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इम्यूनिटी बढ़ाएं जीवन बचाएं
शरीर में इम्यूनिटी का होना वैसे तो हैल्थ के लिए हर समय जरूरी है लेकिन कोरोनाकाल में इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि इसे संतुलन में लगातार कैसे रखा जाए.
"भारत में हर चीज पौलिटिकल नजरिए से देवी जाती है" मनोज मौर्य
प्रतिभाशाली मनोज मौर्य लेखन, पेंटिंग, निर्देशन कुछ भी कह लो, हर काम में माहिर हैं. वे लघु फिल्मों के रचयिता के तौर पर भी जाने जाते हैं. उन की ख्याति विदेशों तक फैली है. बतौर निर्देशक, वे एक जरमन फिल्म बना कर अब फीचर फिल्म की तरफ मुड़े हैं.
अनाथ बच्चे गोद लेने में भी जातीयता
'2 साल की बेटी और 2 माह के बेटे के मातापिता कोविड के कारण नहीं रहे. इन बच्चों को अगर कोई गोद लेना चाहता है तो दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें. ये ब्राह्मण बच्चे हैं. सभी ग्रुपों में इस पोस्ट को भेजें ताकि बच्चों को जल्दी से जल्दी मदद मिल सके.' ऐसे मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
स्वास्थ्य बीमा लिया क्या
आम कोरोना की दूसरी लहर ने तो आम, खासे खातेपीते लोगों की भी कमर तोड़ दी है. इलाज के खर्च का भार कम करने के लिए स्वास्थ्य बीमा एक बेहतर विकल्प है.
कोरोना का कहर- घरघर में मौतें हो रही हैं जबकि सरकार महल व मंदिर बनाने की जिद पर अड़ी है
अब हर घर कोरोना का शिकार है क्योंकि लाखों के अपने छिन गए हैं. जिस मुश्किल दौर में देश है, उस की कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी, यह कोरोना का इलाज न मिलने की दहशत है. अफरातफरी और बुनियादी सहूलियतों का अभाव है, जिस ने सरकार की बेरहमी की कलई उधेड़ कर रख दी है. सत्ता का सुख भोगने के लिए सरकार चुनाव भी कराए जा रही है, संसद भवन बनाने में लगी है और मंदिर की ओर जा रही है.
पैसे नहीं तो धर्म नहीं
कोरोना ने एक झटके में धार्मिक मान्यताओं की धज्जियां उड़ा दी हैं. कोरोना ने समझा दिया है कि घरपरिवारों में होने वाले सुखदुख के किसी भी अवसर को धर्म के साथ जोड़ने या हजारोंलाखों रुपए खर्च कर के धर्म के ठेकेदारों के हाथों कुछ करवाने की जरूरत नहीं है. यह बात जितनी जल्दी आम आदमी की समझ में आ जाए, एक बेहतर समाज व बेहतर देश बनाने के लिए उतना अच्छा होगा.
भारतीय नारी और डेली सोप
क्या आप जानते हैं जिन सीरियलों को आप रोजाना टीवी पर देख रहे हैं वे कैसे महिलाओं के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं, कैसे हर समय महिलाओं के चालचलन, उठनेबैठने और चितचरित्र को पुरुषवादी एंगल से गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं? नहीं न, तो पढ़ें यह लेख.
नीरव मोदी- हीरा किंग से घोटालेबाज तक
नीरव मोदी कभी 'हीरा किंग' के नाम से मशहूर था, आज घोटालेबाज और भगोड़े के नाम से जाना जाता है. शानोशौकत और ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने वाला नीरव आज लंदन की कालकोठरी के अंधेरे कोने में बैठा अपनी आजादी की भीख मांग रहा है और लंदन कोर्ट के हालिया फैसले के बाद अब उस के पास बच निकलने के मौके बहुत कम हैं.
राजनीति के केंद्र में अब 'ममता फैक्टर'
पश्चिम बंगाल में भाजपा को मिली करारी हार ने मानो विपक्ष को संजीवनी ला कर दे दी हो. इस चुनाव ने यह दिखा दिया कि यदि सही रणनीति, कौशलता, सूझबूझ व कड़ी मेहनत से चुनाव लड़ा जाए तो भाजपा के धनबल, दमखम, मीडिया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसी चालों को बुरी तरह मात दी जा सकती है. यही कारण है कि विपक्ष के पास अगले चुनावों में ममता फैक्टर ही सब से अधिक काम आने वाला है जिस की शुरुआत यूपी फतह से संभव है.
तलाक हर औरत का अधिकार
तलाक हर औरत का मौलिक अधिकार होना चाहिए. आखिर वह धर्म और समाज के इशारे पर गुलामी, हिंसा और प्रताड़ना क्यों झेले? उसे किन परिस्थितियों में और कब तक पति के साथ रहना है, यह उस का अपना फैसला होना चाहिए और यह केरल हाईकोर्ट के हालिया फैसले से भी साफ हो गया है.
किस पर निकाल रहे हैं सलमान अपना गुस्सा
ऐसे ही नहीं सलमान खान को सभी बौलीवुड का भाईजान कहते हैं. वे मौजूदा मुश्किल घड़ी में अपनी हर संभव मदद लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं, साथ ही दोटूक नसीहत उन्हें दे रहे हैं जो इस आपदा को अवसर बना रहे हैं.
घरेलू महिला कामगारों पर कोरोना की डबल आफत
आज देश में स्थिति इतनी गंभीर है कि लोगों के सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली बात है. अगर वे बाहर काम के लिए निकलते हैं तो कोरोना का खतरा और घर पर रुकते हैं तो भूख से मरने का खतरा. इस मार के बीच घरेलू महिला कामगार कैसे जीवन निर्वाह कर रही हैं, जानें.
अंधभक्तों की नई नस्ल
डिजिटल युग में नए तरह के भक्तों की नस्ल पैदा हुई है. सुबहशाम आंख मलते ये भक्त ट्विटर, फेसबुक पर गालीगलौज करते दिख जाते हैं. थोकभाव में मिलने वाले ये भक्त ऐसेवैसे नहीं, बल्कि राजनीतिकभक्त हैं.
सरकार,जज और साख खोती न्यायव्यवस्था
कानून के कई जानकार मोदीकाल में भारत की न्यायिक स्वतंत्रता को ले कर चिंता जता चुके हैं. यह बात तथ्यों से सामने भी आई है कि न्यायिक प्रणाली में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. मोदी प्रशंसक जजों की नियुक्तियां प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही हैं जबकि हालिया न्यायिक फैसले व अदालती टिप्पणियां की राजनीति को सूट करती हैं.
लाशों पर लडी सत्ता और धर्म की लड़ाई
देश और सरकार उपदेशों व प्रवचनों के बजाय वैज्ञानिक व तकनीकी राह अपनाते तो कोरोना के हालात भयावह न होते. कुंभ और रैलियों ने कोरोना का कहर इतना बढ़ा दिया कि जगहजगह लाशों के अंबार लग गए जैसे महाभारत के युद्ध के बाद लगे थे. लड़ाई तब भी सत्ता की थी और आज भी है.
महंगाई डायन खाए जात है
देश एक बार फिर से कोरोना संकट में फंसा है. कोरोना की दूसरी लहर देश पर भारी पड़ रही है. जमाखोरी और मुनाफाखोरी की नीयत के चलते महंगाई चरम पर है. जेब में पैसा नहीं है, इस के बाद भी महंगाई और बेरोजगारी की चर्चा नहीं हो रही.
कुव्यवस्था से हाहाकार
देश में मौजूदा हालात बताते हैं कि सरकारें जनहितैषी कभी नहीं बन सकतीं. सरकारें गरीबों के बारे में कभी नहीं सोच सकतीं.सरकारें तो बनी ही जनता पर शासन करने को हैं. जनता को सिर्फ वोटबैंक समझने की जिद इन्हें उस की लाशों से खेलने की इजाजत देती है.
बरबाद होती फिल्म इंडस्ट्री
मार्च माह की शुरुआत से देश, खासकर फिल्म नगरी मुंबई में कोरोना की नई लहर हावी हो गई है. इस ने पहले से ही बरबाद हो चुकी फिल्म इंडस्ट्री को ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि अब तो उस की कमर ही टूट सी गई है. कोरोना का फिर से जिस तरह का माहौल बना है उस से तो यही आभास हो रहा है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर न पाए.
औरतों के लिए नवरात्रे त्योहार या अतिरिक्त बोझ
जिस देश को महिलाओं के लिए सब से असुरक्षित माना गया हो वहां नवरात्रे में कन्याओं की पूजा करना किसी ढोंग से कम नहीं. दुखद यह है कि पुरुष समाज के रचाए इस ढोंग को करने में भी महिलाएं ही पिसती हैं, उन के सिर ही तमाम तामझाम का अतिरिक्त बोझ पड़ता है.
पुजारियों को दानदक्षिणा क्यों
मध्य प्रदेश में आम लोग जाएं तेल लेने. युवाओं को न नौकरी न बेरोजगारी भत्ता, किसानों को राहत नहीं, कर्मचारियों को एरियर व महंगाई भत्ता नहीं और महिलाओं को सुरक्षा नहीं. लेकिन धर्म की दुकानदारी में बिलकुल भी कमी नहीं, इस के लिए पंडेपुजारियों को सरकारी दानदक्षिणा जारी है.
अमेरिका और मास शूटिंग
अमेरिका में मास शूटिंग बड़ी समस्या के तौर पर उभर रही है, जिस के लिए कहीं न कहीं नागरिकों को आर्स रखने की मंजूरी देने वाला कानून भी जिम्मेदार है. अमेरिका की जनता और नेताओं को मास शूटिंग रोकने की दिशा में कठोर कदम उठाने चाहिए वरना अमेरिका को ही नहीं, इस का दुष्प्रभाव अन्य देशों को भी झेलना पड़ सकता है.
गायत्री प्रजापति पर कस गया ईडी का शिकंजा
दलित समाज को उम्मीद होती है कि उस के बीच से उठा कोई युवक अगर देश की राजनीति में अपनी जगह बनाता है तो वह अपनी बिरादरी को गरीबी, अशिक्षा और जिल्लत की जिंदगी से उबारने के लिए कुछ करेगा. मगर अफसोस कि राजनीति में आने के बाद दलित नेता भी सवर्णों का चोला ओढ़ कर लूटकांड और दरिंदगी के झुंड का हिस्सा बन जाते हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति की कहानी इसी की बानगी है.
धर्म और राजनीति के वार रिश्ते तारतार
धर्म और राजनीति हमेशा से इंसान व समाज पर गहरा प्रभाव डालते रहे हैं. कभीकभी इन की प्रस्तुति मिथ्या के कारण भारी विवाद पैदा होते रहे हैं. लेकिन आपसी रिश्तों में भी जब धर्म और राजनीति का दखल अधिकाधिक घुसपैठ करने लगे तो क्या परिणाम निकल कर आते हैं, जानें इस खास रिपोर्ट में.
समंदर में बूंद बराबर है अंबानी पर सेबी का जुर्माना
अंबानी हर मिनट 31,202 डौलर और हर दिन 4.5 मिलियन डौलर कमाते हैं. मुकेश अंबानी की संपत्ति दुनिया में 19 देशों की जीडीपी से अधिक है. उन के परिवार पर 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाना उन के घर में पड़े चिल्लरों पर नजर लगाने जैसा है. 25 करोड़ रुपया तो अंबानी परिवार के लिए हाथों का मैल है.
बंगाल चुनाव में 'राम नाम' की लूट
बंगाल में जहां धर्म कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा, वहां 'राम' के नाम पर भाजपा ने धर्म को हावी करने का प्रयास किया है. 'राम' अब भाजपा के प्रचारक जैसे लगने लगे हैं जिन्हें मुंह में रख भाजपाई दिग्गज राज्य में जहांतहां रैलियां कर झूठ परोस रहे हैं.
बंगलादेश में हिंसा मोदीविरोध या भारतविरोध?
बंगलादेश के 50वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य अतिथि बनाए जाने के विरोध में वहां भड़की हिंसा ने कई सवालों को खड़ा किया है.
जीएनसीटी दिल्ली एक्ट 2021 केजरीवाल सरकार पर मोदी का कब्जा
आखिर दिल्ली पर राज किस का है? एक तरफ 70 में से 62 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर भारी बहुमत से जीती आम आदमी पार्टी की सरकार है, दूसरी तरफ मोदी सरकार के बनाए उपराज्यपाल हैं. दिल्ली के अधिकारों के घाव को अब कुरेदा नहीं जा रहा, बल्कि इस बार कानूनी जूतों से मसल डाला गया है.
लाइलाज नक्सलवाद बेबस सरकार
सत्ता अगर वाकई बंदूक की नली से मिलती, जैसा कि नक्सली मानते हैं, तो दुनियाभर में राज आतंकियों का होता. लोकतांत्रिक व्यवस्था में खामियां और कमजोरियां हैं और अब तो शोषण व तानाशाही भी लोकतंत्र की ओट में होने लगे हैं. लेकिन हिंसक और सशस्त्र विरोध यानी नक्सलवाद इस का हल नहीं है, न ही सरकार का हिंसक जवाब इस का हल है.
कोरोना वैक्सीन लगवा रहे हैं?
कोरोना वायरस संक्रमण की चौथी लहर बहुत तेजी से लोगों को अपनी चपेट में लेती जा रही है. ऐसे में जल्द से जल्द वैक्सीन पाने की होड़ में अस्पतालों में भारी भीड़ उमड़ रही है. मगर वैक्सीन लेने से पहले सावधानी जरूरी है.
किडनी फेल होने की वजह मोटापा तो नहीं
शरीर का वजन बढ़ने से किडनी पर दबाव पड़ता है. किडनी शरीर में टौक्सिंस को फिल्टर करने का काम करती है. वजन बढ़ने पर किडनी को टौक्सिंस को फिल्टर करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है.