केवट यानी निषादराज के बारे में हर कोई जानता है कि वह मामूली मछुआरा और नाविक था. रामायण के गरीब, दलित और दीनहीन इस किरदार के बारे में लोग यह भी जानते हैं कि उस ने राम को नदी पार कराई थी और एवज में मेहनताना नहीं बल्कि आशीर्वाद व मोक्ष चाहा था. त्रेता से कलियुग आते आते केवट कब आदमी से देवता हो गया, इस की किसी को हवा भी न लगी. और तो और उस की जयंती भी बड़ी धूमधाम से मनाई जाने लगी है. तीजत्योहारों और जयंतियों वाले हमारे देश में बीती 14 मई को केवट जयंती सरकारी स्तर पर भोपाल के मुख्यमंत्री निवास में मनाई गई थी.
मुख्य अतिथि, जाहिर है, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे और तालियां बजाने केवट के लिए कुछ वंशज मौजूद थे जिन के चेहरे से खुशी और दर्प फूटे पड़ रहे थे. उन पर फूल बरसाए जा रहे थे. आखिर बात थी भी कुछ ऐसी ही, उन के पूर्वज को देवता का दर्जा जो मिल गया था.
देवता वही होता है जिस के मंदिर हों, मूर्तियां हों, जिस का पूजापाठ हो और जिस की जयंती मने एक पंडितपुजारी हों, चढ़ावा चढ़े चुनावी साल में केवट समाज की भीड़ देख शिवराज सिंह गदगद थे और उन के चेलेचपाटे हिसाबकिताब लगा रहे थे कि किस विधानसभा सीट पर इन निषादराजों के कितने वोट हैं और मुख्यमंत्री ने जो घोषणाएं की हैं उन का कितना फायदा भाजपा को मिलेगा.
ये सियासी मुनीम यह याद कर भी फूले नहीं समा रहे थे कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और योगी आदित्यनाथ की भी नैया इसी समाज के लोगों ने पार लगाने में अहम रोल निभाया था. शायद पहली बार इन केवटों ने जाना कि निषादराज हिंदू पोंगापंथी के लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं. कुछ देर इधरउधर की हांक कर शिवराज सिंह मुद्दे की बात पर आते बोले, 'आप लोग एक जगह तय कर लें जहां भव्य और विशाल निषादराज स्मारक बनाया जाएगा. निषादराज की मूर्तियां भी लगाई जाएंगी.' फिर, वे प्रतीक रूप में नाव पर भी चढ़े.
इसी दिन केवटों पर डोरे प्रदेश कांग्रेस भी अपने दफ्तर में समारोहपूर्वक डाल रही थी. कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी केवटों को दाना चुगाया. इन 2 आयोजनों से साबित हो गया कि निषाद समुदाय के लोग भी अब देवताविहीन नहीं रहे. कुल जमा देवताओं की लिस्ट में और एक नया नाम शुमार हो गया.
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