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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।
सदियों के शहर में आठ पहर
क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
एक वीगन का खानपान
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
सदा दिवाली आपकी...
दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
'मां' की गोद भी मिले
बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।
किशोर जीवन में शोर
किशोरवय यानी न पूरी तरह बालपन, न पूर्ण यौवन । बीच की अवस्था। इस स्थिति की अपनी दुविधाएं और समस्याएं होती हैं। आज के किशोर पिछली पीढ़ियों की तरह शारीरिक और मानसिक बदलावों से जूझ ही रहे हैं और तुर्रा यह कि नए ज़माने की नई तकनीकों और चलन ने उनकी दिक़्क़तें बढ़ा दी हैं। ऐसे भटकाने वाले संसार में उनका सच्चा दोस्त कौन बनेगा, उनका हाथ कौन थामेगा- उनके अपने परिजन और शिक्षक ही न?
बचपन बनाम हम
होना तो चाहिए था बचपन और हम और अच्छा होता जब होता बचपन के साथ हम । लेकिन हो गया बचपन बनाम हम ! अब बच्चे अपने हिसाब से जीना चाहते हैं और बड़े उन्हें अपने हिसाब से जीना सिखा देना चाहते हैं। इस चक्कर में बचपन खो गया है और शायद बड़प्पन भी। तो, 14 नवंबर, बाल दिवस के अवसर पर क्या यह बेहतर नहीं होगा कि बचपन की सुहानी यादों और मीठी-मीठी बातों के बजाय वास्तविकता से दो-दो हाथ किए जाएं और एक व्यावहारिक हल निकाला जाए?
स्वभाव से भी कंवल...
उनकी तमन्ना छोटे शहर से निकलकर कुछ बड़ा करने की थी। वे पायलट बनना चाहते थे, पर बनते-बनते रह गए। उन्हें यूं तो अभिनय का कोई शौक नहीं था, लेकिन कुछ अलग और विशेष करने की धुन में एफटीआईआई के एक्टिंग कोर्स का फॉर्म चुपचाप भर दिया और क़िस्मत देखिए वे वहां पहली बार में ही चुन लिए गए। लंबे क़द और सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक इस युवा को तुरंत ही बड़े-बड़े बैनर की फिल्में भी मिलीं। फिर जब बड़े पर्दे पर मन मुताबिक़ काम नहीं मिला तो उत्साह से भरे इस अदाकार ने टीवी का रुख किया और बुनियाद, फ़रमान, दरार, फैमिली नंबर 1, सांस जैसे धारावाहिकों से ऐसी सफलता पाई कि घर-घर पहचाने जाने लगे। पंजाबी फिल्मों की कामयाबी भी उनके उल्लेख के बिना अधूरी है। 55 वर्षों से परदे की दुनिया पर सक्रिय और 50 से ज़्यादा फिल्में और 25 से ज़्यादा टीवी सीरियल कर चुके जेंटलमैन अभिनेता कंवलजीत सिंह हैं इस बार हमारे अहा अतिथि....
ख़ुशकिस्मती कहां मिलती है?
एक जैसी परिस्थिति में एक व्यक्ति की क़िस्मत खुल जाती है, जबकि दूसरा अपनी क़िस्मत पर रोता रह जाता है। जाहिर है, ख़ुशकिस्मती और बदकिस्मती का अंतर बाहरी हालात से तय नहीं होता। फिर कौन-सी चीज़ निर्णायक होती है?
प्रार्थना की ऊर्जा आनंददायी है
ज्ञानार्जन के मार्ग में प्रार्थी भाव का होना जीवनभर के आनंद और संतुष्टि की कुंजी है। बच्चों को प्रार्थना करना सिखाना उन्हें निराशा से दूर रखने में मददगार होगा। इस पर विश्वास, इसके अभ्यास का आधार है।
भीतर से आता है उत्सव
पर्व शब्द से ही पर्वत बना है। पहले कम ऊंची चोटी वाले, फिर उससे ऊंचे, फिर उससे ऊंचे पर्वत दिखाई देते हैं जो कहते हैं कि सही अर्थों में 'पर्व' ही है जो हमारी चेतना को उत्तरोत्तर ऊंचाई की ओर ले जाते हैं।
कुछ तो है!
भविष्यवक्ता तो आगामी के बारे में बताते ही हैं, कभी-कभी आम लोगों को भी पूर्वाभास हो जाते हैं। हम किसी को याद करते हैं और उसी क्षण उसका फोन आ जाता है। दिल कहता है कि यात्रा टाल दो और बाद में पता चलता है कि वह गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह मानव की छठी इंद्रिय है या सामूहिक चेतना या फिर महज़ संयोग?
दांपत्य के चार रहस्य
गृहस्थी में होते हुए भी हम इसके बारे में बहुत कुछ समझ नहीं पाते। अगर ये चार चीज़ें भी जान लें तो गृहस्थी काफ़ी आसान और सुखद हो जाएगी...
मेरी दोस्ती मेरी फटकार
कहावत है कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे मित्र मान लेना चाहिए। आज के दौर में भी अभिभावकों को किशोरवय संतानों के साथ दोस्ती कर लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन क्या बच्चों का दोस्त बन जाना ही पर्याप्त है ? क्या सख़्ती से बात बिगड़ ही जाएगी? कब दोस्ताना रहना है और कब कठोर होना है? सवाल कई हैं और जवाब भी कोई एक नहीं है।
एक नई सार्वजनिक नैतिकता
जीवित प्राणियों को वस्तु की तरह देखने वाली. उपभोक्तावादी दृष्टि आधुनिक सभ्यता का शाप है। अगर आप इस पर आवाज़ नहीं उठाएंगे तो आपसे कोई शिकायत नहीं करने वाला है। क्रूरता पर सर्वसम्मति बना ली गई है। लेकिन इससे सच नहीं छुप जाता और वह सच घृणित है।
नौ रूपों में नारी जीवन
देवी के नौ रूपों में नारी के वे सद्गुण परिलक्षित होते हैं जिनके कारण स्त्री को देवी माना गया है। इन्हीं नौ रूपों में एक स्त्री के जन्म से अंत तक के सारे रूप अभिव्यक्त होते हैं। इस तरह नवरात्र में नवदुर्गा के रूप में लोक नारी की संपूर्ण जीवनयात्रा को ही नमन करता है।
आदत छूटे तो आज़ादी मिले
बुरी आदतें तो ख़ैर त्याज्य हैं ही, पर अच्छी आदतों की भी बुरी बात यह है कि उनके चलते हम यंत्रवत हो जाते हैं, मशीन की तरह जीने लगते हैं। इसलिए आदत कैसी भी हो, उसे छोड़ना ज़रूरी है, ताकि हम अपनी स्वतंत्र हस्ती को जान पाएं।
सात वार, नौ त्योहार
सात वार, नौ त्योहार की कहावत हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति का सार है। इसका अर्थ है आनंद मंगल होना। हमारे लिए तो हर दिन उत्सव है, पंचांग के लिहाज़ से भी और हमारी परंपरागत दिनचर्या और व्यवहार के हिसाब से भी। आधुनिक जीवन की आपाधापी और मूल्यों के बदलाव में हम भले ही कहीं और खुशियां खोजने लगे हैं, लेकिन असल आनंद तो पर्व-उत्सवों में ही है। ऐसा क्यों है, इसकी पड़ताल से वे सूत्र मिलेंगे जो आपके हर दिन को उत्सव बना देंगे।
अदायगी के रंग अनंत
74 बरस के अनंत महादेवन काफ़ी पहले ही अभिनय, निर्देशन और पटकथा लेखन में एक पुख्ता पहचान बना चुके हैं। उन्होंने व्यावसायिक और कला, दोनों तरह के सिनेमा में कामयाबी पाई है जो बिरलों को ही नसीब होती है। बावजूद इसके वे कहते हैं कि अभी अपने सपनों का दस फ़ीसदी भी हासिल नहीं किया है तो इसलिए कि नाम की तरह उनके सपनों का विस्तार भी अपार है। जिस उम्र में लोग आराम के बारे में सोचते हैं, वे शिद्दत से ऐसा काम तलाश रहे हैं जो सौ बरस तक दर्शकों के दिलों में ज़िंदा रहे। इस बार बहुआयामी प्रखर प्रतिभा के धनी अनंत महादेवन बतौर अहा ! अतिथि सुना रहे हैं अपनी कहानी।
उन्नति के लिए आभार
अपने जन्म के लिए, जीवन के लिए, कामकाज और सफलता के लिए, हर चीज़ के लिए आभार प्रकट करें। जब आप आभार जताते हैं तो आपको और भी आशीष व सहयोग मिलता है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति होती है।
अंतरिक्ष केंद्र सतीश धवन
श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम जिनके नाम पर 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' है, वे सही मायनों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के केंद्र रहे हैं।
हरी-हरी धरती पर हर
वर्षा की विदाई वेला है। नदियों का कलकल निनाद गूंज रहा है, धरती ने हरीतिमा की चादर ओढ़ रखी है, प्रकृति का हर हिस्सा खिला-खिला, मुस्कराता-सा लग रहा है।
गजानन सुख कानन
भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी श्रीगणेश के आगमन की पुण्यमय तिथि है। देव अपना लोक छोड़ मर्त्य मानवों के निवास में उन्हें तारने आ बैठते हैं।
जब मंदिर में उतर आता है चांद
यायावर के सफ़र में तयशुदा गंतव्य तो उसका पसंदीदा होता ही है, राह के औचक पड़ाव भी कोई कम मोहक नहीं होते। बस, दरकार होती है एक खुले दिल और उत्सुक नज़र की। महाराष्ट्र के फलटण से खिद्रापुर के बीच की दूरी यात्रा की परिणति से पहले के छोटे-छोटे आनंद को संजोए हुए है इस बार की यायावरी।
भावनाओं के क़ैदी...
भावनाएं और तर्क हमारे व्यक्तित्व के दो अहम हिस्से हैं और दोनों ही ज़रूरी हैं। लेकिन कभी भावनाएं प्रबल हो जाती हैं तो तार्किक बुद्धि मौन हो जाती है। इसके चलते तनाव बेतहाशा बढ़ जाता है, आवेग में निर्णय ले लिए जाते हैं और फिर अक्सर पछताना ही पड़ता है। यही 'इमोशनली हाईजैक' होना है। जीवन का सुकून इससे उबरने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।