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धूम्रपान छोड़िए कोरोना से बचिए
कोविड-19 के संक्रमण को फैलाने में धूम्रपान का बड़ा योगदान है. यही वजह है कि संक्रमण के शुरुआती दौर में धूम्रपान की बिक्री पर रोक लगाई गई थी. बढ़ते कोविड संक्रमण से बचाव के लिए धूम्रपान पर प्रतिबंध जरूरी है.
ड्रैगन का खूनी पंजा
सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ खूब मुलाकातें कीं, गलबहिया की, मुसकरामुसकरा कर तसवीरें खिच्चाई, झूला झुलाया, अपना खास दोस्त करार दिया. मगर ड्रैगन से दोस्ती का क्या सिला मिला? 20 भारतीय जवानों की शहादत...
उत्तर प्रदेश मिशन 2022 पर प्रियंका गांधी वाड्रा
उत्तर प्रदेश की मृतप्राय कांग्रेस इकाई में जान फूंक रहीं पार्टी की नेता प्रियंका गांधी राज्य व राज्यवासियों की दुर्गात के लिए सत्तापक्ष ही नहीं, विपक्ष को भी लाल आंखें दिखा रही हैं. मिशन 2022 पर नजर गड़ाए प्रियंका ने अपनी दादी इंदिरा गांधी का नाम ले सियासी संग्राम छेड़ दिया है.
वायरसी मार से बेरोजगार बौलीवुडकर्मी जारजार
फिल्मों को सिनेमाघरों तक पहुंचाने में बैकग्राउंड में काम करने बाले कर्मचारियों का बड़ा हाथ होता है. आज कोरोना महामारी की मार के कारण यही हाथ दूसरों के सामने मदद के लिए फैले हुए हैं, लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा.
लौकडाउन में बेकारी और बीमारी के शिकार बुजुर्ग
बुजुर्गों के लिए जहां सामान्य हालात भी कठिन होते हैं वहां लौकडाउन में उन की गिरती सेहत और मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. लौकडाउन में कुछ लोगों को राहत मिली है, लेकिन वृद्धों की परेशानियां जहां की तहां हैं.
शादियां आखिर अब होंगी कैसे
बाजे और बरात के बिना भारतीय शादियों को हमेशा से अधूरा मानते आए हैं. अब कोरोना में यह शौक तो धरा का धरा रह ही गया है. साथ ही, एक नई समस्या आ खड़ी हुई है. शादी बिना तामझाम तो कर लेंगे लेकिन अब रिश्ता जोड़ना आसान नहीं रह गया.
चीनी सामान के बहिष्कार का झुनझुना
भारत-चीन सीमा विवाद के बीच
जनता तो अब चंदन ही घिसेगी
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट से भारत में आर्थिक वृद्धि दर बुरे दौर से गुजरने वाली है. मगर सरकार के पास इस का कोई रोडमैप नहीं. तो फिर जनता किस के भरोसे रहे?
जीडीपी, ग्रौस डिजीज प्रिवैलैंस की लड़ाई में आगे और आगे मुमकिन है आत्मनिर्भरता
कोरोना प्रतियोगिता में जंबू द्वीप की पारी को देखते हुए जान पड़ता है कि यह कोरोना की वैश्विक प्रतियोगिता का विश्वकप अपने ही नाम करेगा. गर्व कीजिए, आखिर अन्य देशों को लगातार पछाड़ते हुए आगे बढ़ते रहना कोई छोटी बात थोड़े ही है.•
कोरोना का हल्ला केंद्र ने झाड़ा पल्ला
केंद्र सरकार कोरोना को 2-4 दिनों का मेहमान समझते खुद उसे नियंत्रित करने का श्रेय लेना चाहती थी. लेकिन इस के भयावह होते ही उस ने निबटने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी, जिस का खमियाजा आम लोगों को तरहतरह से भुगतना पड़ रहा है.
कपडों में जकड़ी आजादी
पितृसत्तात्मक समाज की चालाकी और लालच आज भी महिलाओं का अस्तित्व उस के शरीर से आगे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उस की देह पर अपना कब्जा जमाए रखने के लिए वह औरत को कपड़ों की जकड़ व आभूषणों की बेड़ियों में कसे रखना चाहता है. इन बेड़ियों को काटे बिना औरत की गति नहीं है. इस षड्यंत्र को समझना और इस से मुक्त होने के रास्ते औरत को ही निकालने होंगे.
डौलर की जगह चीनी करेंसी
अमेरिका के लिए कोविङ-19 महामारी व अर्थव्यवस्था पर उस के विनाशकारी प्रभाव से निबटने से भी बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है चीन.
झूठी अफवाहें कोरोना से ज्यादा खतरनाक
आजकल कोरोना वायरस से ज्यादा अफवाहों का बाजार गरम है. ये झूठी खबरें क्यों और कौन लोग वायरल कर रहे हैं, जान कर हैरान रह जाएंगे आप...
जुल्म नहीं जस्टिस ब्लैक लाइस मैटर
अमेरिका के मिनियापोलिस शहर में अश्वेत जौर्ज फ्लौयड की गोरे पुलिसमैन द्वारा बिना खास कारण के हत्या किया जाना मानवीय ज्यादती, नस्लभेद और रंगभेद का दर्दनाक सुबूत है. अभी भी सदियों पहले की तरह गोरों के व्यवहार में हाकिमों और गुलामों वाली सोच जस की तस मौजूद है. वहीं, रंग व जाति के भेदों के अंगारों को धर्मग्रंथों के सहारे बारंबार नई शक्लों में थोपा जाता रहा है.
डिप्रैशन से लडेंगे तो ही जीतेंगे
डिप्रैशन बहुत आम बीमारी हो चली है लेकिन इस का बढ़ना कितना नुकसानदेह होता है, यह हर कोई नहीं समझ पाता. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत द्वारा की गई आत्महत्या जिस डिप्रैशन की देन बनी उस से निबटना कोई मुश्किल काम नहीं.
शहर से गिरे जातिवाद पर अटके
दलित दूल्हे के मूंछे रखने, घोड़ी चढ़ने आदि पर विशेष जातियों द्वारा पीटने की खबरें सुनने को अभी भी मिल जाती हैं. यहां तक कि दलितों की शादी में बाजा तक बजाने नहीं दिया जाता. आज भी गांवों में खाप पंचायत से ले कर चल रहे पुराने पेशों तक में जातिवाद की दुर्गंध महसूस की जा सकती है.
सोना मोहपात्रा
मैं ऐक्टिविस्ट नहीं कलाकार हूं, संगीत बनाना मेरा काम है
शादीशुदा बेटी के जीवन में क्या सही है मां का दखल
मां और बेटी का रिश्ता बेहद अंतरंग व अनोखा होता है. लेकिन, बेटी की चिंता के चलते मां का उस के शादीशुदा जीवन में दखल देना अकसर कई मुसीबतें खड़ी कर देता है..
गरीबों की आड़ में पंडितों का जुगाड़
धर्म बेहद संवेदनशील विषय है और इसे धंधा कहने पर अकसर लोगों में आक्रोश उमड़ आता है. परंतु जब सभी आंकड़े व तथ्य भी यह सिद्ध करते हों कि धर्म धंधे से ज्यादा कुछ नहीं, क्या तब भी इस की पैरवी करना समझदारी है?
चिंता और विकार से भरा रोग ओसीडी
ओसीडी होने पर व्यक्ति को मालूम ही नहीं होता कि उस के दिमाग में जो विचार आ रहे हैं वे सही भी हैं या नहीं. इस दौरान वह एक ही कार्य को बारबार करने के लिए बाध्य हो जाता है. यह दिमागी बीमारी ठीक तो नहीं हो सकती लेकिन इलाज से लक्षणों को नियंत्रण में लाने में मदद मिल सकती है.
डरना नहीं जीना है हमें
माना विश्व कोरोना से भयभीत है लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हम इस डर के चलते जीना ही छोड़ दें. बीमार होने से पहले बीमारी के भय में जीना बेवजह की दोहरी मार है. आइए जानें कि किस तरह हम कोरोना वायरस के इस दौर में सामान्य रह सकते हैं.
मास्क एक फायदे अनेक
यह सच है कि कोरोना जानलेवा बीमारी है, मगर बेअदबी से रहने वालों के लिए जीवन में इस से कितना बदलाव आएगा, क्या यह जानना नहीं चाहेंगे...
कोरोना के बहाने पतिपत्नी शोध प्रबंध
वैसे तो समझदार पति अपनी पत्नी के नजदीक खास मौके पर पहले ही सुरक्षित हो कर जाते हैं. यही नहीं, सुरक्षित साधन भी जेब में होते हैं. पर अब तो भइया, कोरोना के चलते, जरा भी सावधानी हटी तो सब प्यारमोहब्बत धरी रह जाएगी.
लौकडाउन के बाद रैस्टोरैंट्स का हाल
कोरोना ने जीवन के हर पहलू को तो बदल ही दिया है तो खाना खाने की सामन्य शैली कैसे न प्रभावित होती. डाइनिंग के नए स्टाइल व सुरक्षा नीतियों से लैस रैस्टोरैंट्स लौकडाउन के बाद कुछ इस तरह के दिखेंगे.
लौकडाउन में ढूंदें जिंदगी की चाबी
जिंदगी में कभी भी कुछ भी हो सकता है, लौकडाउन ने यह बात साबित कर दी है. हम सब इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि खुशियां ढूंढ़ना इंसान के अपने हाथ में है
औनलाइन वैडिंग क्या आगे भी रहेगी औन?
कभी परंपरा और दिखावे की भेंट चढ़ रही शादियां आजकल बिलकुल सादगी से आयोजित की जा रही हैं. लोग इसे एक बेहतर शुरुआत मान रहे हैं. आखिर क्यों...
उपलब्धि पर सवाल कहीं बुधिया जैसा हश्र न हो ज्योति का
तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाना हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है. वजह, चमत्कार बेच कर पैसा बनाने की चाल है जो अब गरीब दलित लड़की ज्योति को ब्रैड बना कर चली जा रही है. आज जो लोग उस के आगेपीछे डोल रहे हैं वे न पहले उस के साथ थे न आगे होंगे.
आत्मनिर्भरता के माने तुम जानो तुम्हारा काम जाने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उन के भाषण दोनों धार खोने लगे हैं. वे अब मुद्दे की बातें कम करते हैं, इधरउधर की ज्यादा हांकते हैं. भाषणों में संस्कृत के श्लोक वगैरह का प्रयोग बताता है कि वे वास्तविकता से आंखें बंद किए हुए हैं जो सभी के लिए नुकसानदेह है. उन के लिए भी, भाजपा के लिए भी और आम लोगों के लिए भी. कैसे, आइए देखते हैं.
"अब मैं यथार्थ कहानी वाली फिल्मों को प्राथमिकता दूंगा" पंकज त्रिपाठी
अपने दमदार किरदारों और बेहतरीन अदाकारी के लिए मशहूर पंकज त्रिपाठी भी लौकडाउन के चलते काम करने में असमर्थ हैं. लेकिन, लौकडाउन के इस समय को पंकज ने एक बहुत ही अलग अंदाज में इस्तेमाल किया है. पेश हैं पंकज त्रिपाठी से खास बातचीत के कुछ अंश
शब्दों की बाढ़ और हिंदी कहानियां
विषयों के अलावा हिंदी कहानी की भाषाशैली भी अकसर चर्चा का कारण रही है. उस की संपूर्णता पर भी संदेह जबतब व्यक्त किया जाता रहा है, लेकिन इसे कहानी की विपन्नता नहीं कहा जा सकता.