प्रमुख, परम पावन श्री अंबावन बंडारा सन्नधा द्वारा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को मन्त्रोच्चारण के साथ सौंपा था।
बाद में यह इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया गया था। अब सरकार ने उस सेंगोल को पुन: अधीनम् मठ के सन्तों तथा पुजारियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपकर नए संसद भवन में स्थापित किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स एवं सरकारी सूचना में दावा किया गया है कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पं. जवाहरलाल नेहरू से सवाल किया था कि "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तान्तरण के प्रतीक के रूप में किस परम्परा का पालन किया जाना चाहिए?”
इस प्रश्न पर नेहरू जी ने सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) से परामर्श किया और यह तय किया गया कि चोलकालीन समारोह, जिसमें एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तान्तरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था, की परम्परा का पालन किया जाए तब राजाजी ने तमिलनाडु के तंजावुर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठतिरुवावटुतुरै अधीनम् से संपर्क किया। अधीनम् के प्रधान ने तुरन्त पाँच फुट लम्बाई के 'सेंगोल' को तैयार करने के लिए चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।