मंजुला पटेल अकसर बुझीबुझी रहती है. शादी के एक साल में ही उस का यह हाल है. हनीमून से ही वह मैंटली डिस्टर्ब होने लगी. उस के पति कभी राह चलती स्त्री की छाती घूरेंगे तो कभी नितंब. सो, इस जोड़े में विश्वास और स्नेह नहीं हो पाया. सीधीसादी मंजुला भी आक्रामक हो गई है.
यही हाल एक और पत्नी जीतन महतो का भी है. हालांकि उस के पति यह सब चोर निगाहों से करते हैं पर साथ चलने वाली पत्नी से कोई कब तक कितनी नजर चुरा सकता है. कब तक वह अपने वजूद का तिरस्कार तथा दूसरी औरत की तौहीन बरदाश्त कर सकती है.
एक पुलिस अधिकारी की पत्नी कहती है, “मैं अपनी बेटी को 5 मिनट भी पति के भरोसे अकेला नहीं छोड़ सकती. यह तो अच्छा है जो वे 8 दिन में एक बार घर आते हैं, वरना थाने में ही रहते हैं."
अकसर मनचले पति की ये हरकतें पत्नी को ही नहीं, उस से जुड़े सभी व्यक्तियों को परेशान करती हैं. वे इस से बहुत बुरा अनुभव करते हैं. उन्हें असम्मानजनक और छवि तोड़ने वाली लगती हैं ये हरकतें. 'लोग क्या सोचेंगे' का वाजिब डर भी सताता है. समय रहते ऐसा पति अपने पर काबू न रखे तो यह मनोरोग उसे घेर कर त्रस्त कर देता है, कहीं का नहीं छोड़ता.
जब से गांवगांव में सरकार का 'आशीर्वाद' पाए नेताओं के साए में पलते में गैंग बनने लगे हैं, तब से किशोर आयु में ही खून में दंगई घुसने लगी है. जो लोग हिजाब और बुर्के को ले कर मुसलिम लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत कर सकते हैं, वे अपने समाज की लड़कियों को भी नहीं छोड़ते. यह आदत सी पड़ जाती है.
बिगाड़ता है छवि
मनचला पति कितना बड़ा ओहदेदार व पैसे वाला हो, प्रतिष्ठित भी हो तो भी उस की इज्जत और साख नहीं बन पाती. गुड़िया कहती है, “मम्मी, प्लीज शाम को आप पापा को ले कर कहीं चली जाया करो वरना पापा मेरी सहेलियों को घूरने लगेंगे. फिर सहेलियां स्कूल में सब से कहती फिरेंगी. मेरी क्या इज्जत रहेगी.
उसी दिन गुड़िया की मम्मी ने इस समस्या के स्थायी समाधान की तैयारी शुरू कर दी. उसे खुशी हुई कि उस की बेटी ने अपनेआप उस के कहने से पहले ही यह बुराई भांप ली.
मनोज के रिश्ते योग्यता के बावजूद कम आ रहे हैं. लोग उस के पिता के मिजाज से उस घर में लड़की को झोंकना नहीं चाहते.
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