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मंच पर उदात्त मूल्यों की तलाश
पहले भारतीय मिथकों, परंपराओं से जुड़े नाटक रचे गए और फिर कुछ आधुनिक दृष्टिकोण वाले प्रयोग हुए. भारतीय नाटकों ने सार्वभौमिकता की गहरे जाकर तलाश की है
मुल्क की प्रसव-पीड़ा का दस्तावेज
आधुनिक हिंदी उपन्यास अपनी काया में बंटवारे की लंबी छाया, आजादी के बाद का मोहभंग, राजनैतिक उथल-पुथल और जाति व्यवस्था की सचाइयां समेटे हैं
कारून का खजाना
बेहिसाब विविधताओं वाला भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र न जाने कितने तूफान झेलकर भी फल-फूल रहा
पुराने धागों से उम्मीद का नया ताना-बाना
महामारी के दौरान स्लो और टिकाऊ फैशन की तरफ बढ़ता रुझान लंबे समय तक हाशिये पर रहे भारतीय हथकरघा क्षेत्र के लिए उम्मीद की किरण बन गया है
फौलादी जज्बों ने गढ़े सोने-चांदी के रथ
खेलों के दीवाने देश भारत में विश्व विजेता बनने के लम्हे बहुत ज्यादा नहीं आए. ऐसे ही आग में तपकर निखरे शीर्ष दस लम्हे
'और दुनिया एक होकर रहने लगेगी'
भारत की कहानी इसके अंदर गुंथी असमानताओं की कहानी भी है. कुछ लोगों और समूहों ने बेहतर और ज्यादा न्यायसंगत समाज का सपना देखने की न केवल दूरदृष्टि दिखाई, बल्कि उसके निर्माण का साहस और संकल्प भी
लोगों के अधिकार सरकार का कर्तव्य
तमाम नागरिकों के लिए कल्याणकारी राज्य के निर्माण की भारत की कोशिशें उम्मीद जगाने वाली हैं और विचारणीय भी उम्मीद जगाने वाली इसलिए क्योंकि कल्याणकारी राज्य का मौजूद होना भर लोकतंत्र की जीत है. लोकतंत्र ने भारत के आखिरी नागरिक की आवाजों और हितों का सुना जाना पक्का किया. लेकिन विचारणीय इसलिए कि आजादी के 75 साल बाद भी भारत कल्याण कार्यक्रमों पर अपने स्तर की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बहुत कम खर्च करता है. कल्याणकारी योजनाओं में निवेश सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है लेकिन 'मुफ्त की रेवड़ी' कहकर इसका मजाक उड़ाया जाता है. यही नहीं, ये योजनाएं खराब अमल से बेजार हैं. इस सबके बावजूद आखिरी नागरिक - की, के लिए और के द्वारा इस लड़ाई ने उन दुस्साहसी प्रयोगों की आग में घी का काम किया जिनमें राज्यों और केंद्र की सरकारों और सिविल सोसाइटी ने बेहद अहम भूमिका अदा की है. भारत में कल्याणकारी राज्य का विकास लोकतांत्रिक भागीदारी की ताकत की कहानी बयान करता है- ऐसी कहानी जिसने राष्ट्रीय और वैश्विक विमर्श को गढ़ा है. यहां मैं इनमें से 10 बेहतरीन कल्याणकारी कदमों का जिक्र कर रही हूं.
उपलब्धियों की प्रतिष्ठा
भारतीय वैज्ञानिकों और अन्वेषकों ने पिछले 75 साल में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जिन्होंने हम सभी को गौरवान्वित किया है. अगर हरित और श्वेत क्रांति ने देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की तो इसके परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान ने भारत को ग्लोबल लीडर्स की पांत में खड़ा कर दिया है. यहां हम उन कुछेक मील के पत्थरों का जिक्र कर रहे हैं जो देश के लिए गेम चेंजर रहे
हरियाली का रास्ता
पर्यावरण आंदोलन ने आजाद भारत के 75 वर्षों में नीतियों को आकार देने और विकास के तौर-तरीकों को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस आंदोलन के तीन अलग-अलग रास्ते रहे हैं. पहला, जहां पर्यावरणीय कार्रवाई ने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए विकास रणनीति को तय करने में भूमिका निभाई. दूसरा, जहां विकास परियोजनाओं का विरोध किया और विवाद की वजह से एक नई सहमति उभरी. तीसरा, जहां प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य के मुद्दों पर पर्यावरण आंदोलन ने नीति में बदलाव को बढ़ावा दिया. हालांकि यह आंदोलन कुछ समुदायों के वन्य संसाधनों पर अधिकार, इन संसाधनों को निकालने और उनके संरक्षण के बीच पेचीदगी से भरा रहा है. इन अंतर्निहित अंतर्विरोधों के मद्देनजर पिछले 75 साल की सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहल को गिनाना लगभग नामुमकिन है. मैं इसे आप पाठकों पर छोड़ती हूं कि वे यहां चुने गए लोगों की अहमियत पर विचार करें.
कानून की आत्मा और कोर्ट
भारत के न्यायिक इतिहास में सबसे अच्छे क्षण तब आए जब अदालतों ने कानून को नहीं बल्कि न्याय के ऐसे प्रथम सिद्धांतों का विचार किया जो अलिखित हैं पर संविधान को रेखांकित करते हैं
मजबूत नब्ज
भारत सरीखे उपमहाद्वीप भर में फैले देश में अत्यंत घनी आबादी और संघीय राजनीति के साथ स्वास्थ्य की चुनौतियां बहुतेरी हैं और उपलब्धियां विभिन्न राज्यों में अलग-अलग. तिस पर भी बीते 75 साल में कई क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की गई. उनमें शामिल हैं...
पैदावार की प्रचुरता
पिछले 75 साल में भारत 'शिप टू माउथ' जैसी स्थिति से बाहर निकलकर खानपान की बुनियादी वस्तुओं के मामले में कमोबेश आत्मनिर्भर हो गया
दुनिया के साथ रिश्ते
कूटनीति एक प्रक्रिया है; इसकी सफलता या असफलता कई बार किसी घटना के वर्षों बाद सामने आती है. हो सकता है, एक बड़ी जीत मानकर आज जिस कदम को सराहा जा रहा हो, बाद में उसे एक दृष्टिभ्रम या यहां तक कि पराजय के रूप में भी देखा जाए. इस सूची में विदेश नीति की कुछ ऐसी उपलब्धियां हैं जो वर्षों की तकनीकी प्रगति (जैसे, 1974 का शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट) या सैन्य शक्ति (1971 में बांग्लादेश में युद्धक्षेत्र की जीत या कारगिल युद्ध) का परिणाम हैं. हालांकि, दोनों तरह की उपलब्धियों में कूटनीति एक महत्वपूर्ण पहलू है. यह सूची उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने, लीक से हटकर सोचने और वैश्विक दबाव के बावजूद संतुलित रहने की भारतीय कूटनीतिक क्षमता की बानगी है.
साहस और गौरव के निर्णायक पल
भारतीय सेना आजादी के दो महीने बाद ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लड़े गए कई युद्धों और संघर्षों में से पहली जंग लड़ रही थी. मैंने उन लड़ाइयों पर नजर डाली है जो जीती गईं और जिन्होंने जंग के बाद भू-रणनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया तथा भारत की सरहदों को आकार देने में अहम योगदान दिया. भारत की सरहदों पर जोर देना जरूरी है क्योंकि अधिकतर युद्ध विवादित सीमाओं की वजह से ही हुए हैं. कुछ महत्वपूर्ण लड़ाइयों का उल्लेख न होने से पाठकों को झटका लग सकता है. 1962 की जंग पर विचार नहीं किया गया क्योंकि फोकस उन लड़ाइयों पर था जिन्हें भारत ने जीता. 1965 की हाजी पीर की जंग भी प्रबल दावेदार थी, लेकिन वह यहां जगह पाने से चूक गई क्योंकि उससे हासिल इलाके को जंग के बाद वापस लौटा दिया गया था.
विशालकाय, मजबूत और ताकतवर
आजाद भारत के कुल विकास में पुख्ता असर वाली दस सरकारी परियोजनाएं
कारोबारी साम्राज्यों के सम्राट
भारत के औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए असाधारण कारोबारी उत्साह वाले और दूरदर्शी लोगों की जरूरत थी. पेश है टॉप 10 उद्योगपति जिन्होंने देश के धन सृजन में जबरदस्त योगदान दिया है
कायाकल्प के कारक
भारत का कंगाली से खुशहाली का सफर बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा है. इन बेहद अहम फैसलों ने इसे गर्त और अतीत की उथल-पुथल के बीच रास्ता दिखाया और आधुनिक वैश्विक शक्ति केंद्र बनने में मदद की
लोकतंत्र की ताकत
वे मोड़ जब जनभावना - और कभी-कभी एक व्यक्ति के उत्साहकी शक्ति ने राष्ट्र की प्रगति के पथ को बदल दिया
'जिससे थिएटर भरेगा वैसा सिनेमा दिखाएंगे'
तमिल फिल्मों के ऐक्टर-प्रोड्यूसर विशाल कृष्ण रेड्डी 22 दिसंबर को आ रही अपनी नई फिल्म लाठी, अपने फिल्मी परिवार और हिंदुस्तान में भाषायी सिनेमा की राजनीति पर.
मूवी बन गई मिशन
नया प्रस्थान - पंद्रह साल पहले अपने शहर हिसार में थिएटर फेस्टिवल शुरू करवाते हुए शर्मा ने कहा था: “इब तो सुरुआत सै”. अब दादा लखमी उनकी हरियाणवी प्रतिबद्धता का नया प्रस्थान है. इसके जरिए उन्होंने पूरे हरियाणवी डायस्पोरा को भी छुआ है.
आरबीआई के ब्याज दर बढ़ाने का आपके पैसे पर असर
ईएमआइ में बढ़ोतरी को देखते हुए कर्ज ले चुके लोगों को उसे लौटाने की अपनी रणनीति बदलने की जरूरत होगी
पैसे से जुड़ी इन बेवकूफी भरी ग गलतियों से बचें
पैसे गंवाकर अनुभव हासिल करना आम बात है. पेश हैं ऐसी वित्तीय गलतियां जिनसे आप सीख सकते हैं और ये सबक जिंदगी में नुक्सान से बचने में आपके लिए मददगार हो सकते हैं.
इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वेक्षण उन्नत प्रदेश
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले और सर्वाधिक सुधार वाले राज्यों के विशेष वार्षिक सर्वेक्षण के 20वें संस्करण में 12 श्रेणियों में उभरे कई नए विजेता. उन राज्यों की सफलता के मंत्रों का खुलासा.
अब पेंशन का पहाड़
मुख्यमंत्री बनने की चुनौती तो पार कर ली लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए हिमाचल प्रदेश चुनाव में किए गए अपनी पार्टी के वादे पूरे करना कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हो सकता है
भारी जिम्मेदारी
भूपेंद्र पटेल और उनके मंत्रिमंडल ने जिस दिन शपथ ली, उनके आसपास हर तरफ सुकून भरी मुस्कानें बिखरी थीं. हो भी क्यों न, आखिरकार गुजरात के मतदाताओं ने सत्ता विरोधी रुझान की धारणा को धता बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा को अभूतपूर्व बहुमत जो दिया है.
चलो इक बार फिर से एक हो जाएं
समाजवादी पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर शिवपाल यादव ने स्वीकार किया अखिलेश का नेतृत्व. अब अखिलेश के सामने शिवपाल के सम्मानजनक समायोजन की चुनौती
तवांग में तीखी तकरार
भारत-चीन सीमा
रौशनी बहुत है इस चिराग में
परेश मैती सरीखी कामयाबी कम ही चित्रकारों को नसीब होती है. अब उनकी नई एक्जिबिशन इनफाइनाइट लाइट को ही लीजिए. चार शहरों में जारी इस शो में उनके काम की मात्रा और कलात्मक साधना दोनों का गहरा मेल
जनता के संघर्ष की दास्तान
पी. साईनाथ की नई किताब आजादी हासिल करने वाले साधारण महिलाओं - पुरुषों की असाधारण कहानियां बयां करती है
खाकी के असली हीरो का बिहार चैप्टर
हाल ही में आई वेब सीरीज खाकी: द बिहार चैप्टर लोगों को खूब पसंद आ रही है. मगर बिहार के अमित लोढ़ा नाम के जिस पुलिस अफसर की सच्ची कहानी पर यह सीरीज बनी है, वे इन दिनों जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे. बिहार पुलिस उनके खिलाफ कई अनियमितताओं की जांच कर रही है