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मेरा वो मतलब नहीं था!
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
...जहां चाह वहां हिंदी की राह
भाषा के मामले में असल चीजें हैं प्रवाह और प्रयोग...हिंदी शब्द समझने में सरल होंगे, अर्थ को ध्वनित करेंगे, और उनका नियमित प्रयोग होगा तो किसी भी क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की घुसपैठ के लिए कोई बहाना ही नहीं बचेगा...
हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
पहले हमने दुनिया को विज्ञान का ज्ञान दिया और अब खुद एक विदेशी भाषा में विज्ञान पढ़ रहे हैं। इस बीच आख़िर हुआ क्या? विज्ञान आगे बढ़ गया और हिंदी पीछे रह गई या फिर हमने अपनी भाषा की क्षमता को जाने बग़ैर ही उसे अक्षम मान लिया?
फिल्म नगरिया की भाषा
कितनी अजीब बात है कि हिंदी फिल्म उद्योग की भाषा हिंदी नहीं है। हिंदी फिल्मों में शुद्ध हिंदी का मज़ाक़ बनाया जाता है। सेट पर बातचीत अंग्रेज़ी में होती है, पटकथा अंग्रेज़ी में लिखी जाती है और संवाद रोमन में। हिंदी फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले सितारे हिंदी बोलने में हेठी देखते हैं। हालांकि इस घटाटोप के बीच अब आशा की कुछ किरणें चमकने लगी हैं...
हिंदी किताबों में हिंदी
कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?
हस्ती जमील अदाकारी अज़ीज़
जमील ख़ान और अमिताभ बच्चन में तीन बातें समान हैं: दोनों शेरवुड नैनीताल में पढ़े हैं, दोनों ने 'चीनी कम' में काम किया, और दोनों को छोटे पर्दे ने लोगों के दिलों में बसाया और अपार सम्मान दिलाया। वेबसीरीज़ 'गुल्लक' में पिता यानी संतोष मिश्रा का किरदार निभाने वाले जमील ने लंबे संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने सिद्ध किया कि क़द-काठी से अधिक मायने रखती है अभिनय क्षमता और कुछ कर दिखाने की गहरी इच्छा। अरबी शब्द जमील का अर्थ होता है, सुंदर। अपने नाम के अनुरूप ख़ूबसूरत विचारों वाले जमील ख़ान बतौर अहा! अतिथि पाठकों से रूबरू हैं...
आप क्या चुन रहे हैं?
बक़ौल अमेरिकी लीडर विलियम जेनिंग्स ब्रायन, 'भाग्य संयोग से नहीं बनता है। यह तो आपके चयन से बनता है।' इसलिए हमेशा सचेत रहें कि आप किस बारे में सोच रहे हैं और दूसरों की अच्छी चीज़ों को देखकर कैसा महसूस कर रहे हैं। आप जीवन के कैटलॉग से चुनाव अपनी भावनाओं के ज़रिए करते हैं।
अपने दुश्मनों से दो-दो हाथ कीजिए
समय निकालिए ताकि आप कुछ ऐसा कर सकें, जिससे आप अपने जीवन में लय और आनंद को वापस हासिल कर सकें। ऊब और थकान आपके दो दुश्मन हैं। इनसे दो-दो हाथ कीजिए क्योंकि ये आपका वक़्त क़त्ल कर रहे हैं।
खेत में ख़ुशहाली की फ़सल
प्राकृतिक खेती में पारंगत कानसिंह निर्वाण को सिर्फ़ साक्षर होते हुए भी समझ आ गया कि प्राकृतिक खेती, मूल्य संवर्धन और खुद कृषि विपणन करने के साथ कृषि पर्यटन को अपनाना ग्रामीण खुशहाली की बेहतरीन पगडंडी है। उनकी कहानी, उनकी जुबानी...
सबै भूमि गोपाल की
गोपालगंज! प्राचीन गोपाल मंदिर की भूमि | अपनी अलहदा पहचान के साथ आबाद है यह शहर | इसके मनोहारी रूप में एक ओर तीखे तेवर का चटकारा है तो दूजी ओर हर एक के प्रति अपनेपन का लिहाज़ भी । मिठास इतनी कि कचहरी तक में परस्पर विरोधी पक्ष साथ आते और मिलकर खाते हैं। ऐसे निराले शहर की गाथा इस बार शहरनामा में ...
अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले
जन्म के सौ साल बाद तथा मृत्यु के लगभग तीस साल बाद भी हरिशंकर परसाई की रचनाएं उसी प्रकार पढ़ी जा रही हैं, जिस प्रकार आज से तीस, चालीस, पचास साल पहले पढ़ी जा रही थीं। सोशल मीडिया पर तैर रहे उनके व्यंग्य-अंशों के साथ लगा हुआ नाम हटा दिया जाए तो कोई विश्वास नहीं करेगा कि वे चालीस-पचास साल पहले लिखे गए हैं, आज के नहीं हैं। दूसरे बड़े और महान लेखकों के मामले उनके नाम काल को जीता है, वहीं हरिशंकर परसाई के मामले में उनकी रचनाओं ने काल को जीता है। परसाई की ही रचना 'टॉर्च बेचने वाले' के शीर्षक को कुछ बदलकर कहें तो वे बेचने वाले नहीं, अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले हैं। कालजयी हरिशंकर परसाई और उनकी क़लम का सफ़र इस बार ज़िंदगी की किताब मेंविशेष अवसर है इस महीने की 22 तारीख़ को परसाई जयंती का....
विशिष्ट है यह किरण
विज्ञान की एक अनोखी खोज जो कैंसर के जन्म का कारण भी बनी और कैंसर निवारक भी। कभी जादू कहलाकर इंसान के भीतर झांकने वाली ऊर्जा विकिरण की यह तकनीक कैसे प्राणघातक होते हुए भी जीवनदायिनी बनी, जानिए इस बार आगामी अतीत में।
वेदों में वृक्ष
निरंतर बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण का समाधान हमारी वैदिक ऋचाओं में समाया है। हमारी प्राच्य विद्याओं में फैली असंख्य रचनाओं में सर्वत्र प्रकृति-प्रेम और पर्यावरण चेतना का तुमुलनाद है। इसे आत्मसात करके ही हम एक सुखद भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
ऐसी भी क्या जल्दी है
सड़क पर कोई गाड़ी आंधी की रफ़्तार से बग़ल से गुजरे तो सहसा मुंह से यही निकलता है कि भई ... जो दूसरों की जान जोखिम में डाल दे? इसलिए, थोड़ा ठहरिए और जानिए कि जल्दबाज़ी इस युग में क्यों बन गई है बीमारी।
क़र्ज़ दो और घी पियो
डेट फंड में निवेश किया गया आपका धन सरकार या कंपनियों को ऋण के रूप में दिया जाता है। यह क़र्ज़ किसे दिया जाता है, उससे तय होता है कि आपको अपने निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा और आपका पैसा कितना सुरक्षित रहेगा। इनमें समझदारी से लगाया गया पैसा अन्य सुनिश्चित लाभ योजनाओं के मुक़ाबले अधिक कमाऊ हो सकता है।
दिल की बात दांत-आंत के साथ
जन्म के पहले जो धड़कने लगता है और जीवनपर्यंत चलता ही रहता है, जिसका सुचारु रूप से काम करना शरीर के हर अंग के लिए अनिवार्य होता है-
नाम में क्या रखा है!
पश्चिम ने नाम को नगण्य माना, परंतु पूर्व ने नाम को शिरोधार्य रखने की वस्तु बनाया। नामकरण को उत्सव बनाया और नाम को सोच-विचारकर शृंगार की तरह धरा। नाम की बड़ी महिमा है। नाम लोक प्रदत्त प्रथम निधि है, यह कुल का वह प्रतीक है जिसका संग मृत्युशय्या तक होता है। अच्छा नाम देहदहन के पश्चात भी लोक में रह जाता है और बुरा नाम शरीर से पहले ही मिट जाता है।
जंगल में मोर नाचा
मेह के मेघ आसमान में गहराए नहीं कि केहूं-केहूं का स्वर उच्चारता मोर, इंद्र की हज़ार आंखें अपने पंखों में सजाए, रिमझिम की अगवानी में थिरकने लगता है। मयूर नृत्य की ऋतु में उसके अद्वितीय सौंदर्य और मनमोहक नर्तन का साक्षात कीजिए इन शब्दों में....
जब लबालब थे तालाब
...तब जीवन भी ख़ुशियों से लबालब हुआ करता था। पानी की तरह था समाज- साथ खेलने वाला, मिलजुलकर पर्व-उत्सव मनाने वाला और जुटकर काम करने वाला। तालाब सूखे तो शायद समाज का पानी भी सूख गया। अब तो सावन भी सूखे तालाबों को जिला नहीं पाता।
शांत घाटी में शीत की छटा
कश्मीर में गुलमर्ग, पहलगाम जैसे सुपरिचित स्थलों के उलट, आम सैलानियों की नज़रों से दूर एक संवेदनशील घाटी है गुरेज़। कभी आतंकियों की घुसपैठ से सिसकती थी, लेकिन आज अपनी शांत शीत आभा लिए पर्यटकों का स्वागत कर रही है। इस बार की हमारी यायावरी में है नीलम नदी के तट पर सफ़ेद चादर ओढ़े गुरेज़ वैली की ख़ूबसूरती और प्रकृति के साथ ताल मिलाती इसकी संस्कृति की बानगी।
आज़ादी की अगस्त पीठिका
वह साल बयालीस था । अगस्त का भीगता मौसम भारतीयों के मन में प्रज्वलित स्वतंत्रता की अग्नि को ठंडी करने के स्थान पर और भी प्रचंड कर रहा था। इसी के फलस्वरूप जन्मी एक क्रांति जो हमारी बहुप्रतीक्षित आज़ादी की नींव बनी। अगस्त के उसी आगाज़ का रोचक वृत्तांत पूर्वपीठिका और परिणति के साथ।
जय कन्हैया लाल की
द्वापर के अवतार की, कलजुग के कालजयी किरदार की। अधरों पर मंद मुस्कान धरे- प्रेम, ज्ञान, मैत्री, भक्ति और मुक्ति के धुरीधार की। भारतीय दर्शन की आत्मा, भादव-भाग्य में आलोकित नीलाभ की। पावन कथा पर्व प्रसंग में, इस बार जन-जन के नाथ की, तो बोलिए हाथी, घोड़ा, पालकी...
कप के साथ सबक़
अनिश्चितताओं का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के फटाफट फॉर्मेट टी20 में मैच के दौरान इतने उतार-चढ़ाव होते हैं, जितने पूरे जीवन में भी न आते हों। इस रोमांचक मनोरंजन के बीच थोड़ा ठहरकर ग़ौर करें तो वहां हर लम्हे से उपयोगी सबक़ लिए जा सकते हैं। इस बार के टी20 विश्वकप में हमें ख़िताब के साथ मिली हैं ऐसी ही कुछ अहम सीखें ....
समस्या में ही है समाधान
समस्या से हम भागते हैं या उसका समाधान खोजने में जुट जाते हैं। दोनों ही रास्ते ग़लत हैं। पहले तो समस्या को समझना होगा, यह देखना होगा कि वह समस्या है भी या नहीं। फिर समाधान भी उसी के अंदर मिल जाएगा।
कैमरे की ऊंची उड़ान
कैमरा दुनिया को उस नज़रिये से दिखा सकता है जो इंसानी आंखों के बस की बात नहीं। ड्रोन फोटोग्राफी इसका जीवंत उदाहरण है।
हर हाथ कैमरा तो है...
परंतु फोटोग्राफी का शऊर कहां है! खटाखट आड़ी-तिरछी आठ-दस तस्वीरें लेकर उनमें से एकाध पर ढेर फिल्टर लगा देना न तो कला है न ही साधना | विचार कीजिए...
जंगल में रोमांच की राहें
इंसानों को विभिन्न मुद्राएं बनाने के लिए कहा जा सकता है, दृश्यों की तस्वीरें अलग-अलग कोणों से ली जा सकती हैं, किंतु जंगली पशु-पक्षियों के छायाचित्रण के लिए धैर्य रखने और सटीक क्षण का इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं हो सकता। इसके साथ ही रखनी पड़ती है सावधानी और सतर्कता, क्योंकि एक छोटा-सा पक्षी भी गहरी चोट पहुंचा सकता है। वन्यजीवन फोटोग्राफी के रोमांचक संसार में आपका स्वागत है!
एक क्लिक का कमाल
कैमरा हाथ में आते ही व्यक्ति विशिष्ट हो जाता है। दुनिया को देखने की उसकी दृष्टि बदल जाती है। वह व्यापक फलक पर नज़र डालता है और बहुत बारीकी से भी। तब सौंदर्य की परिभाषा ही परिवर्तित हो जाती है, क्योंकि छायाकार के लिए संसार में कुछ भी असुंदर नहीं होता। वह प्रकृति के हर अंश में ख़ूबसूरती खोज लेता है, या यूं कहें कि कैमरे की बदौलत हर शै को आकर्षक बनाने की कुव्वत रखता है। कैमरे के क्लिक के ज़रिए किसी पल को क़ैद कर लेना कला ही तो है ! 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के मौक़े पर हमारी आमुख कथा इस कला के विभिन्न पहलुओं को समझने और इसका वास्तविक आनंद उठाने के लिए आमंत्रित कर रही है।
सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर
क़लम-कहानी की लाग ने उन्हें रंगमंच से सिने जगत और वहां से आमजन के दिलों तक पहुंचा दिया। तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्में बनाने वाले मेहुल को अपने दौर के सिनेमा का ट्रैक बदलने के साथ ही राजकुमार, नाना पाटेकर और अमिताभ बच्चन जैसी क़द्दावर हस्तियों के कॅरियर में अहम मोड़ लाने का श्रेय भी जाता है। एक लेखक, रंगमंच हस्ती और फिल्म निर्देशक के रूप में आधी सदी तक दर्शकों की नब्ज पकड़े रखने वाले मेहुल कुमार हैं इस बार हमारे अहा ! अतिथि। मेहुल बयां कर रहे हैं अपना सफ़रनामा, जिसमें परदे के पीछे के कई रोचक क़िस्से भी चले आए हैं।
इच्छा जताएं कि अनुशासन बनाएं?
इच्छाशक्ति सीमित है, इस्तेमाल करने पर कम हो जाती है। आत्म-अनुशासन एक आदत है, व्यवस्था है- एक बार बन जाए, फिर प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। फ़ैसला आपका है!