अगर 10-12 साल पहले की बात करें तो हर औफिस में एक जगह ऐसी होती थी जहां पर मुनीम बैठता था. आज के ज्यादातर लोग मुनीम के नाम से शायद ही परिचित हों. धीरेधीरे मुनीम की जगह अकाउंटैंट ने ले ली. इस के बाद भी कामकाज करने का तरीका वही पुराना खाताबही वाला था. कंप्यूटर का युग आया तो कागज पर लिखीं खाताबही दरकिनार कर दी गईं. अब कंप्यूटर पर ही खाते बनने लगे. कंप्यूटर ने खाताबही को दरकिनार ही नहीं किया, उस के कामकाज को सरल भी कर दिया. अब इस की बहुत सारी जिम्मेदारी चार्टर्ड अकाउंटैंट ने संभाल ली.
मुनीम का काम कर्मचारियों को वेतन देने का भी था. अब वेतन सीधे बैंक खाते में जाने लगा. बैंक खाते में पैसा जाने से ले कर खर्च होने तक का बहुत सारा काम टैक्नोलौजी ने संभाल लिया है. ऐसे में हाथ में पैसा आने का सुख खत्म हो गया. मुनीम के साथ एक पर्सनल रिलेशन बन जाता था. वह कर्मचारी के सुखदुख से वाकिफ होता था. वेतन कटने का दर्द और बोनस मिलने की खुशी आमनेसामने दिख जाती थी. टैक्नोलौजी ने इन संवेदनाओं को खत्म कर दिया है. ऐसे में दीवाली में टैक्नोलौजी की खाताबही को समझिए.
यह बदलाव केवल आम लोगों या बिजनैसमैनों में ही नहीं दिख रहा है. पहले जब केंद्र या प्रदेश सरकार बजट पेश करती थी तो वित्त मंत्री लाल रंग की एक फाइल, जिस के ऊपर एक फीता बांधा गया होता था, ले कर आते थे. अब यह फाइल नहीं दिखती. उस की जगह ब्रीफकेस आ गया है, जिसे ले कर वित्त मंत्री बजट पेश करती हैं. दीवाली में खाताबही को छोड़िए, टैक्नोलौजी को समझिए और अपने वित्त का बजट बनाएं. आज के समय में कई ऐसे सौफ्टवेयर आ गए हैं जिन के जरिए लाखों का हिसाबकिताब सैकंडों में हो जाता है. छोटेबड़े सभी तरह के बिजनेसमैन इस का प्रयोग कर रहे हैं. अब खाताबही की जगह कंप्यूटर और मोबाइल ने ले ली है.
'पेमैंट सौफ्टवेयर' हो गए भरोसेमंद
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