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क़र्ज़ दो और घी पियो
डेट फंड में निवेश किया गया आपका धन सरकार या कंपनियों को ऋण के रूप में दिया जाता है। यह क़र्ज़ किसे दिया जाता है, उससे तय होता है कि आपको अपने निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा और आपका पैसा कितना सुरक्षित रहेगा। इनमें समझदारी से लगाया गया पैसा अन्य सुनिश्चित लाभ योजनाओं के मुक़ाबले अधिक कमाऊ हो सकता है।
दिल की बात दांत-आंत के साथ
जन्म के पहले जो धड़कने लगता है और जीवनपर्यंत चलता ही रहता है, जिसका सुचारु रूप से काम करना शरीर के हर अंग के लिए अनिवार्य होता है-
नाम में क्या रखा है!
पश्चिम ने नाम को नगण्य माना, परंतु पूर्व ने नाम को शिरोधार्य रखने की वस्तु बनाया। नामकरण को उत्सव बनाया और नाम को सोच-विचारकर शृंगार की तरह धरा। नाम की बड़ी महिमा है। नाम लोक प्रदत्त प्रथम निधि है, यह कुल का वह प्रतीक है जिसका संग मृत्युशय्या तक होता है। अच्छा नाम देहदहन के पश्चात भी लोक में रह जाता है और बुरा नाम शरीर से पहले ही मिट जाता है।
जंगल में मोर नाचा
मेह के मेघ आसमान में गहराए नहीं कि केहूं-केहूं का स्वर उच्चारता मोर, इंद्र की हज़ार आंखें अपने पंखों में सजाए, रिमझिम की अगवानी में थिरकने लगता है। मयूर नृत्य की ऋतु में उसके अद्वितीय सौंदर्य और मनमोहक नर्तन का साक्षात कीजिए इन शब्दों में....
जब लबालब थे तालाब
...तब जीवन भी ख़ुशियों से लबालब हुआ करता था। पानी की तरह था समाज- साथ खेलने वाला, मिलजुलकर पर्व-उत्सव मनाने वाला और जुटकर काम करने वाला। तालाब सूखे तो शायद समाज का पानी भी सूख गया। अब तो सावन भी सूखे तालाबों को जिला नहीं पाता।
शांत घाटी में शीत की छटा
कश्मीर में गुलमर्ग, पहलगाम जैसे सुपरिचित स्थलों के उलट, आम सैलानियों की नज़रों से दूर एक संवेदनशील घाटी है गुरेज़। कभी आतंकियों की घुसपैठ से सिसकती थी, लेकिन आज अपनी शांत शीत आभा लिए पर्यटकों का स्वागत कर रही है। इस बार की हमारी यायावरी में है नीलम नदी के तट पर सफ़ेद चादर ओढ़े गुरेज़ वैली की ख़ूबसूरती और प्रकृति के साथ ताल मिलाती इसकी संस्कृति की बानगी।
आज़ादी की अगस्त पीठिका
वह साल बयालीस था । अगस्त का भीगता मौसम भारतीयों के मन में प्रज्वलित स्वतंत्रता की अग्नि को ठंडी करने के स्थान पर और भी प्रचंड कर रहा था। इसी के फलस्वरूप जन्मी एक क्रांति जो हमारी बहुप्रतीक्षित आज़ादी की नींव बनी। अगस्त के उसी आगाज़ का रोचक वृत्तांत पूर्वपीठिका और परिणति के साथ।
जय कन्हैया लाल की
द्वापर के अवतार की, कलजुग के कालजयी किरदार की। अधरों पर मंद मुस्कान धरे- प्रेम, ज्ञान, मैत्री, भक्ति और मुक्ति के धुरीधार की। भारतीय दर्शन की आत्मा, भादव-भाग्य में आलोकित नीलाभ की। पावन कथा पर्व प्रसंग में, इस बार जन-जन के नाथ की, तो बोलिए हाथी, घोड़ा, पालकी...
कप के साथ सबक़
अनिश्चितताओं का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के फटाफट फॉर्मेट टी20 में मैच के दौरान इतने उतार-चढ़ाव होते हैं, जितने पूरे जीवन में भी न आते हों। इस रोमांचक मनोरंजन के बीच थोड़ा ठहरकर ग़ौर करें तो वहां हर लम्हे से उपयोगी सबक़ लिए जा सकते हैं। इस बार के टी20 विश्वकप में हमें ख़िताब के साथ मिली हैं ऐसी ही कुछ अहम सीखें ....
समस्या में ही है समाधान
समस्या से हम भागते हैं या उसका समाधान खोजने में जुट जाते हैं। दोनों ही रास्ते ग़लत हैं। पहले तो समस्या को समझना होगा, यह देखना होगा कि वह समस्या है भी या नहीं। फिर समाधान भी उसी के अंदर मिल जाएगा।
कैमरे की ऊंची उड़ान
कैमरा दुनिया को उस नज़रिये से दिखा सकता है जो इंसानी आंखों के बस की बात नहीं। ड्रोन फोटोग्राफी इसका जीवंत उदाहरण है।
हर हाथ कैमरा तो है...
परंतु फोटोग्राफी का शऊर कहां है! खटाखट आड़ी-तिरछी आठ-दस तस्वीरें लेकर उनमें से एकाध पर ढेर फिल्टर लगा देना न तो कला है न ही साधना | विचार कीजिए...
जंगल में रोमांच की राहें
इंसानों को विभिन्न मुद्राएं बनाने के लिए कहा जा सकता है, दृश्यों की तस्वीरें अलग-अलग कोणों से ली जा सकती हैं, किंतु जंगली पशु-पक्षियों के छायाचित्रण के लिए धैर्य रखने और सटीक क्षण का इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं हो सकता। इसके साथ ही रखनी पड़ती है सावधानी और सतर्कता, क्योंकि एक छोटा-सा पक्षी भी गहरी चोट पहुंचा सकता है। वन्यजीवन फोटोग्राफी के रोमांचक संसार में आपका स्वागत है!
एक क्लिक का कमाल
कैमरा हाथ में आते ही व्यक्ति विशिष्ट हो जाता है। दुनिया को देखने की उसकी दृष्टि बदल जाती है। वह व्यापक फलक पर नज़र डालता है और बहुत बारीकी से भी। तब सौंदर्य की परिभाषा ही परिवर्तित हो जाती है, क्योंकि छायाकार के लिए संसार में कुछ भी असुंदर नहीं होता। वह प्रकृति के हर अंश में ख़ूबसूरती खोज लेता है, या यूं कहें कि कैमरे की बदौलत हर शै को आकर्षक बनाने की कुव्वत रखता है। कैमरे के क्लिक के ज़रिए किसी पल को क़ैद कर लेना कला ही तो है ! 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के मौक़े पर हमारी आमुख कथा इस कला के विभिन्न पहलुओं को समझने और इसका वास्तविक आनंद उठाने के लिए आमंत्रित कर रही है।
सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर
क़लम-कहानी की लाग ने उन्हें रंगमंच से सिने जगत और वहां से आमजन के दिलों तक पहुंचा दिया। तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्में बनाने वाले मेहुल को अपने दौर के सिनेमा का ट्रैक बदलने के साथ ही राजकुमार, नाना पाटेकर और अमिताभ बच्चन जैसी क़द्दावर हस्तियों के कॅरियर में अहम मोड़ लाने का श्रेय भी जाता है। एक लेखक, रंगमंच हस्ती और फिल्म निर्देशक के रूप में आधी सदी तक दर्शकों की नब्ज पकड़े रखने वाले मेहुल कुमार हैं इस बार हमारे अहा ! अतिथि। मेहुल बयां कर रहे हैं अपना सफ़रनामा, जिसमें परदे के पीछे के कई रोचक क़िस्से भी चले आए हैं।
इच्छा जताएं कि अनुशासन बनाएं?
इच्छाशक्ति सीमित है, इस्तेमाल करने पर कम हो जाती है। आत्म-अनुशासन एक आदत है, व्यवस्था है- एक बार बन जाए, फिर प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। फ़ैसला आपका है!
एक लम्हा, कई सच, अनंत संभावनाएं
अपने ग्रह के समयांतर से हम परिचित हैं। किस समय कहां दिन होगा, ठीक उसी समय कहां रात, संध्या या दोपहर होगी, हम जान सकते हैं। इससे भी सूक्ष्म है पलों का हिसाब, जिसकी समग्र समझ विविधता, निरंतरता और संभावनाओं के सबक़ हैं।