अजय कई सालों से सोच रहे थे कि अपने ड्राइंगरूम के सोफे और परदे बदलवा लें. आखिर 16 साल हो गए उन की शादी को उन की पत्नी ऋचा के सामान के साथ सोफे और सेंट्रल टेबल उस के मायके से आए थे. ऋचा हरगिज तैयार नहीं थी कि इन सोफों को कबाड़ी को बेच कर नए सोफे लाए जाएं. उस के पिता ने कितने जतन से बढ़िया लकड़ी मंगवा कर घर में ही बढ़ई बिठा कर अपने सामने ये 3 सोफे, टेबल, बैड, अलमारी वगैरह अपनी प्यारी बेटी की शादी में देने के लिए बनवाए थे, वह कैसे इन्हें कबाड़ी वाले को देने देती. सोफे की सिर्फ गद्दियां ही तो खराब हुई थीं, ढांचा तो बिलकुल दुरुस्त था. हर साल दीवाली पर अजय नए सोफे की बात करते और ऋचा मुंह फुला कर बैठ जाती.
आखिरकार इस बार अजय ने सोचा कि सोफे की गद्दियां और कपड़ा ही बदलवा दें तो ये फिर से नए जैसे हो जाएंगे. इस के लिए ऋचा तैयार हो गई. सहमति बन गई तो दोनों बाजार सोफे का कपड़ा ढूंढ़ने निकले. पहले से कोई आइडिया नहीं था कि कितने का मिलेगा, कौन सा अच्छा होगा, मगर 6-7 दुकानें घूमने के बाद काफीकुछ समझ में आ गया. कपड़ों की इतनी वैराइटियां, इतने कलर देख कर दोनों भौचक्के रह गए. कुछ कपड़े तो रैक्सीन का सा आभास करा रहे थे. इन को साफ करना भी आसान था.
एक दुकानदार ने अजय से कहा कि बहुत रंगबिरंगे, मोटे और भारी कपड़े का चलन अब नहीं है. आजकल तो सैल्फ डिजाइन के रैक्सीन लुक वाले हलके कपड़े लोग सोफे के लिए पसंद करते हैं. गद्दियां अलग से बनीबनाई मिलती हैं. बढ़ई हमारा होगा जो एक से डेढ़ दिन में सोफे बना देगा. बात तय हो गई. ड्राइंगरूम की दीवारों से मैच करता सोफे का कपड़ा ऋचा ने सलैक्ट किया. अगले इतवार बढ़ई भेजने की बात कह कर अजय ने कुछ पैसा एडवांस दे दिया. दोनों खुश थे. नए सोफे के दाम से बहुत कम दाम में उन का काम हो रहा था.
अगले इतवार बढ़ई ने आ कर उन के सोफे की गद्दियां और कपड़ा बदल कर बिलकुल नया लुक दे दिया. लकड़ी भी पौलिश कर चमका दी. अजय बहुत खुश थे क्योंकि नया सोफा खरीदने के लिए जब वे इंटरनैट सर्च करते थे तो उन की रेंज 35 हजार से शुरू हो कर 80 हजार रुपए तक थी. मगर यहां तो उन का काम मात्र 17 हजार रुपए में ही हो गया. ऋचा की भावनाएं भी आहत नहीं हुईं, सोफा सैट भी नया हो गया और रंग भी दीवारों से मैच करता मिल गया.
This story is from the October Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
एक गलती ले डूबी इन ऐक्टर्स को
फिल्म कलाकारों का पूरा कैरियर उन की इमेज पर टिका होता है. दर्शक उन्हें इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें वे अपना आइकन मानने लग जाते हैं मगर जहां रियल लाइफ में इस इमेज पर डैंट पड़ता है वहां वे अपने कैरियर से हाथ धो बैठते हैं.
शादी से पहले खुल कर करें बात
पतिपत्नी में किसी तरह का झगड़ा हो हीन, इस के लिए शादी के बंधन में बंधने से पहले दोनों पार्टनर्स हर विषय पर खुल कर बात करें चाहे अरेंज मैरिज हो रही हो या हो लव मैरिज. वे विषय क्या हैं और बातें कैसे व कहां करें, जानें आप भी.
सुनें दिल की धड़कन
सांस लेने में मुश्किल, छाती में दर्द या बेचैनी महसूस हो, तो फौरन कार्डियोलोजिस्ट से हृदय की जांच करानी चाहिए क्योंकि शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो सकती है.
जब ससुर लेता हो बहू का पक्ष
जिन मातापिता के पास सिर्फ बेटे ही होते हैं वे घर में बहू के आने के बाद बहुत खुश होते हैं. बहू में वे बेटी की कमी को पूरा करना चाहते हैं. ऐसे में ससुर के साथ बहू के रिश्ते बहुत अच्छे हो जाते हैं क्योंकि लड़कियां बाप की ज्यादा लाड़ली होती हैं.
डिंक कपल्स जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन की खाई
आजकल शादीशुदा युवाओं की लाइफस्टाइल में डिंक कपल्स का चलन बढ़ गया है. इस में दोनों कमा कर आज में जीते हैं पर बच्चे, परिवार और बिना जिम्मेदारियों के साथ. यह चलन खतरनाक भी हो सकता है.
प्रसाद पर फसाद
प्रसाद में मांसमछली वगैरह की मिलावट की अफवाह के के बाद भी तिरुपति के मंदिर में भक्त लड्डू धड़ल्ले से चढ़ा रहे हैं. इस से जाहिर होता है कि यह आस्था का नहीं बल्कि धार्मिक और राजनीतिक दुकानदारी का मसला है.
आरक्षण के अंदर आरक्षण कितना भयावह?
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है, जिस के तहत सरकारों को अब एससी और एसटी आरक्षण के भीतर भी आरक्षण देने की छूट होगी. इस फैसले ने आरक्षण की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. इस से जाति आधारित आरक्षण की मांग और भी जटिल हो जाएगी, जिस से देश में नई राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार के कार्यकाल के दौरान बनाए गए कानूनों में 2-3 ने ही सामाजिक परिदृश्य को बदला. राजीव गांधी को सामाजिक मामलों की ज्यादा चिंता नहीं थी, यह साफ है.
सांपसीढ़ी की तरह है धर्म और धर्मनिरपेक्षता की जंग
हरियाणा और जम्मूकश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि धर्म और धर्मनिरपेक्षता के बीच जंग आसान नहीं है. दोनों के बीच सांपसीढ़ी का खेल चलता रहता है.
क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली
फिल्मों की दीवाली अब पहले जैसी नहीं रही. दीवाली का त्योहार अब बड़े बजट की फिल्मों के लिए कलैक्शन का दिन भी नहीं रहा. इस मौके पर फिल्में आती तो हैं लेकिन बुरी तरह पिट जाती हैं. फिल्मी हस्तियों व आम लोगों के लिए दीवाली फीकी होती जा रही है.