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अपने बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाएं
बच्चा जो कुछ भी सीखता है, अपने परिवेश से सीखता है. इस में उस के मातापिता का व्यवहार सब से ज्यादा माने रखता है. बच्चा तभी वैल बिहेव्ड हो सकता है जब उस के सामने उदाहरण हो.
छाती में गोली लगने पर क्या करें
पहले जमीन, संपत्ति, धन को ले कर हुए फसादों में गोलीकांड की घटनाएं हो जाती थीं, अब तो सड़क पर अजनबियों से होने वाली तुनकबाजी तक में गोलीकांड की घटनाएं घट रही हैं. जरूरी यह है कि समझा जाए ऐसे मौके पर क्या किया जाए जब गोली छाती में लगी हो.
अंधविश्वास का भ्रमजाल
घरपरिवारों में बचपन से ही हमें अंधविश्वास के घेरे में ऐसे पालपोस कर बड़ा किया जाता है कि बड़े हो कर हम उस का पालन करने लगते हैं. समस्या यह है कि विज्ञान की देन से युवा आजकल मौडर्न और तकनीकी जरूर हो गए हैं पर वे अंधविश्वास के मामले में भी पीछे नहीं हैं, जिस का खमियाजा भुगतना पड़ रहा है.
स्कूलों के कल्चरल प्रोग्राम एक बोझ
अब स्कूल शिक्षा के मंदिर नहीं, बल्कि कमाई के अड्डे बन चुके हैं. मांबाप के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करना सबकुछ दांव पर लगाने जैसा हो चुका है. हर साल मनमानी फीस वृद्धि और आएदिन कल्चरल प्रोग्राम के नाम पर पैसे और सामान की मांग पेरेंट्स के ऊपर एक बड़ा बोझ साबित हो रहा है.
बुलडोजरवाद लोकतंत्र को रौंदती विचारधारा
बुलडोजरवाद का उद्गम तथाकथित 'शीघ्र न्याय' से होते हुए महज कुछ वर्षों में राजनीतिक हथकंडे और न्यायिक प्रक्रिया को लांघ कर त्वरित न्याय करने के रूप में बदल गया है. बुलडोजर न्याय धीरेधीरे एक विचारधारा का रूप लेता जा रहा है जो ठोस न्यायिक उपायों के भाव में एक ऐसा विकल्प बन गया है जो प्राकृतिक न्याय के मूल्यों के विपरीत है.
अडानी पर आंच
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अडानी समूह दशकों से शेयरों के हेरफेर और अकाउंट की धोखाधड़ी में लिप्त रहा. यही नहीं, मौरीशस से ले कर संयुक्त अरब अमीरात तक अनेक टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार ने कई मुखौटा कंपनियां खोल रखी हैं, जिन के तहत मनीलौंड्रिंग और भ्रष्टाचार का जबरदस्त खेल हो रहा है.
महंगाई और धार्मिक यात्राओं ने बिगाड़ा बचत का गणित
एक तरफ महंगाई के चलते लोगों की बचत कम हो रही है, दूसरी तरफ वे अपनी मेहनत की कमाई धार्मिक स्थलों की भेंट चढ़ा देते हैं. यह इसलिए कि लोगों की चर्चाओं से उन के मूल मुद्दे गायब कर दिए गए हैं.
पंजाब में फिर से आग चिंगारी किस ने लगाई
अलगाव की आवाजें चाहे अमृतसर से आएं या वाराणसी से, देश के लिए बड़ा खतरा हैं. चूंकि इन की जड़ में धर्म होता है इसलिए इन से निबट पाना आसान नहीं होता. न तो खालिस्तान की मांग नई है और न ही हिंदू राष्ट्र की. लेकिन अब दोनों समुदाय एकदूसरे को उकसा रहे हैं, जो कतई अच्छे संकेत नहीं हैं.
“गंभीर फिल्में बहुत हो गईं अब कुछ धमालमस्ती करने का मूड है" शाहिद कपूर
फिल्म इंडस्ट्री के हैंडसम ऐक्टर शाहिद कपूर अपनी अदाकारी और फिल्मों के चयन को ले कर जाने जाते हैं. उन्हें सफल अभिनेताओं में जाना जाता है. उन्होंने वैब सीरीज 'फर्जी' से अपना ओटीटी डैब्यू किया है. मीडिया लाइमलाइट से दूरी बनाने वाले ऐक्टर शाहिद ने 'सरिता' पत्रिका से बात की.
टोकाटाकी छोड़ो रिश्ते जोड़ो
पुरानी पीढ़ी अकसर अपने नियम अगली पीढ़ी पर थोपने की कोशिश में लगी रहती है जिसे बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी के लिए स्वीकारना मुश्किल होता है. दोनों के बीच ऐसे में बातबात पर टोकाटाकी का सिलसिला शुरू हो जाता है जो रिश्तों में कड़वाहट घोलता है.
मिड डे मील के घोटाले
मिड डे मील योजना शुरू की गई ताकि गरीब, पिछड़े, दलितों के बच्चे छोटी उम्र में बेलदारीमजदूरी करने की जगह स्कूलों में आएं और पढ़ाई करें. यह योजना कई मानों में भारत की सफल योजनाओं में गिनी जाती है पर इस योजना से जुड़े तमाम घोटालों ने गरीबों की थाली से भी निवाला छीनने का काम किया.
रामचरितमानस पर आखिर वे क्यों भड़के
पिछले 6 दशकों से सरिता के सुधारवादी लेखों ने लोगों को हिंदू समाज की 2000 सालों की गुलामी के कारणों पर तार्किक तरीके से तथ्य प्रस्तुत किए हैं कि दोष हमारे धर्मग्रंथों का है, जिस का प्रभाव किसी सुबूत का मुहताज नहीं. रामचरितमानस जैसे ग्रंथों ने इस भूभाग को गुलाम और पिछड़ा किस तरह बनाए रखा है, इस पर हालिया विवाद यह बताता है कि पौराणिक सोच की हमारी धारणाएं अभी भी वैज्ञानिक तर्कों पर भारी हैं.
औफिस पौलिटिक्स बिगाड़ न दे मैंटल हैल्थ
रौनक बेहद खुशमिजाज पर्सनैलिटी का व्यक्ति था. वह घर और औफिस दोनों में बेहतर सामंजस्य बनाए रखता.
लौट चलें पत्रों की दुनिया में
डिजिटल तकनीक आने के चलते हम पत्रों से संवाद करना भूलते जा रहे हैं. इस से हमारी फीलिंग्स और भाषा का तो नुकसान हो ही रहा है, साथ में आपसी संबंधों पर भी असर पड़ रहा है.
ऋषि सुनक का वायरल वीडियो उठते सवाल
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ड्राइव करते वक्त ट्रैफिक नियमों को तोड़ा तो उन्हें देश से माफी मांगनी पड़ गई. इस पूरे प्रकरण में भारत के लिए एक सीख थी. जानिए आप भी.
सैलिब्रिटी बन गए कोचिंग गुरु
देशभर में हजारों कोचिंग सेंटरों का जाल बिछा है मगर उन कोचिंग सैंटरों में कुछेक ही ऐसे मुकाम तक पहुंच पाए जिन्होंने ऐसे शिक्षकों को जन्म दिया जो अपने नाम की ब्रैंडिंग कर छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं. उन्हीं में खान सर और डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति हैं.
स्कूलों की बिल्डिंग पर जाएं या टीचर्स पर
स्कूल की भव्य बिल्डिंग को अच्छी शिक्षा का पैमाना बना दिया गया है. पेरैंट्स चाहते हैं कि उन के बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ाई करें और वे स्कूल की बिल्डिंग देख कर बच्चे का एडमिशन करा देते हैं. लेकिन क्या अच्छी बिल्डिंग में अच्छी पढ़ाई होती भी है?
पेरेंट्स पर बढ़ता होस्टल फीस का खर्च
अच्छी शिक्षा मिले तो मातापिता बच्चों को दूर भेजने में संकोच नहीं कर रहे लेकिन ऐसा करने से उन पर पढ़ाई के खर्च के अतिरिक्त होस्टल फीस व रहनेखाने के खर्चों का बोझ भी पड़ता है जो उन पर डबल मार से कम नहीं.
महंगी शिक्षा टूटते सपने
प्राइवेट कोचिंग देने वाली कंपनियां अपना बड़ा आकार ले रही हैं. कुछ तो इतनी बड़ी हो गई हैं कि उन्होंने दूसरे सैक्टर की कई कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया. कोचिंग सैंटर्स का व्यापार इस कदर फैल चुका है कि शिक्षा महंगी होती जा रही है और पेरेंट्स व छात्रों के सपने टूटते जा रहे हैं. कैसे, पेश है रिपोर्ट.
“कला के साथ राजनीति का कोई जुड़ाव नहीं होना चाहिए" विक्टर मुखर्जी
भारत में अंडर-19 क्रिकेट खेलने के बाद फिल्मी जगत में कदम रखने वाले विक्टर मुखर्जी पहले निर्देशक हैं. विक्टर मूल रूप से कोलकाता निवासी हैं, उन्होंने वैब सीरीज और फिल्में दोनों बनाई हैं.
मिसेज मेघना राघव गुप्ता
मेघना की खूबसूरती के साथ ही उस की जाति को ले कर औफिस में तरहतरह की चर्चाएं हो रही थीं. जब मेघना ने अपनी शादी का कार्ड औफिस के कलीग को दिया तो कार्ड देख कर सभी हक्केबक्के रह गए.
अनकहा रिश्ता
पत्नी के देहांत के बाद महेशजी अपने बेटे के साथ शहर आ तो गए पर उन का मन लगाने के लिए वहां कोई न था. एक दिन उन्हें सामने वाले फ्लैट में एक संभ्रांत महिला दिखी. उस से इशारों में अभिवादन होने लगा. उन का मन अब लगने लगा परंतु यह अनकहा रिश्ता क्या अनकहा ही रह गया?
डीएनए जांच से डरना कैसा
डीएनए एक साइंटिफिक तरीका है यह पता लगाने का कि बच्चे के मातापिता कौन हैं पर डीएनए का इस्तेमाल कई और कारणों से भी होता है. जानिए आप भी.
फिल्मी हीरो पुलिस सिस्टम से लड़ता जांबाज आम आदमी
भारतीय सिनेमा को देखें तो दर्शक उन फिल्मों को खुद से ज्यादा रिलेट करते हैं जिन में एक आम आदमी सिस्टम या उस के किसी अंग, चाहे वह कोई चुना नेता, पुलिस या कोर्ट हो, से टकरा रहा होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह खुद को सताया हुआ महसूस करता है. हालिया फिल्मों में इस ट्रैंड से क्या संदेश मिल रहे हैं?
भारतीयों की बढ़ती औसत आयु का सच
पिछले 4 दशकों में भारतीय पुरुषों व महिलाओं की औसत आयु में निश्चित रूप से वृद्धि तो हुई है पर भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं. यह सोचने की बात है कि आखिर भारत के लोग अंतिम दिनों में सेहतमंद जिंदगी क्यों नहीं गुजार पाते?
शेकी पोर्टफोलियो न बनने दें
किसी के लिए भी जौब छोड़ना आसान नहीं होता. जौब छोड़ने के कुछ कारण होते हैं. यदि कोई जौब सिर्फ शेकी पोर्टफोलियो बनाने के लिए छोड़ रहा है। तो यह भूल से कम नहीं.
गुस्सैल औरत कैसे निबटें
बाहरी गतिविधियों में शामिल होने से पुरुषों को यह फायदा मिलता है कि वे अपने मूड को शिफ्ट कर लेते हैं पर भारत में अधिकतर महिलाएं घरों में बंद जिंदगी जीती हैं, अधिकतर परेशानियां वे किसी से शेयर नहीं कर पातीं जिस के चलते उन में गुस्सा व तनाव पैदा होने लगता है. ऐसी स्थिति से कैसे निबटें जब औरत का स्वभाव गुस्सैल हो जाए.
डार्क टूरिज्म लोगों में बढ़ रही बरबादी देखने की तलब
दुनियाभर में डार्क टूरिज्म का चलन बढ़ा है. लोग ऐसी जगहों पर जाने के लिए उत्सुक हैं जहां से कोई डार्क हिस्ट्री जुड़ी हो. दरअसल यह जगह एक अलग तरह की क्यूरोसिटी पैदा करती है.
हिंसक होते शिक्षक बेहद चिंतनीय
स्कूलों में शिक्षकों द्वारा छात्रों को मारनापीटना कानूनन अपराध है, फिर भी ऐसी घटनाएं सामने हैं जहां शिक्षक इसे 'गुरु अधिकार' समझ छात्रों की बेरहमी से पिटाई करते हैं. जरूरी है कि ऐसे हिंसक शिक्षकों से निबटा जाए.
बेरोजगारी पर सरकार मौन
देश में बेरोजगारी सब से बड़ा और गंभीर मुद्दा है. भारत में लाखों की तादाद में पढ़ेलिखे युवाओं के पास नौकरियां नहीं हैं. सरकारी नौकरियों में लाखों पद खाली पड़े हैं मगर सरकार युवाओं को काम नहीं देना चाहती बल्कि उन्हें धर्म व राजनीति के चक्रव्यूह में उलझाए रखना चाहती है.