Panchjanya - January 08, 2023Add to Favorites

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पांचजन्य के सागर मंथन संवाद से उपजी विकासपरक सुशान के अगले दौर की दिशा

मस्ती ही नहीं मंथन की भी धरती होगा गोवा

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने स्पष्ट कहा कि पूर्ण मुक्ति के लिए औपनिवेशिक मानसिकता से आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने गोवा को मौज-मस्ती की धरती से मंथन की धरती बनाने पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने गोवा के सर्वांगीण विकास के लिए अपनी योजनाओं का खाका भी खींचा। गोवा में पाञ्चजन्य के सागर मंथन कार्यक्रम के सुशासन संवाद में श्री प्रमोद सावंत के साथ पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के प्रमुख अंश

मस्ती ही नहीं मंथन की भी धरती होगा गोवा

7 mins

अटल जी ने शुरू की भारत जोड़ो यात्रा

देश को जोड़ने की शुरुआत मन को जोड़ने से होती है। मन से विचार और विचार से राष्ट्र जुड़ता है तो राष्ट्र आगे बढ़ता है। यह शुरुआत अटल जी ने सुशासन के जरिए की थी। हमें उनके विचारों को आधुनिक स्वरूप में लाने के लिए मंथन करना चाहिए। प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के सागर मंथन- सुशासन संवाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के वक्तव्य पर आधारित आलेख

अटल जी ने शुरू की भारत जोड़ो यात्रा

6 mins

अटल जी ने नींव डाली थी, आज घर है

अटल जी सबको साथ लेकर चलते थे। आदमी की परख उनको थी। किस आदमी को कहां लगाना है-यह प्रबंधन उन्होंने अच्छी तरह किया। उनकी सोच थी कि जब तक अच्छी तरह देश का विकास नहीं करेंगे, तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे। पाञ्चजन्य के सागर मंथन-सुशासन संवाद में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्रीपद नाइक से वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा की बातचीत के अंश

अटल जी ने नींव डाली थी, आज घर है

7 mins

अटल जी से सीखा कैसे जीयें जीवन

अटल जी को सुनना प्रेरित कर जाता था। हर बार उनसे कुछ सीखने को मिलता था। उनके ठहाके लोगों को प्रफुल्लित कर देते थे। उनका एक-एक कदम, उनकी भाव-भंगिमाएं संदेश देती थीं। सागर मंथन- सुशासन संवाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के अंश -

अटल जी से सीखा कैसे जीयें जीवन

5 mins

नीतिगत पंगुता पर प्रहार

अटल जी नीति-निर्धारण में व्यावहारिक दृष्टिकोण के हामी थे। नीतिगत पंगुता को खत्म करने के लिए उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिनसे देश की दशा और दिशा बदल गई। जहां सड़कों की मरम्मत तक चुनाव आने पर होती थी, वहां राज्यों के बीच एक्सप्रेसवे बनाने की स्पर्धा होने लगी। प्रस्तुत हैं सागर मंथन- सुशासन संवाद में नीति विशेषज्ञ वैभव डांगे से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के अंश

नीतिगत पंगुता पर प्रहार

10 mins

'बहुत उज्ज्वल है हिंदी का भविष्य'

'सागर मंथन' के सुशासन संवाद में एक सत्र हिंदी और स्व. अटल बिहारी वाजपेयी पर केंद्रित था। वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा के संचालन में हुए इस सत्र में वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी ने हिंदी के उज्ज्वल भविष्य पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसके संपादित अंश इस प्रकार हैं

'बहुत उज्ज्वल है हिंदी का भविष्य'

7 mins

अटल जी ने जगाया मातृभाषा के प्रति गौरव बोध

अटल जी जानते थे कि प्रभात प्रकाशन विशुद्ध साहित्यिक दायित्वबोध से प्रकाशन कर रहा है। अपने विचारों के अधिष्ठान और विचारों की संपुष्टि के लिए भारतीय जीवन मूल्य, भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रकाशन कर रहा है, इसलिए वे हमेशा आशीर्वाद देते थे

अटल जी ने जगाया मातृभाषा के प्रति गौरव बोध

5 mins

भारत का वायरसजीवी विपक्ष

कोरोना की अगली लहर चाहे आए या न आए, भारत को ऐसे संकट काल में चिताओं पर रोटियां सेंकने वालों से लगातार सतर्क रहना होगा। देखिए, पिछली बार क्या किया था उन्होंने...

भारत का वायरसजीवी विपक्ष

6 mins

मुक्ति की ओर 'मथुरा' !

मथुरा में श्रीकृष्ण की जन्मभूमि को लेकर हिन्दू समाज में उत्साह की वैसी ही लहर है, जैसी काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर को लेकर है। काशी में न्यायालय के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण हुआ और अब उसी आधार पर यह मामला अदालत में आगे बढ़ रहा है। ठीक उसी तर्ज पर मथुरा का मामला भी आगे बढ़ता दिख रहा है

मुक्ति की ओर 'मथुरा' !

6 mins

भारत के 'ठीकरावादी' इतिहासकार

प्रपंची इहासकारों की निगाह में भारत भूमि पर कोई भी इसका मूल निवासी नहीं है। कोई एशिया से आया, ईरान, यूरोप, उत्तरी अफ्रीका तो कोई भूमध्यसागर के निकटवर्ती प्रदेशों से आया। देश के लोगों को अपने इतिहास को जानना होगा, करारा जवाब देना सीखना होगा। अपने इतिहास को पढ़ना-जानना और अगली पीढ़ियों तक सर्वश्रेष्ठ रूप में पहुंचाना होगा।

भारत के 'ठीकरावादी' इतिहासकार

3 mins

आज भी 'जिंदा' हैं बाबा जसवंत

1962 के युद्ध में महावीर जसवंत सिंह रावत ने 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मारा। जब वे घिर गए तो उन्होंने अंतिम गोली अपने पर ही चला ली थी। उनकी इस वीरता का सम्मान करने के लिए भारतीय सेना उन्हें आज भी बलिदानी नहीं मानती और उन्हें पदोन्नत करती रहती है

आज भी 'जिंदा' हैं बाबा जसवंत

4 mins

छिवाला में ईसाई छल

ईसाई मिशनरियों ने उत्तरकाशी जिले के छिवाला गांव में छल से लोगों को बनाया ईसाई। आक्रोशित स्थानीय नागरिकों और हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के जबरदस्त विरोध के बाद मामला दर्ज कर पुलिस कर रही है जांच

छिवाला में ईसाई छल

2 mins

फौज पर ताबड़तोड़ हमले

बलूचिस्तान में जिन्ना के जन्म दिन पर जिस तरह से सुरक्षाबलों पर एक के बाद एक हमले किए गए, उससे पता चलता है कि 'कायद-ए-आजम' के प्रति बलूचों में कितना गुस्सा है

फौज पर ताबड़तोड़ हमले

5 mins

कहां हैं सीएए का विरोध करने वाले!

पाकिस्तन में हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए कुफ्र संबंधी कानून को फिर एक बार औजार बनाया गया है। हिन्दू लड़कियों के अपहरण पर सोशल मीडिया पर दुख जताना एक हिन्दू बालक को बहुत भारी पड़ गया। इन्हीं की प्राण रक्षा के लिए सीएए कानून लाया गया था

कहां हैं सीएए का विरोध करने वाले!

4 mins

Les alle historiene fra Panchjanya

Panchjanya Magazine Description:

UtgiverBharat Prakashan (Delhi) Limited

KategoriPolitics

SpråkHindi

FrekvensWeekly

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।

अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।

किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।

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