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कीटनाशक स्प्रे का किसानों पर बढ़ता प्रभाव...
कृषि में बढ़ता कीटनाशकों का प्रयोग भारत सहित दुनिया भर में किसानों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। एक तरफ फसलों में छिड़का जाने वाला यह जहर कीटों को खत्म करता है, साथ ही इसके संपर्क में आने वाले पौधों, जानवरों और दूसरे जीवों पर भी प्रतिकूल असर डालता है। यहां तक कि इसके संपर्क में आने वाले किसानों के स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
नाइट्रोजन खाद का उचित प्रयोग करने वाली धान की किस्में
भारतीय वैज्ञानिकों ने पाया है कि धान की कुछ किस्में नाइट्रोजन का इस्तेमाल अन्य किस्मों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से करती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की विभिन्न किस्में प्राकृतिक तौर पर नाइट्रोजन का उपयोग कितनी दक्षता से करती हैं, उसमें पांच गुणा अंतर है।
गुलाबी सुंडी पर नियंत्रण करने के लिए तैयार की एक नई तकनीक
कपास की फसल में लगने वाली गुलाबी सुंडी एक खतरनाक कीड़ा है, जो फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह कीड़ा कपास के फूलों पर हमला करता है, जिससे कपास की खेती करने वाले किसानों को गुलाबी सुंडी की वजह से पैदावार में 50 से 60 प्रतिशत तक का नुकसान हो रहा है।
अधिक फास्फोरस व नाइट्रोजन खादों के उपयोग के कारण बढ़ रहा नुकसान
दुनिया भर में फास्फोरस के जरूरत से ज्यादा उपयोग के कारण इसकी भारी मात्रा बर्बाद हो रही है। इस बात का खुलासा लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी और रॉयल बोटेनिक गार्डन के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
अरहर की फसल में कीट प्रबंधन
खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर का महत्वपूर्ण स्थान है। अरहर की खेती कई तरह की कृषिगत जलवायु में की जा सकती है। हमारे यहां इसकी खेती लगभग पूरे प्रदेश व खासकर वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में की जाती है क्योंकि अरहर की खेती बारिश के मौसम में की जाती है तो इस फसल में कीटों का प्रकोप लगभग रहता ही है।
आधुनिक कृषि की वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। यहां की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। आज के समय में कृषि क्षेत्र में कई परिवर्तन और चुनौतियां देखी जा रही हैं।
बैंगन लगायें मुनाफा कमाएं
बैंगन (सोलेनम मैंलोजेना) सोलेनेसी जाति की फसल है जो कि आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी की फसल है। बैंगन की खेती प्राचीन काल से भारत में होती आ रही है बैंगन की खेती साल भर की जाती है।
स्प्रे टैक्नॉलोजी का उचित प्रयोग
स्प्रे करने के लिए सही नोज़ल का चुनाव एवं उसका उचित प्रयोग करना बहुत आवश्यक है। दवाओं को सही स्थान पर पहुंचाने का कार्य छिड़काव करने वाले यंत्र ही करते हैं। सही छिड़काव करने के लिए नोज़लों की बहुत बड़ी अहमियत है। स्प्रे करते समय नोज़लों का सही चुनाव होना बहुत आवश्यक है।
बाजरा में पोषक तत्व प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
आमतौर पर बाजरा की खेती कम उर्वरता की भूमियों में खाद और उर्वरकों की थोड़ी मात्रा में प्रयोग करके उगाई जाती है, परन्तु अच्छी पैदावार प्राप्त करने के उद्देश्य से समुचित मात्रा में सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक होता है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना फायदेमंद है।
गुलदाउदी की खेती से आमदनी बढ़ाएं किसान
गुलदाउदी के फूल आकर्षक और मनमोहक होते हैं। गुलदाउदी का उपयोग डंडी वाले या कट फ्लावर के रूप में गुलदस्ते बनाने तथा घरों एवं कार्यालय में सजावट के लिए गुलदान में रखने के लिए किया जाता है।
हरी खाद-स्वस्थ भूमि व अधिक उपज
भूमि की उपजाऊ शक्ति और फसलों की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी के भौतिक, जैविक एवं रासायनिक गुणों की सही मात्रा और बढ़िया अवस्था में होना बहुत जरूरी है। परन्तु, रासायनिक खादों के अंधाधुंध उपयोग, सघन कृषि, गेहूं- धान फसल चक्र एवं अति विश्लेषित खादों के प्रयोग से न सिर्फ लोगों की सेहत खराब हो रही है, बल्कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी नुकसान हो रहा है।
भारत डेयरी में विश्व नेता बन सकता है?
भारत का डेयरी उद्योग, दशकों के सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी से मजबूत होकर, दुनिया में सबसे बड़ा है। 1965 में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना भारत के ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए डेयरी को एक साधन में बदलने के लिए की गई थी।
देसी बीजों के लिए केन्याई कानून के खिलाफ आंदोलन
केन्या के बीज और पौध किस्म अधिनियम की धाराओं के खिलाफ विरोध का स्वर बढ़ता जा रहा है, जो देशी, अप्रमाणित और अपंजीकृत बीजों के आदान-प्रदान पर रोक लगाता है। किसानों और कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया है कि ये प्रतिबंध कृषि नवाचार को बाधित करते हैं, खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालते हैं और छोटे पैमाने के किसानों के अधिकारों को कमजोर करते हैं।
मक्के की फसल में रोग प्रतिरोधकता के लिए नये बैक्टीरिया मिले
ब्रेवीबैक्टीरियम ने फफूंद से संक्रमित मक्के के पौधों में बीमारी को कम करने में मदद की। साथ ही इसके साथ अन्य जीवाणुओं ने विशिष्ट जीन और अणुओं को सक्रिय करके पौधों की प्रतिरक्षा को मजबूत बनाने में मदद की।
कसावा से बनेगा बायोप्लास्टिक...
दुनिया भर में बढ़ता प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, लेकिन नागालैंड के किसान जिस तरह इससे निपटने का प्रयास कर रहे हैं, वो अपने आप में एक उदाहरण है। नगालैंड के गांवों में कसावा की खेती को बढ़ावा देने की एक योजना पर काम शुरू हो गया है। इसकी मदद से कम्पोस्टेबल बायोप्लास्टिक बैग तैयार किए जाएंगे।
रोबोट का प्रयोग होगा अब ग्रीन हाऊस में...
ग्रीनहाउस के अंदर छिड़के जाने वाले रसायनों के कई हानिकारक प्रभाव होते हैं क्योंकि वे हवा में घुलते नहीं हो सकते हैं, जिस वजह से अगर किसान या कोई भी व्यक्ति उस हवा में सांस लेता है तो वो उसके अंदर जा सकता है। इसलिए, इस तरह का नवाचार मजदूरों के लिए वरदान है।
बरसात के मौसम में बकरियों का प्रबंधन
बरसात के मौसम में बकरियों का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन उचित योजना और देखभाल से आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपकी बकरियां स्वस्थ और उत्पादक रहें।
मानसून में डेयरी पशुओं का प्रबंधन
डेयरी पशुओं के लिए उचित देखभाल, सुरक्षा और प्रबंधन की आवश्यकता होती है ताकि जानवर अप्रिय मौसम में सुरक्षित रहें। नमी, अशुद्ध पानी और बरसात के मौसम में अधिक काम करने से पशुओं के स्वास्थ्य, उत्पादकता और दक्षता पर असर पड़ सकता है।
जूट उद्योग और कच्चे जूट का परिदृश्य
जूट उद्योग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। जूट 'स्वर्ण रेशा' के नाम से मशहूर है। जूट उद्योग का पहला कारखाना कोलकाता के समीप रिसरा नामक स्थान में 1859 में लगाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला उद्योग यही था, क्योंकि तत्कालीन 120 कारखानों में से 10 पूर्वी पाकिस्तान में चले गए थे, जबकि जूट उत्पादन का अधिकांश भाग उसके पास था।
जैविक खेती से फसलों की उत्पादकता में वृद्धि
प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र (पारिस्थितिकी तंत्र) निरंतर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यंत उपयोगी था।
परवल अधिकतम आमदनी देने वाली सब्जी
हमारे देश में किसान भाईयों को अगर अपनी आमदनी दोगुनी करनी हो या इससे भी अधिक आमदनी प्राप्त करनी है तो गेहूं-धान के साथ सब्जियों की ओर भी विशेष ध्यान देना होगा, क्योंकि सब्जियों की काश्त ही किसानों की आय को अन्य फसलों की अपेक्षा उम्मीद से बहुत ज्यादा आमदनी का श्रोत बन सकती है। थोड़ी सी मेहनत व कुछ श्रम के साथ इन सब्जियों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है जो आमदनी को दोगुनी चौगुनी बड़े आसानी से कर सकती है।
कांग्रेस घास पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा- इसका नियंत्रण कैसे करें
गाजर घास (Parthenium hysterophorus), जिसे कांग्रेस घास के नाम से भी जाना जाता है, गाजर जैसा दिखने वाला खरपतवार है। इसका तना रोयेंदार और गाजर जैसी दिखने वाली पत्तियों पर भी छोटे रोयें लगे होते है। इस पौधे की लंबाई 1 से 1.5 मीटर तक हो सकती है। इसका बीज बहुत छोटा होता है और एक पौधा लगभग 10000 से 25000 तक बीज पैदा कर सकता है जो जमीन पर गिरने के बाद नमी पाकर जल्दी अंकुरित होते हैं। यह पूरे साल फलता-फूलता रहता है। अत: 3 से 4 महीने में जीवन चक्र पूरी करने वाली यह घास एक साल में 3-4 पीढ़ी पूरी कर लेती है।
पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद वर्मीकम्पोस्ट
वर्मीकम्पोस्ट (vermicompost) एक ऐसी खाद है, जो विशेष प्रजाति के केंचुओं द्वारा बनाई जाती है। केंचुओं द्वारा गोबर एवं कचरे को खाकर, मल द्वारा जो चाय की पत्ती जैसा पदार्थ बनता है, यही वर्मीकम्पोस्ट है।
उद्यमी किसान के लिए फूड प्रोसैस्सिंग में अपार अवसर
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। यह चीन से पीछे है। परन्तु इसकी कृषि के क्षेत्र में इतनी क्षमता है कि यह दुनिया का नंबर एक देश बन सकता है। खाद्य एवं फूड प्रोसैस्सिंग के क्षेत्रों में बड़े निवेशों के बहुत अवसर आ रहे हैं।
बीजोपचार का कृषि में महत्व
कृषि क्षेत्र की प्राथमिकता उत्पादकता को बनाये रखने तथा बढ़ाने में बीज का महत्वपूर्ण स्थान है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए उत्तम बीज का होना अनिवार्य है।
धान में पोषक तत्व प्रबन्धन
धान हरियाणा की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसका मुख्य उत्पादन करनाल, कैथल, अम्बाला, कुरुक्षेत्र, पानीपत व यमुनानगर में किया जाता है। बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
तिलहन उत्पादन में गंधक पोषक तत्व महत्व
गंधक का पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में प्रमुख स्थान है। गंधक तिलहन फसलों में तेल निर्माण के लिए आवश्यक होने के कारण इन फसलों के लिए यह अद्वितीय तत्त्व माना गया है।
जलवायु संकट के कारण उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी तक घट सकती है धान की पैदावार
जलवायु परिवर्तन भारतीय किसानों के लिए एक कड़वी सच्चाई बन चुका है। न चाहते हुए भी देश में किसानों को इस अनजाने खतरे से जूझना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के किसान भी इन बदलावों से सुरक्षित नहीं हैं।
कृषि विकास के लिए वैज्ञानिकों को खेतों तक पहुंचना होगा ...
केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के जुड़ाव पर जोर देते हुए कहा कि सारे वैज्ञानिक साल में एक महीना खेत में जाकर किसानों को सिखाएं।
बड़े हो रहे खेत, खेती-बाड़ी को किस दिशा ले जाएंगे?
खेती का पेशा सभ्यतागत बदलाव के दौर में है। भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए टिककर खेती करने की यह मानवीय पहल 12,000 वर्ष से ज्यादा पुरानी है। जब मानव इस पेशे में उतरे थे, तब खेती केवल आवश्यकता आधारित थी। अब यह कई ट्रिलियन डॉलर का व्यवसाय बन चुकी है और वर्तमान में 60 करोड़ खेत दुनियाभर की 800 करोड़ की आबादी का पेट भर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में 1980 के दशक से जो परिवर्तन शुरू हुआ वो अगले 30 वर्षों में चरम पर पहुंच जाएगा। अब सवाल उठता है कि आखिर यह परिवर्तन है क्या?