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प्रार्थना की ऊर्जा आनंददायी है
ज्ञानार्जन के मार्ग में प्रार्थी भाव का होना जीवनभर के आनंद और संतुष्टि की कुंजी है। बच्चों को प्रार्थना करना सिखाना उन्हें निराशा से दूर रखने में मददगार होगा। इस पर विश्वास, इसके अभ्यास का आधार है।
भीतर से आता है उत्सव
पर्व शब्द से ही पर्वत बना है। पहले कम ऊंची चोटी वाले, फिर उससे ऊंचे, फिर उससे ऊंचे पर्वत दिखाई देते हैं जो कहते हैं कि सही अर्थों में 'पर्व' ही है जो हमारी चेतना को उत्तरोत्तर ऊंचाई की ओर ले जाते हैं।
कुछ तो है!
भविष्यवक्ता तो आगामी के बारे में बताते ही हैं, कभी-कभी आम लोगों को भी पूर्वाभास हो जाते हैं। हम किसी को याद करते हैं और उसी क्षण उसका फोन आ जाता है। दिल कहता है कि यात्रा टाल दो और बाद में पता चलता है कि वह गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह मानव की छठी इंद्रिय है या सामूहिक चेतना या फिर महज़ संयोग?
दांपत्य के चार रहस्य
गृहस्थी में होते हुए भी हम इसके बारे में बहुत कुछ समझ नहीं पाते। अगर ये चार चीज़ें भी जान लें तो गृहस्थी काफ़ी आसान और सुखद हो जाएगी...
मेरी दोस्ती मेरी फटकार
कहावत है कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे मित्र मान लेना चाहिए। आज के दौर में भी अभिभावकों को किशोरवय संतानों के साथ दोस्ती कर लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन क्या बच्चों का दोस्त बन जाना ही पर्याप्त है ? क्या सख़्ती से बात बिगड़ ही जाएगी? कब दोस्ताना रहना है और कब कठोर होना है? सवाल कई हैं और जवाब भी कोई एक नहीं है।
एक नई सार्वजनिक नैतिकता
जीवित प्राणियों को वस्तु की तरह देखने वाली. उपभोक्तावादी दृष्टि आधुनिक सभ्यता का शाप है। अगर आप इस पर आवाज़ नहीं उठाएंगे तो आपसे कोई शिकायत नहीं करने वाला है। क्रूरता पर सर्वसम्मति बना ली गई है। लेकिन इससे सच नहीं छुप जाता और वह सच घृणित है।
नौ रूपों में नारी जीवन
देवी के नौ रूपों में नारी के वे सद्गुण परिलक्षित होते हैं जिनके कारण स्त्री को देवी माना गया है। इन्हीं नौ रूपों में एक स्त्री के जन्म से अंत तक के सारे रूप अभिव्यक्त होते हैं। इस तरह नवरात्र में नवदुर्गा के रूप में लोक नारी की संपूर्ण जीवनयात्रा को ही नमन करता है।
आदत छूटे तो आज़ादी मिले
बुरी आदतें तो ख़ैर त्याज्य हैं ही, पर अच्छी आदतों की भी बुरी बात यह है कि उनके चलते हम यंत्रवत हो जाते हैं, मशीन की तरह जीने लगते हैं। इसलिए आदत कैसी भी हो, उसे छोड़ना ज़रूरी है, ताकि हम अपनी स्वतंत्र हस्ती को जान पाएं।
सात वार, नौ त्योहार
सात वार, नौ त्योहार की कहावत हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति का सार है। इसका अर्थ है आनंद मंगल होना। हमारे लिए तो हर दिन उत्सव है, पंचांग के लिहाज़ से भी और हमारी परंपरागत दिनचर्या और व्यवहार के हिसाब से भी। आधुनिक जीवन की आपाधापी और मूल्यों के बदलाव में हम भले ही कहीं और खुशियां खोजने लगे हैं, लेकिन असल आनंद तो पर्व-उत्सवों में ही है। ऐसा क्यों है, इसकी पड़ताल से वे सूत्र मिलेंगे जो आपके हर दिन को उत्सव बना देंगे।
अदायगी के रंग अनंत
74 बरस के अनंत महादेवन काफ़ी पहले ही अभिनय, निर्देशन और पटकथा लेखन में एक पुख्ता पहचान बना चुके हैं। उन्होंने व्यावसायिक और कला, दोनों तरह के सिनेमा में कामयाबी पाई है जो बिरलों को ही नसीब होती है। बावजूद इसके वे कहते हैं कि अभी अपने सपनों का दस फ़ीसदी भी हासिल नहीं किया है तो इसलिए कि नाम की तरह उनके सपनों का विस्तार भी अपार है। जिस उम्र में लोग आराम के बारे में सोचते हैं, वे शिद्दत से ऐसा काम तलाश रहे हैं जो सौ बरस तक दर्शकों के दिलों में ज़िंदा रहे। इस बार बहुआयामी प्रखर प्रतिभा के धनी अनंत महादेवन बतौर अहा ! अतिथि सुना रहे हैं अपनी कहानी।
उन्नति के लिए आभार
अपने जन्म के लिए, जीवन के लिए, कामकाज और सफलता के लिए, हर चीज़ के लिए आभार प्रकट करें। जब आप आभार जताते हैं तो आपको और भी आशीष व सहयोग मिलता है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति होती है।
अंतरिक्ष केंद्र सतीश धवन
श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम जिनके नाम पर 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' है, वे सही मायनों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के केंद्र रहे हैं।
हरी-हरी धरती पर हर
वर्षा की विदाई वेला है। नदियों का कलकल निनाद गूंज रहा है, धरती ने हरीतिमा की चादर ओढ़ रखी है, प्रकृति का हर हिस्सा खिला-खिला, मुस्कराता-सा लग रहा है।
गजानन सुख कानन
भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी श्रीगणेश के आगमन की पुण्यमय तिथि है। देव अपना लोक छोड़ मर्त्य मानवों के निवास में उन्हें तारने आ बैठते हैं।
जब मंदिर में उतर आता है चांद
यायावर के सफ़र में तयशुदा गंतव्य तो उसका पसंदीदा होता ही है, राह के औचक पड़ाव भी कोई कम मोहक नहीं होते। बस, दरकार होती है एक खुले दिल और उत्सुक नज़र की। महाराष्ट्र के फलटण से खिद्रापुर के बीच की दूरी यात्रा की परिणति से पहले के छोटे-छोटे आनंद को संजोए हुए है इस बार की यायावरी।
भावनाओं के क़ैदी...
भावनाएं और तर्क हमारे व्यक्तित्व के दो अहम हिस्से हैं और दोनों ही ज़रूरी हैं। लेकिन कभी भावनाएं प्रबल हो जाती हैं तो तार्किक बुद्धि मौन हो जाती है। इसके चलते तनाव बेतहाशा बढ़ जाता है, आवेग में निर्णय ले लिए जाते हैं और फिर अक्सर पछताना ही पड़ता है। यही 'इमोशनली हाईजैक' होना है। जीवन का सुकून इससे उबरने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।
मेरा वो मतलब नहीं था!
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
...जहां चाह वहां हिंदी की राह
भाषा के मामले में असल चीजें हैं प्रवाह और प्रयोग...हिंदी शब्द समझने में सरल होंगे, अर्थ को ध्वनित करेंगे, और उनका नियमित प्रयोग होगा तो किसी भी क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की घुसपैठ के लिए कोई बहाना ही नहीं बचेगा...
हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
पहले हमने दुनिया को विज्ञान का ज्ञान दिया और अब खुद एक विदेशी भाषा में विज्ञान पढ़ रहे हैं। इस बीच आख़िर हुआ क्या? विज्ञान आगे बढ़ गया और हिंदी पीछे रह गई या फिर हमने अपनी भाषा की क्षमता को जाने बग़ैर ही उसे अक्षम मान लिया?
फिल्म नगरिया की भाषा
कितनी अजीब बात है कि हिंदी फिल्म उद्योग की भाषा हिंदी नहीं है। हिंदी फिल्मों में शुद्ध हिंदी का मज़ाक़ बनाया जाता है। सेट पर बातचीत अंग्रेज़ी में होती है, पटकथा अंग्रेज़ी में लिखी जाती है और संवाद रोमन में। हिंदी फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले सितारे हिंदी बोलने में हेठी देखते हैं। हालांकि इस घटाटोप के बीच अब आशा की कुछ किरणें चमकने लगी हैं...
हिंदी किताबों में हिंदी
कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?
हस्ती जमील अदाकारी अज़ीज़
जमील ख़ान और अमिताभ बच्चन में तीन बातें समान हैं: दोनों शेरवुड नैनीताल में पढ़े हैं, दोनों ने 'चीनी कम' में काम किया, और दोनों को छोटे पर्दे ने लोगों के दिलों में बसाया और अपार सम्मान दिलाया। वेबसीरीज़ 'गुल्लक' में पिता यानी संतोष मिश्रा का किरदार निभाने वाले जमील ने लंबे संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने सिद्ध किया कि क़द-काठी से अधिक मायने रखती है अभिनय क्षमता और कुछ कर दिखाने की गहरी इच्छा। अरबी शब्द जमील का अर्थ होता है, सुंदर। अपने नाम के अनुरूप ख़ूबसूरत विचारों वाले जमील ख़ान बतौर अहा! अतिथि पाठकों से रूबरू हैं...
आप क्या चुन रहे हैं?
बक़ौल अमेरिकी लीडर विलियम जेनिंग्स ब्रायन, 'भाग्य संयोग से नहीं बनता है। यह तो आपके चयन से बनता है।' इसलिए हमेशा सचेत रहें कि आप किस बारे में सोच रहे हैं और दूसरों की अच्छी चीज़ों को देखकर कैसा महसूस कर रहे हैं। आप जीवन के कैटलॉग से चुनाव अपनी भावनाओं के ज़रिए करते हैं।
अपने दुश्मनों से दो-दो हाथ कीजिए
समय निकालिए ताकि आप कुछ ऐसा कर सकें, जिससे आप अपने जीवन में लय और आनंद को वापस हासिल कर सकें। ऊब और थकान आपके दो दुश्मन हैं। इनसे दो-दो हाथ कीजिए क्योंकि ये आपका वक़्त क़त्ल कर रहे हैं।
खेत में ख़ुशहाली की फ़सल
प्राकृतिक खेती में पारंगत कानसिंह निर्वाण को सिर्फ़ साक्षर होते हुए भी समझ आ गया कि प्राकृतिक खेती, मूल्य संवर्धन और खुद कृषि विपणन करने के साथ कृषि पर्यटन को अपनाना ग्रामीण खुशहाली की बेहतरीन पगडंडी है। उनकी कहानी, उनकी जुबानी...
सबै भूमि गोपाल की
गोपालगंज! प्राचीन गोपाल मंदिर की भूमि | अपनी अलहदा पहचान के साथ आबाद है यह शहर | इसके मनोहारी रूप में एक ओर तीखे तेवर का चटकारा है तो दूजी ओर हर एक के प्रति अपनेपन का लिहाज़ भी । मिठास इतनी कि कचहरी तक में परस्पर विरोधी पक्ष साथ आते और मिलकर खाते हैं। ऐसे निराले शहर की गाथा इस बार शहरनामा में ...
अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले
जन्म के सौ साल बाद तथा मृत्यु के लगभग तीस साल बाद भी हरिशंकर परसाई की रचनाएं उसी प्रकार पढ़ी जा रही हैं, जिस प्रकार आज से तीस, चालीस, पचास साल पहले पढ़ी जा रही थीं। सोशल मीडिया पर तैर रहे उनके व्यंग्य-अंशों के साथ लगा हुआ नाम हटा दिया जाए तो कोई विश्वास नहीं करेगा कि वे चालीस-पचास साल पहले लिखे गए हैं, आज के नहीं हैं। दूसरे बड़े और महान लेखकों के मामले उनके नाम काल को जीता है, वहीं हरिशंकर परसाई के मामले में उनकी रचनाओं ने काल को जीता है। परसाई की ही रचना 'टॉर्च बेचने वाले' के शीर्षक को कुछ बदलकर कहें तो वे बेचने वाले नहीं, अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले हैं। कालजयी हरिशंकर परसाई और उनकी क़लम का सफ़र इस बार ज़िंदगी की किताब मेंविशेष अवसर है इस महीने की 22 तारीख़ को परसाई जयंती का....
विशिष्ट है यह किरण
विज्ञान की एक अनोखी खोज जो कैंसर के जन्म का कारण भी बनी और कैंसर निवारक भी। कभी जादू कहलाकर इंसान के भीतर झांकने वाली ऊर्जा विकिरण की यह तकनीक कैसे प्राणघातक होते हुए भी जीवनदायिनी बनी, जानिए इस बार आगामी अतीत में।
वेदों में वृक्ष
निरंतर बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण का समाधान हमारी वैदिक ऋचाओं में समाया है। हमारी प्राच्य विद्याओं में फैली असंख्य रचनाओं में सर्वत्र प्रकृति-प्रेम और पर्यावरण चेतना का तुमुलनाद है। इसे आत्मसात करके ही हम एक सुखद भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
ऐसी भी क्या जल्दी है
सड़क पर कोई गाड़ी आंधी की रफ़्तार से बग़ल से गुजरे तो सहसा मुंह से यही निकलता है कि भई ... जो दूसरों की जान जोखिम में डाल दे? इसलिए, थोड़ा ठहरिए और जानिए कि जल्दबाज़ी इस युग में क्यों बन गई है बीमारी।