अक्तूबर से जनवरी तक सर्दी और बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए मैदानी इलाके के लोग कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों का रुख करते हैं. नईनई शादी हुई हो तो कपल हनीमून मनाने के लिए कश्मीर की सुंदर वादियों के ही सपने देखता है. बर्फ से ढके पहाड़ों पर अठखेलियां करते युवा हाथों में बर्फ के गोले लिए एकदूसरे पर फेंकते जिस आनंद में ओतप्रोत होते हैं उस की यादें हमेशा के लिए उन के दिलों पर नक्श हो जाती हैं. शाम के धुंधलके में एकदूसरे की बांहों में लिपटे युगल वादी की सुंदरता को निहारते हुए भविष्य के सपनों में खो जाते हैं.
गरम फर वाले कोट पहने बच्चे बर्फ के गोलों से खेलते हुए, बर्फ के घरोंदे बनाते हुए मजे करते हैं. ठंडी, बर्फीली हवाओं के बीच गरम चाय की चुस्कियां लेना, चारों तरफ खिले पहाड़ी फूलों की खुशबू अपनी सांसों में भर लेना, रंगबिरंगे चहचहाते पंछियों को देखना, कलकल करती नदियों का शोर सुनना, घर के भीतर तक घुस आने वाले बादल और पहाड़ों की चोटियों पर सोना बिखेरता सुबह का सूरज, ऐसे कितने ही लमहे हम पर्वतारोहण के बाद अपनी यादों में समेट कर लौटते हैं.
पहाड़ों की यह प्राकृतिक सुंदरता हमें बारबार वहां आने का निमंत्रण देती हैं. दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, मेरठ में काम करने वाले या रहने वाले लोग तो दोतीन छुट्टियां आई नहीं कि आसपास के हिल स्टेशन पर घूमने निकल जाते हैं और प्रकृति की नजदीकियां प्राप्त कर दोगुनी ताजगी के साथ लौटते हैं.
भारत में 90 के दशक के बाद पहाड़ी पर्यटन में काफी तेजी आई है. पहले जहां गरमी की छुट्टियों में लोग बच्चों को ले कर उन के दादादादी या नानानानी के वहां जाते थे, अब वे शहर के शोरशराबे और रिश्तेदारों से दूर किसी हिल स्टेशन पर जाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. यही वजह है कि ज्यादातर हिल स्टेशन सीजन के वक्त सैलानियों से भरे रहते हैं. वहां के होटल, धर्मशालाएं, रिसोर्ट सब फुल रहते हैं. भीड़ का वह आलम होता है कि कई बार तो लोग दोगुना किराया देने को भी तैयार होते हैं फिर भी ठहरने के लिए उन्हें कोई अच्छा होटल नहीं मिल पाता.
सर्दी का इंतजार
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
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