लोकतंत्र अभी सांसे हैं कोर्ट की खरीखरी
Sarita|March First 2024
देश में मौजूदा समय में धनबल की सारी ताकत सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में जा रही है, लोकतंत्र से खिलवाड़ हो रहा है और तानाशाही बढ़ रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इलैक्टोरल बौंड्स को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने का दूरदर्शी फैसला डैमोक्रेसी को बचाने की दिशा में बेहद अहम कदम है.
नसीम अंसारी कोचर
लोकतंत्र अभी सांसे हैं कोर्ट की खरीखरी

लोकसभा चुनाव से महज 2 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को बहुत करारा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बैंच ने सर्वसम्मति से चुनावी बौंड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलैक्टोरल बौंड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है, साथ ही, बौंड की गोपनीयता बनाए रखना न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन भी है.

अपने 300 पृष्ठों के फैसले में कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया है कि वह राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बौंड्स का ब्योरा पेश करे. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इलैक्शन कमीशन से 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वैबसाइट पर इलैक्टोरल बौंड स्कीम की जानकारी पब्लिश करने के लिए भी कहा है. इस दिन देश की जनता को पता चलेगा कि किस पार्टी को किस ने, कितना चंदा दिया.

गौरतलब है कि जारी होने के बाद से अब तक, 19 किस्तों में 1.15 अरब डौलर यानी 95 अरब, 35 करोड़, 63 लाख 14 हजार 962 रुपए की कीमत के इलैक्टोरल बौंड बेचे जा चुके हैं. इस का सब से बड़ा फायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को मिला है. जारी हुए कुल बौंड्स का दोतिहाई हिस्सा भारतीय जनता पार्टी को गया है. जबकि, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी को महज 9 प्रतिशत बौंड ही मिले हैं.

भारत में चुनावों और सियासी दलों पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक, 2019 से 22021 के दौरान 7 राष्ट्रीय पार्टियों की 62 प्रतिशत से ज्यादा आमदनी इलैक्टोरल बौंड से मिले चंदे से हुई थी.

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