एक गणितज्ञ, रॉकेट वैज्ञानिक, भारत में प्रायोगिक तरल गतिकी के जनक, दशकों तक भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के दिशा-निर्देशक, एक गंभीर व स्वप्नदर्शी चिंतक, साहित्यानुरागी और सबसे बढ़कर देश में वैज्ञानिकों की पीढ़ियां तैयार करने वाले अनुपम गुरु थे प्रो. सतीश धवन।
वे एक ऐसे शख़्स थे, जो देश के प्रधानमंत्री के आकर्षक प्रस्ताव को नकारने और अपनी शर्तें मनवाने की कुव्वत रखते थे।
जिनकी बदौलत हमारा देश अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में आज विश्व के अग्रणी देशों की क़तार में शान से खड़ा है, उन प्रो. सतीश धवन की कहानी, इस बार ज़िंदगी की किताब में।
आज़ाद भारत की आशा
अध्ययनशील सतीश धवन उन एक हज़ार प्रतिभाशाली विद्यार्थियों में चुने गए थे, जिनसे शीघ्र ही स्वतंत्र होने वाले देश को अपार आशाएं थीं।
गुरुता और ज्ञान के धवल ओज से निखरा स्वरूप। प्रसन्नवदन दृढ़ व्यक्तित्व। ऐसे ही रूपाकार में ढले भारत देश के एक महान सपूत थे प्रोफेसर सतीश धवन। भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के पद को सुशोभित करते हुए वे कई वर्षों तक एक ही साथ देश के दो सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्थानों, भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस यानी IISC) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की अध्यक्षता करते रहे, लेकिन इसरो की अध्यक्षता के लिए प्रतीक स्वरूप वे सिर्फ़ एक रुपया प्रति माह का वेतन लेते थे। उन्होंने ग्रामीण शिक्षा, सुदूर संवेदन और उपग्रह संचार पर अग्रगामी प्रयोग किए। आइए, जानते हैं प्रो. सतीश धवन के जीवनवृत्त और कृतित्व के बारे में...
अखंड भारत के उत्तर से दक्षिण तक
सन् 1920 की 25 सितंबर की तारीख़ थी, जब श्रीनगर में प्रो. सतीश धवन का जन्म एक सरायकी हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता थे, उच्च शिक्षित व प्रतिष्ठित रायबहादुर देवी दयाल धवन, जिन्होंने एमएससी और एलएलबी की शिक्षा ग्रहण की थी। वे डेरा इस्माइल खान शहर से थे। बाद में वे पंजाब सिविल सर्विस का हिस्सा बने और उसके बाद सेशन और जिला जज भी नियुक्त हुए सतीश का बचपन लाहौर और कश्मीर में व्यतीत हुआ था।
Bu hikaye Aha Zindagi dergisinin September 2024 sayısından alınmıştır.
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।
सदियों के शहर में आठ पहर
क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
एक वीगन का खानपान
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
सदा दिवाली आपकी...
दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
'मां' की गोद भी मिले
बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।