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हर हाथ कैमरा तो है...
परंतु फोटोग्राफी का शऊर कहां है! खटाखट आड़ी-तिरछी आठ-दस तस्वीरें लेकर उनमें से एकाध पर ढेर फिल्टर लगा देना न तो कला है न ही साधना | विचार कीजिए...
जंगल में रोमांच की राहें
इंसानों को विभिन्न मुद्राएं बनाने के लिए कहा जा सकता है, दृश्यों की तस्वीरें अलग-अलग कोणों से ली जा सकती हैं, किंतु जंगली पशु-पक्षियों के छायाचित्रण के लिए धैर्य रखने और सटीक क्षण का इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं हो सकता। इसके साथ ही रखनी पड़ती है सावधानी और सतर्कता, क्योंकि एक छोटा-सा पक्षी भी गहरी चोट पहुंचा सकता है। वन्यजीवन फोटोग्राफी के रोमांचक संसार में आपका स्वागत है!
एक क्लिक का कमाल
कैमरा हाथ में आते ही व्यक्ति विशिष्ट हो जाता है। दुनिया को देखने की उसकी दृष्टि बदल जाती है। वह व्यापक फलक पर नज़र डालता है और बहुत बारीकी से भी। तब सौंदर्य की परिभाषा ही परिवर्तित हो जाती है, क्योंकि छायाकार के लिए संसार में कुछ भी असुंदर नहीं होता। वह प्रकृति के हर अंश में ख़ूबसूरती खोज लेता है, या यूं कहें कि कैमरे की बदौलत हर शै को आकर्षक बनाने की कुव्वत रखता है। कैमरे के क्लिक के ज़रिए किसी पल को क़ैद कर लेना कला ही तो है ! 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के मौक़े पर हमारी आमुख कथा इस कला के विभिन्न पहलुओं को समझने और इसका वास्तविक आनंद उठाने के लिए आमंत्रित कर रही है।
सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर
क़लम-कहानी की लाग ने उन्हें रंगमंच से सिने जगत और वहां से आमजन के दिलों तक पहुंचा दिया। तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्में बनाने वाले मेहुल को अपने दौर के सिनेमा का ट्रैक बदलने के साथ ही राजकुमार, नाना पाटेकर और अमिताभ बच्चन जैसी क़द्दावर हस्तियों के कॅरियर में अहम मोड़ लाने का श्रेय भी जाता है। एक लेखक, रंगमंच हस्ती और फिल्म निर्देशक के रूप में आधी सदी तक दर्शकों की नब्ज पकड़े रखने वाले मेहुल कुमार हैं इस बार हमारे अहा ! अतिथि। मेहुल बयां कर रहे हैं अपना सफ़रनामा, जिसमें परदे के पीछे के कई रोचक क़िस्से भी चले आए हैं।
इच्छा जताएं कि अनुशासन बनाएं?
इच्छाशक्ति सीमित है, इस्तेमाल करने पर कम हो जाती है। आत्म-अनुशासन एक आदत है, व्यवस्था है- एक बार बन जाए, फिर प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। फ़ैसला आपका है!
एक लम्हा, कई सच, अनंत संभावनाएं
अपने ग्रह के समयांतर से हम परिचित हैं। किस समय कहां दिन होगा, ठीक उसी समय कहां रात, संध्या या दोपहर होगी, हम जान सकते हैं। इससे भी सूक्ष्म है पलों का हिसाब, जिसकी समग्र समझ विविधता, निरंतरता और संभावनाओं के सबक़ हैं।