वास्तव में ज्ञानवृद्ध ही सच्चा ज्ञानी है. विद्वान है जबकि तन से वृद्ध पाखण्डी हो सकता है अथवा महज उसने अपनी आयु को पशु के समान ही भोग किया है। यथा जब राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र को एक दरबारी द्वारा रोका जाता है, तब अष्टावक्र उस द्वारपाल से कहते हैं "आग की एक छोटी सी चिंगारी भी पूरे जंगल को जलाकर खाक कर देती है।
बाल पकने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता और न ही धनाढ्य और कुलीन होने से कोई बड़ा। ज्ञान की साधना करने वृद्ध और महत्त्वपूर्ण होता है। मैं ज्ञानवृद्ध हूँ। इसलिए मुझे अन्दर जाने दो और आचार्य बन्दी से शास्त्रार्थ करने दो।” यानी यहाँ दर्शनशास्त्र में दो तरह के वृद्ध कहे गए हैं - एक ज्ञानवृद्ध और एक शरीर वृद्ध अर्थात् आयु वृद्ध।
अब विद्या की बात करते हैं। वह जो हमें सारी भ्रान्तियों, पीड़ाओं, शुभ आदि से मुक्ति दिलाए, वह विद्या है। जो हमें द्वैत के भाव से, हम दो के विचार से अलगाव के विचार से, तुम और मैं के भेद से मुक्ति दिलाए, वह विद्या है। विद्या दृष्टि देती है, जिससे मनुष्य अपने ब्रह्मरूप को पहचान सके। विष्णुपुराण के (1-19-41) श्लोक में कहा गया है-
तत्कर्म यन्न बंधाय सा विद्या या विमुक्तये।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।