जब महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो पत्रकार उन के पास प्रतिक्रिया लेने पहुंचे. पत्रकारों ने उन से पूछा, ‘आप को खुशी हुई?'
उन्होंने कहा, 'सच बताऊं तो कुछ खास नहीं.'
पत्रकारों ने हैरानी से पूछा, 'क्यों?'
महादेवी वर्मा ने कहा, 'अगर जवानी में मिलता तो इस का कोई लुत्फ लेती, घूमतीफिरती, पैसे खर्च करती लेकिन इस का मेरे लिए क्या अर्थ है. अब तो मैं बस उस की संख्या बढ़ाने के लिए जिंदा हूं. जबकि सच यह है कि खुद को ढो रही हूं.
यह 1986 की बात है. मगर बुढ़ापे और सेहत को ले कर अभी भी कुछ खास फर्क नहीं हुआ. इस में कोई दोराय नहीं कि आजादी के बाद से अब तक के समय अंतराल को देखें तो आम भारतीयों की औसत आयु 15 से 18 साल तक का इजाफा हुआ है. लेकिन जहां तक सेहत का सवाल है, इस में कुछ खास फर्क नहीं हुआ यानी उम्र तो बढ़ गई है लेकिन सेहतमंद उम्र का औसत तकरीबन अभी भी उतना ही है, जितना दशक पहले हुआ करता था.
जानीमानी रिसर्च वैबसाइट मैक्रोट्रैंड्स औसत आयु दर निकालती है. इस के अनुसार भारत में 2023 में औसत आयु दर 70.42 वर्ष है. यह दर पिछले साल 2022 के अनुपात में 0.33 प्रतिशत से अधिक है. 2022 में भारत की औसत आयु दर 70.19 वर्ष थी जो 2021 में 69.96 थी और 2020 में 69.73 वर्ष थी. यूनाइटेड नैशन की रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक भारत की औसत आयु दर 81.3 वर्ष हो जाएगी.
सालदरसाल भारत में औसत आयु दर में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं, अगर विकसित देशों से तुलना की जाए तो भारतीयों की औसत आयु में इजाफा भी कुछ विशेष नहीं है क्योंकि जिन रोगों से भारत में मौत का खतरा अधिक रहता है उन्हीं रोगों से दूसरे देशों में लोग बच जाते हैं. मतलब यह कि अगर सरकारी नीतियां सही हों तो आसानी से हिंदुस्तानियों की उम्र में भी इजाफा हो सकता है और अकाल मौतों में भी कमी आ सकती है. साथ ही, जीवन के अंतिम वर्षों को भी सेहतमंद बनाया जा सकता है.
2020 में वर्ल्ड बैंक के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में जहां यह औसत आयु दर 70 साल थी वहीं चीन में 77, यूएई में 78, यूके में 81, कनाडा में में 82, स्विट्जरलैंड में 83 वर्ष थी.
This story is from the February Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the February Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.