224 सीटों वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव की 10 मई को वोटिंग के बाद 13 मई को आने वाले नतीजों को ले कर सियासी पंडितों को यह कहने में कोई रिस्क नहीं लग रहा कि साल 2018 के चुनाव में 104 सीटें ले जाने का जो रिकौर्ड फायदा भाजपा को मिला था उस से कहीं बड़ा नुकसान उसे इस बार झेलना पड़ सकता है. तब भाजपा को 36.2 फीसदी वोट मिले थे जबकि 78 सीटें ले जाने वाली कांग्रेस को उस से ज्यादा 38 फीसदी वोट मिले थे. जनता दल (एस) को 18.3 फीसदी वोटों के साथ 40 सीटें मिली थीं.
विधानसभा त्रिशंकु थी. भाजपा सत्ता पर काबिज न हो जाए, न इसलिए कांग्रेस ने तुरंत जनता दल (एस) के साथ गठबंधन कर उस के मुखिया एच डी कुमारसामी को मुख्यमंत्री बनाने की रजामंदी दे दी थी. इस के पहले राज्यपाल ने सब से बड़ा दल होने के नाते भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था लेकिन तब येदियुरप्पा बहुमत साबित करने के पहले ही मैदान छोड़ कर चले गए थे.
जुलाई 2019 आतेआते भाजपा ने कांग्रेस और जनता दल (एस) के 15 विधायक अपने पाले में मिला कर सरकार बना ली और येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया. फिर जुलाई 2021 में उन्हें भी चलता कर बसवराज बोम्मई को इस पद पर बैठा दिया गया. उन्हें आगे ला कर येदियुरप्पा से छुटकारा पाने की भगवा गैंग की मंशा पूरी नहीं हुई तो मौजूदा चुनाव में उस ने फिर उन का पल्लू थाम लिया है जो बेमन से चुनाव प्रचार में जुटे हैं. उस की वजह बेटे को राजनीति में जमा देने के मोह के अलावा भाजपा की नीतियोंरीतियों से पुराना लगाव भी है.
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