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कहीं बीमार न कर दे कमजोर इम्यूनिटी
इम्यून सिस्टम मानव शरीर को बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक आदि से बचाने के लिए मिल कर काम करता है जो इन्फैक्शन और बीमारी का कारण बनते हैं. दुनियाभर की तमाम मैडिकल संस्थाएं इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने की सलाह दे रही हैं ताकि कोरोना महामारी के बाद कमजोर हुए शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाई जा सके.
लाइब्रेरी व पत्रिकाओं के प्रति उदासीनता क्यों
आधुनिक तकनीक के आने के बाद से लोगों की जीवनशैली में अंतर आया है. लिखापढ़ी कागजी कम और स्क्रीन पर अधिक होने लगी है. समस्या यह कि इस ने ऐसी जगहें लोगों से छीन लीं जहां शांति से बैठ कर पढ़ाई की जाती थी. सरकारों ने इस मौके का फायदा उठा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा है.
आपदाओं के लिए तैयारी जरूरी
पिछले एक दशक से आ रहे आपदाओं के संकेत बता रहे हैं कि कहीं कुछ तो गलत हो रहा है. इंसान आपदाओं को रोक तो नहीं सकता मगर इस की रोकथाम के लिए उपाय जरूर कर सकता है.
भारत भूमि युगे युगे
मध्य प्रदेश में 7 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुत बड़ा उलटफेर करने के लिए आम आदमी पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी.
हास्यास्पद है सीबीआई-ईडी का घमासान
लोकतंत्र और कानून के नाम पर खूब धमाचौकड़ी चल रही है. जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ईडी और सीबीआई खासा ऐक्टिव हो गई हैं, उन के छापे विपक्ष के बड़े व मुखर नेताओं पर पड़ने लगे हैं. इस से यह लग रहा है कि खेल कुछ और ही है.
नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाने में असफल अखिलेश
नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सही तर्कों व तथ्यों को सदन में रखने से ले कर सड़कों पर आम लोगों के बीच सरकार की गलत नीतियों को उजागर करने की होती है पर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भाजपा व योगी के आगे हथियार डाल चुके हैं. वे न तो सड़क पर हैं, न ही सदन में मजबूती से बात रख पाते हैं.
सुप्रीम फैसले से बदलेगी चुनाव आयुक्त की छवि
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन पर सुनाए फैसले से उम्मीद तो जगती है पर इस से चुनाव आयुक्त का पद और निष्पक्षता मजबूत होगी, कहना मुश्किल है क्योंकि सीबीआई चीफ की नियुक्ति भी पीएम, विपक्षी दल के नेता और सीजेआई का पैनल करता है. इस के बावजूद, सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठते रहे हैं.
राजनीति के कोने में पड़े रहने वाले नगरनिगम ही महत्त्वपूर्ण
एक आम आदमी के लिए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितना उस के क्षेत्र का पार्षद क्योंकि घर में यदि पानी नहीं आ रहा है या सीवर लाइन चोक है तो ऐसी समस्याओं का निस्तारण प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि वह पार्षद करेगा जिसे आप ने चुन कर निगम में बिठाया है.
"पति की मौत के बाद डिप्रेशन का शिकार हो गई थी मैं" शांती प्रिया
90 के दशक की मशहूर व सुंदर अभिनेत्री शांती प्रिया लंबे ब्रेक के बाद फिल्मों में वापसी करने जा रही हैं. वे आगामी फिल्म में सरोजिनी नायडू की भूमिका में नजर आएंगी. फिल्मों से दूरी बनाने के लंबे अंतराल में उन का जीवन कई उठापटकों से गुजरा जिस पर उन्होंने खुल कर बात की.
जब पत्नी करे परेशान
पतिपत्नी में जब कभी झगड़ा होता है तो यह मान लिया जाता है कि सारी गलती पति की ही होगी. कानून भी उसी अनुसार बनाए गए हैं जिन में पत्नियों की आवाज को ज्यादा सुना जाता है पर क्या हो जब कोई पत्नी पति को टौर्चर करे?
अपने बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाएं
बच्चा जो कुछ भी सीखता है, अपने परिवेश से सीखता है. इस में उस के मातापिता का व्यवहार सब से ज्यादा माने रखता है. बच्चा तभी वैल बिहेव्ड हो सकता है जब उस के सामने उदाहरण हो.
छाती में गोली लगने पर क्या करें
पहले जमीन, संपत्ति, धन को ले कर हुए फसादों में गोलीकांड की घटनाएं हो जाती थीं, अब तो सड़क पर अजनबियों से होने वाली तुनकबाजी तक में गोलीकांड की घटनाएं घट रही हैं. जरूरी यह है कि समझा जाए ऐसे मौके पर क्या किया जाए जब गोली छाती में लगी हो.
अंधविश्वास का भ्रमजाल
घरपरिवारों में बचपन से ही हमें अंधविश्वास के घेरे में ऐसे पालपोस कर बड़ा किया जाता है कि बड़े हो कर हम उस का पालन करने लगते हैं. समस्या यह है कि विज्ञान की देन से युवा आजकल मौडर्न और तकनीकी जरूर हो गए हैं पर वे अंधविश्वास के मामले में भी पीछे नहीं हैं, जिस का खमियाजा भुगतना पड़ रहा है.
स्कूलों के कल्चरल प्रोग्राम एक बोझ
अब स्कूल शिक्षा के मंदिर नहीं, बल्कि कमाई के अड्डे बन चुके हैं. मांबाप के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करना सबकुछ दांव पर लगाने जैसा हो चुका है. हर साल मनमानी फीस वृद्धि और आएदिन कल्चरल प्रोग्राम के नाम पर पैसे और सामान की मांग पेरेंट्स के ऊपर एक बड़ा बोझ साबित हो रहा है.
बुलडोजरवाद लोकतंत्र को रौंदती विचारधारा
बुलडोजरवाद का उद्गम तथाकथित 'शीघ्र न्याय' से होते हुए महज कुछ वर्षों में राजनीतिक हथकंडे और न्यायिक प्रक्रिया को लांघ कर त्वरित न्याय करने के रूप में बदल गया है. बुलडोजर न्याय धीरेधीरे एक विचारधारा का रूप लेता जा रहा है जो ठोस न्यायिक उपायों के भाव में एक ऐसा विकल्प बन गया है जो प्राकृतिक न्याय के मूल्यों के विपरीत है.
अडानी पर आंच
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अडानी समूह दशकों से शेयरों के हेरफेर और अकाउंट की धोखाधड़ी में लिप्त रहा. यही नहीं, मौरीशस से ले कर संयुक्त अरब अमीरात तक अनेक टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार ने कई मुखौटा कंपनियां खोल रखी हैं, जिन के तहत मनीलौंड्रिंग और भ्रष्टाचार का जबरदस्त खेल हो रहा है.
महंगाई और धार्मिक यात्राओं ने बिगाड़ा बचत का गणित
एक तरफ महंगाई के चलते लोगों की बचत कम हो रही है, दूसरी तरफ वे अपनी मेहनत की कमाई धार्मिक स्थलों की भेंट चढ़ा देते हैं. यह इसलिए कि लोगों की चर्चाओं से उन के मूल मुद्दे गायब कर दिए गए हैं.
पंजाब में फिर से आग चिंगारी किस ने लगाई
अलगाव की आवाजें चाहे अमृतसर से आएं या वाराणसी से, देश के लिए बड़ा खतरा हैं. चूंकि इन की जड़ में धर्म होता है इसलिए इन से निबट पाना आसान नहीं होता. न तो खालिस्तान की मांग नई है और न ही हिंदू राष्ट्र की. लेकिन अब दोनों समुदाय एकदूसरे को उकसा रहे हैं, जो कतई अच्छे संकेत नहीं हैं.
“गंभीर फिल्में बहुत हो गईं अब कुछ धमालमस्ती करने का मूड है" शाहिद कपूर
फिल्म इंडस्ट्री के हैंडसम ऐक्टर शाहिद कपूर अपनी अदाकारी और फिल्मों के चयन को ले कर जाने जाते हैं. उन्हें सफल अभिनेताओं में जाना जाता है. उन्होंने वैब सीरीज 'फर्जी' से अपना ओटीटी डैब्यू किया है. मीडिया लाइमलाइट से दूरी बनाने वाले ऐक्टर शाहिद ने 'सरिता' पत्रिका से बात की.
टोकाटाकी छोड़ो रिश्ते जोड़ो
पुरानी पीढ़ी अकसर अपने नियम अगली पीढ़ी पर थोपने की कोशिश में लगी रहती है जिसे बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी के लिए स्वीकारना मुश्किल होता है. दोनों के बीच ऐसे में बातबात पर टोकाटाकी का सिलसिला शुरू हो जाता है जो रिश्तों में कड़वाहट घोलता है.
मिड डे मील के घोटाले
मिड डे मील योजना शुरू की गई ताकि गरीब, पिछड़े, दलितों के बच्चे छोटी उम्र में बेलदारीमजदूरी करने की जगह स्कूलों में आएं और पढ़ाई करें. यह योजना कई मानों में भारत की सफल योजनाओं में गिनी जाती है पर इस योजना से जुड़े तमाम घोटालों ने गरीबों की थाली से भी निवाला छीनने का काम किया.
रामचरितमानस पर आखिर वे क्यों भड़के
पिछले 6 दशकों से सरिता के सुधारवादी लेखों ने लोगों को हिंदू समाज की 2000 सालों की गुलामी के कारणों पर तार्किक तरीके से तथ्य प्रस्तुत किए हैं कि दोष हमारे धर्मग्रंथों का है, जिस का प्रभाव किसी सुबूत का मुहताज नहीं. रामचरितमानस जैसे ग्रंथों ने इस भूभाग को गुलाम और पिछड़ा किस तरह बनाए रखा है, इस पर हालिया विवाद यह बताता है कि पौराणिक सोच की हमारी धारणाएं अभी भी वैज्ञानिक तर्कों पर भारी हैं.
औफिस पौलिटिक्स बिगाड़ न दे मैंटल हैल्थ
रौनक बेहद खुशमिजाज पर्सनैलिटी का व्यक्ति था. वह घर और औफिस दोनों में बेहतर सामंजस्य बनाए रखता.
लौट चलें पत्रों की दुनिया में
डिजिटल तकनीक आने के चलते हम पत्रों से संवाद करना भूलते जा रहे हैं. इस से हमारी फीलिंग्स और भाषा का तो नुकसान हो ही रहा है, साथ में आपसी संबंधों पर भी असर पड़ रहा है.
ऋषि सुनक का वायरल वीडियो उठते सवाल
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ड्राइव करते वक्त ट्रैफिक नियमों को तोड़ा तो उन्हें देश से माफी मांगनी पड़ गई. इस पूरे प्रकरण में भारत के लिए एक सीख थी. जानिए आप भी.
सैलिब्रिटी बन गए कोचिंग गुरु
देशभर में हजारों कोचिंग सेंटरों का जाल बिछा है मगर उन कोचिंग सैंटरों में कुछेक ही ऐसे मुकाम तक पहुंच पाए जिन्होंने ऐसे शिक्षकों को जन्म दिया जो अपने नाम की ब्रैंडिंग कर छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं. उन्हीं में खान सर और डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति हैं.
स्कूलों की बिल्डिंग पर जाएं या टीचर्स पर
स्कूल की भव्य बिल्डिंग को अच्छी शिक्षा का पैमाना बना दिया गया है. पेरैंट्स चाहते हैं कि उन के बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ाई करें और वे स्कूल की बिल्डिंग देख कर बच्चे का एडमिशन करा देते हैं. लेकिन क्या अच्छी बिल्डिंग में अच्छी पढ़ाई होती भी है?
पेरेंट्स पर बढ़ता होस्टल फीस का खर्च
अच्छी शिक्षा मिले तो मातापिता बच्चों को दूर भेजने में संकोच नहीं कर रहे लेकिन ऐसा करने से उन पर पढ़ाई के खर्च के अतिरिक्त होस्टल फीस व रहनेखाने के खर्चों का बोझ भी पड़ता है जो उन पर डबल मार से कम नहीं.
महंगी शिक्षा टूटते सपने
प्राइवेट कोचिंग देने वाली कंपनियां अपना बड़ा आकार ले रही हैं. कुछ तो इतनी बड़ी हो गई हैं कि उन्होंने दूसरे सैक्टर की कई कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया. कोचिंग सैंटर्स का व्यापार इस कदर फैल चुका है कि शिक्षा महंगी होती जा रही है और पेरेंट्स व छात्रों के सपने टूटते जा रहे हैं. कैसे, पेश है रिपोर्ट.
“कला के साथ राजनीति का कोई जुड़ाव नहीं होना चाहिए" विक्टर मुखर्जी
भारत में अंडर-19 क्रिकेट खेलने के बाद फिल्मी जगत में कदम रखने वाले विक्टर मुखर्जी पहले निर्देशक हैं. विक्टर मूल रूप से कोलकाता निवासी हैं, उन्होंने वैब सीरीज और फिल्में दोनों बनाई हैं.