Kadambini - August 2020
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Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
कब मिलेगी सामाजिक संघर्ष से आजादी
राजनीतिक रूप से हम तिहत्तर साल पहले आजाद हो गए हैं। लेकिन क्या सिर्फ राजनीतिक रूप से आजाद हो जाना ही मुकम्मल आजादी है। सबसे बड़ी बात, क्या हम अपनी सोच में आजाद हुए हैं? क्या सामाजिक आजादी भी हमारे लिए उतने ही मायने रखती है, जितनी राजनीतिक
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समझने होंगे आजादी के मायने
आजादी के इतने वर्षों में हमने आजादी के बहुत-से रूप देखे हैं और देख रहे हैं। रूप चाहे कोई भी हो, लेकिन आजादी के असल मायने समझने अभी बाकी हैं। इतनी लंबी यात्रा में हम इतने अनुभवी तो हुए ही हैं कि यह उम्मीद कर सकें कि हम आजादी के असली मायने समझ सकेंगे
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..ताकि खुली सांस ले सके बचपन
इनसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव बचपन होता है। वही बचपन आज खतरे में है। उसकी आजादी खतरे में है। इसे बचाना जरूरी है। हमें इसे भाषणों से बाहर निकालना होगा। हमें बच्चों को केंद्र में रखकर नीतियां और बजट बनाने होंगे। यह बेहद जरूरी है
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चंद लोगों की आंखों का नूर नहीं
आजादी तीन शब्दों का नामभर नहीं है। आजादी चंद लोगों की आंखों की रोशनीभर नहीं है। आजादी मुट्ठीभर लोगों के पेट की भूख नहीं है। आजादी पूरे देश की है। आजादी, तब तक संपूर्ण आजादी नहीं है, जब तक कि वह पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक न पहुंचे। पड़ाव-दर-पड़ाव तय करती हुई हमारी आजादी कहां तक पहुंची है, यह देखने और समझने की बात है
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आजादी के पड़ाव
73 साल! कम नहीं होते इतने साल। एक भरी-पूरी जिंदगी कही जा सकती है। अगर बात किसी इनसान की उम्र की हो तो! लेकिन बात जब किसी देश की हो, उसकी आजादी की हो तो...?
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सांप्रदायिकता से मुक्त भारत
आजादी मिलने और विभाजन के बाद सोचा गया था कि इस देश में सांप्रदायिक मसले शायद नहीं रहेंगे और हमारा देश प्रेम, सौहार्द के रास्ते पर आगे बढ़ेगा, पर इस काम में सफलता मिलने के बजाय हम लगातार विफल होते दिखाई दिए हैं। सांप्रदायिकता से मुक्ति की राह में अभी काफी शिद्दत से काम किए जाने की जरूरत है
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हमारी सीमाएं एक चुनौती हैं
आज वैश्विक स्तर पर दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। इस बदलते परिवेश में राजनीतिक-आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामरिक रूप से ताकतवर होना किसी भी देश को बहुत जरूरी है। हमारे सामने भी यह चुनौती है। एक तरफ पाकिस्तान, तो दूसरी तरफ चीन हमें लगातार चनौती दे रहे हैं। हमें न केवल इनसे निपटना है, बल्कि विश्व पटल पर खुद को मजबूती से पेश भी करना है। देखनेवाली बात यह है कि हम इसके लिए कितना तैयार हैं
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गरीबी ही गुलामी
गरीब आज भी गुलाम हैं, अपनी गरीबी के आजादी के बाद हुए हर चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा लगता है, लेकिन गरीब और गरीबी हटती ही नहीं। अंतिम आदमी आज भी अंतिम पायदान पर खड़ा है। देखना है कि कब वह आगे आकर सही मायनों में आजाद होता है -
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हम क्यों खफा-खफा से है।
इन तिहत्तर वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया है। बहुत कुछ पाना बाकी है, लेकिन इस पाने के बीच हमें बहुत सारी चीजों से मुक्ति पाना भी बाकी है। ये वे बाधाएं हैं, जो हमारी असली आजादी के बीच बाधक है।
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चुनावी राजनीति में जकड़ी आजादी
संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारी आजादी का खूबसूरत पहलू है। लेकिन चुनावी राजनीति इसे चुनौती दे रही है। चुनावी राजनीति के बनते-बिगड़ते गठजोड़ ने जहां हमारे लोकतंत्र को परिपक्व बनाया है, तो कुछ सवाल भी खड़े किए हैं
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Kadambini Magazine Description:
Utgiver: HT Digital Streams Ltd.
Kategori: Culture
Språk: Hindi
Frekvens: Monthly
Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
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