इतिहास में मामूली दिलचस्पी रखने वाला भी जानता है कि सिख धर्म मुगलों से हिंदुओं की हिफाजत के लिए बना था. ये सिख भी अधिकतर दलित हिंदू ही थे जिन्हें गुरुगोविंद सिंह ने हिम्मत और अन्याय से लड़ने का जज्बा दिया जिसे अमृत छकाना (पंच ककार धारण करना) कहा जाता है. गुरुनानक का एक अहम मकसद तत्कालीन हिंदू समाज में फैली रूढ़ियों, भेदभाव, कुरीतियों और अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाना भी था. खालसा पंथ के संविधान में से तो जातपांत नाम का अनुच्छेद ही डिलीट कर दिया गया था.
कनाडा की ताजी सिखहिंदू हिंसा के मद्देनजर कनाडा में भी जो हिंदू भारत के सनातनियों की तर्ज पर 'बंटेंगे तो कटेंगे' का जुमला बुलंद कर रहे हैं उन्हें यह सबक इतिहास और सिख धर्म की स्थापना से ले ही लेना चाहिए कि एकता के लिए जरूरी यह है कि जातपांत, भेदभाव और छुआछूत फैलाने का निर्देश और आदेश देने वाले अप्रांसगिक हो चुके धर्मग्रंथों से वक्त रहते किनारा कर लिया जाए, नहीं तो कटते रहना हिंदुओं की नियति थी और आगे भी रहेगी और इस का जिम्मेदार कोई और नहीं.
गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी और गुरुनानक जैसे चिंतकों ने अलग संप्रदाय खड़े करने में बेहतरी समझी जो आज क्रमश बौद्ध, जैन और सिख धर्म के नाम से जाने व पहचाने जाते हैं. अब यह और बात है कि इन धर्मों के अनुयायी भी इन रोगों की चपेट में, आंशिक रूप से ही सही, आने लगे हैं.
नवंबर महीने की शुरुआत से ही कनाडा में हिंदूसिख तनातनी की खबरें आने लगी थीं जो आखिरकार हिंसा में तबदील हो गईं. खालिस्तान समर्थक सिखों ने 2 हिंदू मंदिरों पर धावा बोला और हिंसा भी की. पहली वारदात टोरंटो के ब्रेम्पटन स्थित हिंदू सभा मंदिर में हुई जहां खालिस्तानियों ने मंदिर के अंदर घुस कर मारपीट की.
हमलावर खालिस्तानियों की भीड़ में शामिल लोगों के हाथ में पीले खालिस्तानी झंडे थे. उपद्रव और शांति भंग के आरोप में पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ्तार किया. कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमले की यह कोई पहली वारदात नहीं थी. इस के पहले भी ब्रिटिश कोलंबिया और ग्रेटर टोरंटो सहित दूसरी जगहों पर भी हिंदू मंदिरों पर हमले हो चुके थे.
इन का इतिहास लंबा है और पुराना भी. 1984 के सिख दंगों के बाद से ही कनाडा के सिखों ने वहां के हिंदुओं को निशाने पर ले रखा है. वे आएदिन हिंदू मंदिरों पर हमले बोला करते हैं.
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