3 अप्रैल, 2022 को लखनऊ में इंस्पैक्टर जगत नारायण सिंह के 3 मंजिला घर को बुलडोजर से ढहा दिया गया. जगत नारायण सिंह वही पुलिसकर्मी हैं जिन पर कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या का आरोप है. इस से पहले 2 अप्रैल को प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 150 बीघा में फैले प्लौट को ध्वस्त कर दिया था. धूमगंज और कौशांबी में ये कार्रवाइयां हुईं. प्रशासन की तरफ से प्लौटिंग को अवैध बताया गया.
समाजवादी पार्टी के विधायक शहजिल इसलाम के पैट्रोल पंप पर भी बुलडोजर चला दिया गया था. आरोप लगाया गया कि यह अवैध जमीन पर बनाया गया था.
इसी तरह से नोएडा के सैक्टर 134 और 135 स्थित डूब क्षेत्र में बने एक फार्महाउस पर बुलडोजर चला. बुलडोजर चलाने की कार्रवाई सहारनपुर में भी हुई. वहां गैंगरेप के आरोपियों के घर पर पुलिस ने बुलडोजर चला दिया. लखनऊ, बाराबंकी, कानपुर, नोएडा, जालौन, बुलंदशहर जैसे तमाम जिलों में रोज बुलडोजर से अवैध निर्माण गिराने की खबर सामने आई. इन का काफी विरोध भी किया गया.
सवाल उठता है कि केवल आरोप लग जाने पर ही बुलडोजर कार्रवाई करना जायज है? बुलडोजर से संपत्ति ढहाने की कार्रवाई 'उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डैवलपमैंट एक्ट 1973' के तहत होती है. इस कानून में एक धारा 27 है और इस के तहत ही प्रशासन को अवैध संपत्तियों को ढहाने का अधिकार मिला हुआ है. मगर इस एक्ट के मुताबिक संपत्ति गिराने का आदेश उस संपत्ति के मालिक को अपना पक्ष रखने का एक मौका दिए बिना जारी नहीं किया जा सकता.
आदेश जारी होने के 30 दिनों के भीतर संपत्ति का मालिक आदेश के खिलाफ चेयरमैन से अपील भी कर सकता है. मगर क्या केवल आरोपी होने पर किसी की संपत्ति पर बुलडोजर चला देना उचित है और अगर कोई आरोपी बाद में निर्दोष साबित हो गया तो क्या होगा?
करीब 100 साल पहले आविष्कार किए गए बुलडोजर का उपयोग दुनियाभर में हमेशा से घरों, कार्यालयों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया गया है. लेकिन आजकल यह सरकार के हाथों में एक हथियार जैसा बनता जा रहा है.
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