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ईरान के कट्टर राष्ट्रपति का दर्दनाक अंत
हैलिकप्टर दुर्घटना में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत पर जहां कुछ देशों ने अफसोस जाहिर किया है तो कई बहुत खुश हैं. इजराइल के कई यहूदी धर्मगुरुओं ने रईसी की मौत पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणियां की हैं. तानाशाहों के बारे में लोगों की राय कुछ ऐसी ही होती है और उन का अंत दर्दनाक होता है.
संविधान की शक्ति गुलामी और भेदभाव से मुक्ति
संविधान एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में स्थापित हो चुका है जो लोगों को हर तरह की सुरक्षा देता है. यह दस्तावेज सभी के अधिकारों की असल गारंटी है. इस के छिनने की चर्चाभर से आम लोग बेचैन हो उठते हैं क्योंकि वे घुटन और शोषण के दौर में वापस नहीं जाना चाहते. तो फिर क्यों इस पर हिंदूवादी आएदिन बवंडर मचाते रहते हैं, पढ़िए इस खास रिपोर्ट में.
50 प्लस की एंड यंग हौट ब्यूटीज
बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति की सुंदरता कम होने लगती है. उम्र के साथ चेहरे पर लकीरें नजर आना और शरीर में थोड़ी चरबी का बढ़ना आम बात है. लेकिन फिल्म जगत में ऐसी कई अदाकाराएं हैं जिन्होंने अपनी खूबसूरती से उम्र को मात दी है. बढ़ती उम्र के साथ ये ऐक्ट्रैसेस और ज्यादा खूबसूरत होती जा रही हैं.
खुशी हमारी मुट्ठी में
जिंदगी में हमेशा खुश रहने के साथ स्वस्थ, सक्रिय व संतुष्ट जीवन बिताना चाहते हैं, तो यह जानकारी आप के लिए ही है.
मैट्रो और मोबाइल
मोबाइल का गलत उपयोग करना कितना गलत परिणाम देता है, यह मुझे तब पता चला जब मैं एक दिन मैट्रो में सफर कर रहा था. विश्वास न हो खुद ही जान लीजिए ताकि आप को भी एहसास हो ही जाए.
करीबी रिश्ते में खटास लाए बीमारियां
रिलेशनशिप में खटास न सिर्फ मैंटल हैल्थ को प्रभावित करती है बल्कि फिजिकल हैल्थ पर भी इस का बुरा असर पड़ता है क्योंकि इस से होने वाले स्ट्रैस से कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं.
एबौर्शन का फैसला औरत का ही हो
भारत के अनाथाश्रमों में लाखों की संख्या में ऐसे नवजात शिशु पल रहे हैं जिन को पैदा कर के मरने के लिए सड़कों, कूड़े के ढेर, नालियों व गटर में फेंक दिया गया. क्यों? क्योंकि समय पर गर्भवती अपना गर्भ गिराने में नाकाम रही और मजबूरन उसे अनचाहे बच्चे को जन्म देना पड़ा.
क्यों घर से भाग कर पछताती नहीं लड़कियां
कम उम्र की लड़कियों के घर से भागने की वजहें, थोड़ी ही सही, बदल रही हैं. माना यह जाता है कि लड़कियां आमतौर पर फिल्मों में हीरोइन बनने के लिए भागती हैं और नासमझी के चलते कोई भी उन्हें इस बाबत बहका लेता है.
दहेज से जुड़ी मौतें जिम्मेदार कौन
दहेज हत्या मामले में अकसर लड़के और उस के घर वालों को हिरासत में ले लिया जाता है. मगर क्या सही में दहेज से जुड़े मामलों में हमेशा सारा दोष लड़के या उस के घर वालों का ही होता है? कई बार इस के लिए दोषी खुद लड़की, उस के घर वाले और हमारा समाज भी होता है.
एकादशी महात्म्य - एकादशियों की ऊलजलूल कथाएं बनाम लूट का साधन
एकादशी के कर्मकांड अधिकतर संपन्न व खातापीता तबका करवाते दिखाई देता है. वे बड़े चाव से इस की ऊलजलूल कथाएं सुनते हैं, लेकिन शायद ही वे इस पर कोई सार्थक विमर्श कर पाते हैं या सवाल खड़े कर पाते हैं. अगर वे चिंतनशील होते तो जान जाते कि कैसे एकादशी कर्मकांड पंडों के लूट का साधन के सिवा और कुछ नहीं.
गुड गवर्नेस को मुंह चिढ़ाता पेपर लीक
'मैं अब और जीना नहीं चाहता, मेरा मन भर गया है. मेरी मौत के बाद किसी को परेशान न किया जाए. मैं ने अपनी बीएससी की डिग्री जला दी है. ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जो एक नौकरी न दिला सके.' पेपर लीक से परेशान व निराश युवा बृजेश पाल ने अपनी जान दे दी. यह उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रहने वाले बृजेश पाल की ही व्यथा नहीं है, देश के कई मजबूर व बेरोजगार नौजवानों की भी यही कहानी है.
प्रज्वल रेवन्ना - राजनेता और पोर्न फिल्मों का धंधेबाज
पोर्न फिल्में अब हर किसी की जरूरत बन चुकी हैं. लोग इन्हें उत्तेजना के लिए भी देखते हैं और कई इन्हीं के जरिए जिज्ञासाएं शांत करते हैं. यह देह व्यापार की तरह का अपराध है जिसे कानूनन तो क्या, किसी भी तरीके से बंद नहीं किया जा सकता. वजह, इस का नैसर्गिक होना है. टैक्नोलौजी ने इस की पहुंच सस्ती और आसान भी कर दी है. पोर्न इंडस्ट्री की अपनी अलग दुनिया है लेकिन इस में हलचल तब मचती है जब प्रज्वल रेवन्ना जैसी कोई हस्ती इस में इन्वाल्व पाई जाती हैं.
क्या संत समाज ने बना लिया है सनातनी संविधान?
भाजपा सवर्णों को यह डर दिखा कर उन के वोट हासिल कर रही थी कि कांग्रेस सत्ता में आई तो तुम्हारे मंदिर मुसलमान लूट लेंगे, आरक्षण छिन जाएगा पर वहीं भगवा समाज समर्थक साधुसंत एक तथाकथित हिंदू राष्ट्र का संविधान बना रहे हैं. यह खयालीपुलाव है या भविष्य की ठोस योजना?
एक का फंदा
'एक देश एक चुनाव' का ढिंढोरा जम कर पीटा जा रहा है जिसे लागू कराने के लिए संविधान में कई संशोधन करने पड़ेंगे, इसलिए हो रहे आम चुनाव में भाजपा को 400 पार की जरूरत है. इस तरह की डैमोक्रेसी से व्यक्तिवाद और तानाशाही के खतरे बढ़ेंगे क्योंकि यह संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है.
दलबदलू सादर आमंत्रित हैं
जिस तरह गिरगिट का धर्म है रंग बदलना, उसी तरह दल बदलना नेताओं का धर्म है. अब इन नेताओं को देखिए, जिन्होंने दल बदल कर वह कारनामा कर दिखाया कि हमारे साथ आप भी दंग रह जाएंगे.
फिल्म कलाकारों में वजन बढ़ानेघटाने का राज
अकसर आप ने देखा होगा कि फिल्मों में कैरेक्टर बिल्डिंग के लिए कलाकार अपना वजन घटाते या बढ़ाते हैं. ऐसा करने के लिए वे किस तरह की ट्रेनिंग लेते हैं, आइए, जानते हैं.
मम्मीपापा मुझे प्यार नहीं करते
संतान छोटी हो या बड़ी, मातापिता के लिए सभी बराबर होनी चाहिए. यदि वे उन से भेदभावपूर्ण व्यवहार करेंगे तो घरपरिवार का माहौल खराब होगा जिस का खमियाजा सभी को भुगतना पड़ सकता है.
आईएएस की तैयारी करें जरूर मगर प्लान बी के साथ
आठदस साल स्टूडेंट की जिंदगी के सब से खूबसूरत होते हैं जब उस का मन उत्साह से भरा होता है लेकिन यही साल सिर्फ एग्जाम कंपीट करने की कोशिश व फ्रस्ट्रेशन में निकल जाएं तो इंसान चाह कर भी अपनी जिंदगी को उतनी खूबसूरती से नहीं जी सकता जैसी वह जी सकता था.
फलताफूलता धार्मिक यात्राओं का धंधा
धर्म के नाम पर लोगों को मनमाने तरीके से ठगना आसान है. लोग इस के लिए मुंहमांगी कीमत भी देने को तैयार रहते हैं. यही कारण है कि धार्मिक यात्राओं का बाजार भी उभर आया है, जहां भक्तों से पैसे ले कर ठगने की बातें भी सामने आई हैं.
फिल्मों में कैंसर लोगों को बीमारी के बारे में बताया या सिर्फ इसे भुनाया
लाइलाज बीमारी कैंसर का हिंदी फिल्मों से ताल्लुक कोई 60 साल पुराना है. 1963 में सी वी श्रीधर निर्देशित राजकुमार, मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म 'दिल एक मंदिर' में सब से पहले कैंसर की भयावहता दिखाई गई थी लेकिन 'आनंद' के बाद कैंसर पर कई फिल्में बनीं जिन में से कुछ चलीं, कुछ नहीं भी चलीं जिन की अपनी वजहें भी थीं, मसलन निर्देशकों ने कैंसर को भुनाने की कोशिश ज्यादा की.
मोबाइल नंबर की अनिवार्यता
आज मोबाइल हमारे जीवन का जरूरी अंग बना दिया गया है. हम चाह कर भी इस के बिना नहीं रह सकते. सभी चीजें औनलाइन कर दी गई हैं. कुछ काम तो सिर्फ औनलाइन तक ही सीमित रह गए हैं. ऐसे में एक गरीब को भी मोबाइल खरीदना जरूरी हो गया है.
घर में बनाएं जिम
जिम में जा कर ऐक्सरसाइज करने से अधिक सुविधाजनक यह है कि घर में ही अपना जिम बनाएं घर के जिम में आवश्यक ऐक्सरसाइज इक्विपमैंट ही रखें, जिस से कम बजट में इस को तैयार किया जा सके.
अधेड़ उम्र में शादी पर सवाल कैसा
आयु का इच्छाओं से कोई संबंध नहीं है. अगर आप अपने बलबूते पर, खुद के भरोसे 60 वर्ष की आयु में भी शरीर बनाना चाहते हैं, दुनिया की सैर करना चाहते हैं, किसी हसीना के साथ डेट पर जाना चाहते हैं या शादी करना चाहते हैं तो भई, इस पर सवाल कैसा?
गरमी में भी सब्जियों और फलों को ऐसे रखें ताजा
गरमी में सब्जियां, खासकर हरी सब्जियां, जल्दी खराब होती हैं. ऐसे में वे आसान तरीके जानिए जिन से सब्जियों को जल्दी खराब होने से बचाया जा सकता है.
वौयस क्लोनिंग का खतरा
आजकल वौयस क्लोनिंग के जरिए महिलाओं को बेवकूफ बनाया जा रहा है. एआई की मदद से प्रेमी, भाई या किसी अन्य परिजन की आवाज में कौल कर पैसे ऐंठे जा रहे हैं जो डिजिटलीकरण की कमियां दिखा रहा है.
जीने की आजादी है महिलाओं का बाइक चलाना
पुरुषों के लिए बाइक चलाना सामान्य बात मानी जाती है मगर कोई महिला बाइक चलाए तो उसे हैरान नजरों से देखा जाता है.
हीनता और वितृष्णा का प्रतीक पादुका पूजन
भारत में गुरु तो गुरु, उन की पादुकाएं तक पैसा कमाती हैं. इसे चमत्कार कहें या बेवकूफी, यह अपने देश में ही होना संभव है. धर्मगुरुओं ने प्रवचनों के जरिए लोगों में आज कूटकूट कर इतनी हीनता भर दी है कि वे मानसिक तौर पर अपाहिज हो कर रह गए हैं.
फ्रांस में गर्भपात पर फैसला मेरा शरीर मेरा हक
फ्रांस में गर्भपात कानून में बदलाव के बाद पूरी दुनिया में इस पर बहस छिड़ गई है कि इस का नतीजा क्या होगा?
बाल्टीमोर ब्रिज हादसा पुल के साथ ढहा भारतीय आत्मसम्मान
अमेरिका और अमेरिकी बहुत ज्यादा उदार नहीं हैं. विदेशियों, खासतौर से अश्वेतों के प्रति उन के पूर्वाग्रह, कुंठा, जलन और हिंसा सहित तमाम तरह के भेदभाव दैनिक सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं जिन की तुलना हमारे देश में दलितों से किए जाने वाले व्यवहार से की जा सकती है. बाल्टीमोर पुल हादसे के बाद यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि हमारी सरकार ने इस से कोई सरोकार नहीं रखा.
बेंगलुरु में जल संकट पूरे देश के लिए चेतावनी
बेंगलुरु में जल संकट पूरे देश के लिए चेतावनी से कम नहीं है. आज बड़ीबड़ी इमारतों में रहना भले लग्जरी लाइफस्टाइल का हिस्सा बन जाए पर बिना जल के जीवन नहीं. हमें बढ़ते जल संकट के बीच 2000 साल पहले बने रोमन साम्राज्य के एक्काडक्टों को भी समझना जरूरी है जिन्होंने अपने नगरवासियों को पानी सुगमता से पहुंचाया. आज आधुनिक तकनीक के बावजूद लोगों तक पानी क्यों नहीं पहुंच पा रहा, यह सवाल सामने खड़ा है.